आंवला नवमी से ही हुआ था त्रेता युग का आरंभ, व्रत करवाता हैं सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति

आज 12 नवंबर, शुक्रवार को कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि हैं जिसे आंवला नवमी के रूप में जाना जाता हैं। मान्यताओं के अनुसार आज ही के दिन से त्रेता युग का आरंभ हुआ था और आज के दिन से कार्तिक मास पूर्णिमा तिथि तक भगवान विष्णु आंवला के वृक्ष में निवास करते हैं इसलिए इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का प्रिय फल है। इसलिए आज के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा और व्रत किया जाता हैं जिससे अखंड सौभाग्य, आरोग्य, संतान प्राप्ति और सुख वृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति और असाध्य रोगों का भी नाश होता है।

अक्षय पुण्य की होती है प्राप्ति

मान्यता है कि आंवला नवमी को ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक राक्षस का अंत किया था। राक्षस के अंत के बाद उसके रोम से कुष्माण्डक बेल हुई थी। इसी कारण आंवला नवमी के दिन कूष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन को धात्री तथा कुष्मांडा नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन किए गए शुभ कार्य अक्षय फल देते हैं अर्थात कभी भी शुभ फलों की कमी नहीं होती है। इस दिन वृंदावन की परिक्रमा का प्रारंभ भी होता है। इस पुण्यतिथि पर किया गया कोई भी धार्मिक कार्य जैसे दान, जप-तप, तर्पण, स्नानादि, व्रत, पूजन आदि करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

आंवला नवमी की पौराणिक कथा


आंवला नवमी की पूजा करने से भगवान विष्णु और भगवान शिव की कृपा प्राप्ति होती है। इसके पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है। कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण कर रही थीं। तभी उनके मन में नारायण और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने का कामना की। जिसके बाद उनके मन विचार आया कि कैसा एक साथ दोनों की पूजा की जा सकती है। तब भगवान नारायण ने बताया कि तुलसी और बेल की गुणवत्ता वाले आंवले के पेड़ की पूजा करने से दोनों की पूजा का शुभ फल प्राप्त होता है।

माता लक्ष्मी ने भी दिया आशीर्वाद

भगवान विष्णु की बात सुनकर माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने नारायण रूप में और महादेव दोनों एक साथ प्रकट हो गए। जिसके बाद माता लक्ष्मी ने आंवला के पेड़ के नीचे भोजन तैयार किया, जिसको विष्णुजी और शिवजी दोनों ने भोग लगाया। तब माता लक्ष्मी ने कहा कि आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से मात्र से न सिर्फ शिव और नारायण की पूजा का शुभ फल मिलेगा बल्कि लक्ष्मी और मां पार्वती का भी आशीर्वाद प्राप्त होगा। यह व्रत लोगों को आरोग्य प्रदान करेगा और घर में सुख-समृद्धि भी आएगी। इसलिए आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करना और इस वृक्ष के नीचे भोजन पकाकर गरीब व जरूरतमंद लोगों को खिलाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

मृत्यु के बाद होती है उत्तम लोक की प्राप्ति


आंवले के सेवन करने से जहां आपको स्वास्थ्य सही रहता है और सभी देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। वहीं इस व्रत के शुभ प्रभाव से जाने-अनजाने किये गए पाप भी क्षय अर्थात नष्ट हो जाते हैं। जिससे मनुष्य पाप मुक्त होकर अक्षय पुण्य से मृत्यु के बाद उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। आंवले को धात्री अर्थात मां के समान पोषण करने वाला भी कहा गया है। देव प्रबोधिनी एकादशी की पूजा में भगवान विष्णु को आंवला अर्पित किया जाता है। साथ ही अक्षय नवमी को लेकर मान्यता है कि इस दिन जिस इच्छा के साथ पूजा करते हैं, उनकी वह इच्छा जरूर पूर्ण होती है। इसलिए अक्षय नवमी को इच्छा नवमी भी कहा जाता है।