संकटमोचन हनुमानाष्टक गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत प्रभावशाली और श्रद्धापूर्ण स्तुति है। मान्यता है कि इसके नियमित पाठ से भक्त के जीवन में आने वाले बड़े से बड़े संकट भी दूर होने लगते हैं। यह स्तोत्र न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि बजरंगबली की कृपा से भय, बाधा और निराशा का नाश भी करता है। विशेष रूप से मंगलवार के दिन इसका पाठ करना अत्यंत फलदायी माना गया है।
हनुमान जी को संकटों का नाश करने वाला देव माना गया है और संकटमोचन हनुमानाष्टक में उनके उसी स्वरूप का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसमें भगवान हनुमान के उन अद्भुत पराक्रमों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से उन्होंने देवताओं से लेकर प्रभु श्रीराम तक के कष्टों का निवारण किया।
संकटमोचन हनुमानाष्टकबाल समय रवि भक्ष लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
।। दोहा। ।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
जय श्रीराम, जय हनुमान, जय हनुमान।
पाठ करने की विधि और नियमसंकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन प्रातःकाल या संध्या समय इसे करना विशेष रूप से शुभ माना गया है।
मंगलवार और शनिवार के दिन इसका पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
पाठ के समय हनुमान जी के समक्ष घी या चमेली के तेल का दीपक जलाएं और मन को शांत रखते हुए श्रद्धा से पाठ करें।
यदि किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए पाठ किया जा रहा हो, तो इसे 8, 11 या 21 बार लगातार करना अत्यंत प्रभावी माना गया है।
मान्यता है कि नियमित रूप से संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से जीवन के भय, रोग, शत्रु बाधा और मानसिक तनाव धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं और भक्त को साहस व आत्मबल की अनुभूति होती है।