10 लाख रुपये किलो में बिकता हैं दुनिया का सबसे महंगा यह कीड़ा
By: Ankur Tue, 07 Apr 2020 6:09:51
चीन के वुहान से उठा कोरोनावायरस का कहर पूरी दुनिया में कहर बरपा रहा हैं। कोरोना का यह वायरस जानवरों से पनपा हैं। चीन में विभिन्न जानवरों को बड़े चाव से खाते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको ऐसे जानवर के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि दुनिया का सबसे महंगा कीड़ा हैं और 10 लाख रुपये किलो में बिकता हैं। इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी की तरह किया जाता है। यह कीड़ा भूरे रंग का होता है और दो ईंच तक लंबा होता है। इसकी सबसे खास बात कि इसका स्वाद मीठा होता है। यह हिमालयी क्षेत्रों में तीन से पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है।
इसके कई नाम हैं। भारत में इसे 'कीड़ा जड़ी' के नाम से जाना जाता है जबकि नेपाल और चीन में इसे 'यार्सागुम्बा' कहते हैं। वहीं तिब्बत में इसका नाम 'यार्सागन्बू' है। इसके अलावा इसका वैज्ञानिक नाम 'ओफियोकोर्डिसेप्स साइनेसिस' है जबकि अंग्रेजी में इसे 'कैटरपिलर फंगस' कहते हैं, क्योंकि यह फंगस (कवक) की प्रजाति से ही संबंध रखता है।
इसे 'हिमालयन वियाग्रा' भी कहते हैं। इसका इस्तेमाल ताकत बढ़ाने की दवाओं समेत कई कामों में होता है। यह रोग प्रतिरक्षक क्षमता को बढ़ाता है और फेफड़े के इलाज में भी यह काफी कारगर है। हालांकि यह बेहद ही दुर्लभ और खासा महंगा भी है। इसके महंगा होने का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि महज एक कीड़ा लगभग 1000 रुपये का मिलता है। वहीं अगर किलो के हिसाब से देखें तो नेपाल में यह 10 लाख रुपये प्रति किलो तक बिकता है। इसी कारण इसे दुनिया का सबसे महंगा कीड़ा कहा जाता है।
भारत के कई हिस्सों में, कैटरपिलर कवक का संग्रह कानूनी है, लेकिन इसका व्यापार अवैध है। पहले नेपाल में यह कीड़ा प्रतिबंधित था, लेकिन बाद में इस प्रतिबंध को हटा दिया गया। कहते हैं कि इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी के रूप में आज से नहीं बल्कि हजारों सालों से किया जा रहा है। नेपाल में तो लोग इन कीड़ों को इकट्ठा करने के लिए पहाड़ों पर ही टेंट लगा लेते हैं और कई दिनों तक वहीं पर रहते हैं।
यार्सागुम्बा के पैदा होने की कहानी भी बड़ी अजीब है। यह हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाले कुछ खास पौधों से निकलने वाले रस के साथ पैदा होते हैं। इनकी अधिकतम आयु छह महीने ही होती है। अक्सर सर्दियों के मौसम में ये पैदा होते हैं और मई-जून आते-आते ये मर जाते हैं, जिसके बाद लोग इन्हें इकट्ठा करके ले जाते हैं और बाजारों में बेच देते हैं।