अनोखा मंदिर जिसमें प्रवेश के लिए पुरुषों को करना पड़ता हैं सोलह श्रृंगार
By: Ankur Thu, 07 May 2020 5:07:27
भारत को अपने मंदिरों से अलग पहचान मिली हैं। देश में कई मंदिर हैं जो अपने अनोखेपन और रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। हर मंदिर के अपने रीती-रिवाज भी होते हैं और उसी के अनुसार वहां पूजा की जाती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसे ही अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें पुरुषों को प्रवेश करने से पहले महिलाओं की तरह सोलह श्रृंगार करना पड़ता हैं। हम बात कर रहे हैं केरल के कोट्टनकुलंगारा देवी मंदिर के बारे में।
कोट्टनकुलंगारा देवी मंदिर में यह पंरपरा कई सालों से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में देवी की मूर्ति अपने आप ही प्रकट हुई थी। यह केरल का इकलौता मंदिर है, जिसके गर्भगृह के ऊपर छत या कलश नहीं है। इस मंदिर में सोलह श्रृंगार करने के बाद पुरुष अच्छी नौकरी, हेल्थ, लाइफ पार्टनर और अपनी फैमिली की खुशहाली की प्रार्थना करते हैं।
कोल्लम जिले के कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर में हर साल 23 और 24 मार्च को मंदिर में हर साल ‘चाम्याविलक्कू पर्व' का विशेष आयोजन किया जाता है। इस अनूठे फेस्टिवल में पुरुष महिलाओं की तरह साड़ी पहनते हैं और पूरा श्रृंगार करने के बाद मां भाग्यवती की पूजा करते हैं। वैसे तो पुरुष बाहर से ही 16 श्रृंगार करके आते हैं। लेकिन यदि कोई दूसरे शहर से आया है। या बाहर से मेकअप करके नहीं आया है तो उसके लिए मंदिर में ही व्यवस्था की गई है।
मंदिर परिसर में ही मेकअप रूम है। जहां पुरुष 16 श्रृंगार कर सकते हैं। इसमें लड़के की मां, पत्नी, बहन भी मदद करती हैं। माना जाता है कि यहां आराधना करने से मन की सभी मुरादें पूरी होती हैं खासतौर पर अच्छी नौकरी की मुराद। इसलिए काफी संख्या में पुरुष यहां महिलाओं के वेश में पहुंचते हैं। साथ ही मां की आराधना करके उनसे मनवांछित नौकरी और जीवनसाथी का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।
इस मंदिर की प्रचलित कथा के अनुसार वर्षों पहले कुछ चरवाहों ने मंदिर के स्थान पर ही महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर पत्थर पर फूल चढ़ाए थे। इसके बाद पत्थर से शक्ति का उद्गम हुआ। धीरे-धीरे आस्था बढ़ती ही चली गई और इस जगह को मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया।