खुद की फार्मा कंपनी होते हुए भी इस शख्स की वजह से 329 दवाओं पर लगा बैन!
By: Priyanka Maheshwari Tue, 18 Sept 2018 12:47:00
खुद की फार्मा कंपनी होते हुए भी इस शख्स ने 329 नुकसानदायक दवाइयों पर बैन लगवाया। हम बात कर रहे है 66 साल के श्रीनिवासन की। श्रीनिवासन आईआईटी खड़गपुर और आईआईएम बेंगलुरु से पढ़े हैं। श्रीनिवासन 2003 से इस काम में लगे हुए हैं। वह याचिकाओं के जरिए लगातार उन दवाओं को पर रोक लगवाने की मांग करते हैं जिनका निर्माण वैज्ञानिक आधार पर होने की बजाय सिर्फ व्यापारिक हितों के लिए होता है। इस बैन का असर सैरेडॉन, पीरामल, ल्यूपिन जैसे जाने-माने ब्रांड्स पर पड़ा। इसके चलते फाइज़र व मैक लिऑड्स जैसी फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट्स में सुधार करना शुरू कर दिया है। हालांकि अब सैरेडॉन समेत तीन FCD दवाओं से बैन हट चुका है।
कौन हैं श्रीनिवासन?
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी से उन्होंने 'एपिडिमिऑलजी' यानी दवाओं के वितरण और रोग संबंधी पढ़ाई की। इतनी बेहतर डिग्री होने के बाद वह करोड़ो की कंपनी खोल कर अच्छे पैसे कमा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कुछ और लोगों के साथ मिलकर एक 'लो कॉस्ट स्टैंडर्ड थिरैप्यूटिक्स' (Locost) नाम की 'नॉट फॉर प्रॉफिट' फार्मास्यूटिकल फर्म खोली जो कि वडोदरा में है। जिन लोगों के साथ मिलकर उन्होंने फर्म खोली थी वो लोग ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का इलाज करने में लगे हुए थे।
श्रीनिवासन का कहना है कि Locost इतने पैसे कमा लेता है जिससे कि कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों की तनख्वाह दी जा सके। उनका कहना कि लालच के चलते फार्मास्यूटिकल कंपनियां ग़लत तरीके से फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन (एफडीसी) का निर्माण कर रही थीं। डब्ल्यूएचओ और सभी स्टैंडर्ड फार्मैकॉलजी की किताबों ने 25 मामलों को छोड़कर सामान्य रूप से इस पर रोक लगा रखी है। एचआईवी, हिपेटाइटिस-सी, मलेरिया और टीवी जैसे रोगों के लिए ही एफडीसी दवाओं को बनाने की अनुमति है।
एएफडीसी के फैलाव का क्या है कारण
दरअसल कंपनियों द्वारा एफडीसी के निर्माण का मूल कारण है बाज़ार पर अपनी पकड़ बनाना, दवाओं के मूल्यों पर लगे नियंत्रण को बाईपास करना और ठीक से रेग्युलेटरी नियम न होना। उदाहरण के लिए एक बहुत ही जानी मानी एनलजेसिक है पैरासीटामॉल। इसमें एंटी -हिस्टामीन और जुकाम होने पर नाक खोलने की दवा फेनिलफ्राइन और कैफीन मिला दी जाती है। अब यह एक नई दवा हो जाती है। इसकी वजह से यह दवा बाज़ार को भी कैप्चर कर लेती है और इसकी ठीक से टेस्टिंग भी नहीं हो पाती। सिंगल ड्रग की क्वालिटी टेस्टिंग के लिए नियम पूरे हैं लेकिन कॉम्बिनेशन ड्रग के लिए ठीक से नियम नहीं हैं।
श्रीनिवासन ने कहा कि जिन बड़ी दवा निर्माता कंपनियों को अपने देश में इसे बेचने की अनुमति नहीं मिलती है वो इसे भारत में बेचते हैं।