ब्रिटेन की महिलाओं ने कहा- अब बच्चे पैदा नहीं करेंगे, वजह चौकाने वाली
By: Priyanka Maheshwari Wed, 26 June 2019 1:05:36
जलवायु परिवर्तन की समस्या आज हर देश के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मनुष्य ही है। सामान्यतः जलवायु में परिवर्तन कई वर्षों में धीरे धीरे होता है। लेकिन मनुष्य के द्वारा पेड़ पौधों की लगातार कटाई और जंगल को खेती या मकान बनाने के लिए उपयोग करने के कारण इसका प्रभाव जलवायु में भी पड़ने लगा है। कारखानों को सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला माना जाता है, क्योंकि इसके आसपास रहने से साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा प्रदूषण फैलाने वालों में वाहनों को लिया जाता है। यह सभी वायु प्रदूषण फैलाने में अपना योगदान देते हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे उदाहरण है, जो वायु प्रदूषण के कारक बनते हैं। वायु प्रदूषण से गर्मी बढ़ जाती है और गर्मी बढ़ने से जलवायु में भी परिवर्तन होने लगता है।
बच्चा पैदा नहीं करना चाहती महिलाएं
जलवायु परिवर्तन के लिए काम करने वाले ब्रिटेन के एक ग्रुप का कहना है कि उन्होंने बच्चा पैदा नहीं करने का फैसला लिया है। इसमें शामिल महिलाओं ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन गंभीर समस्या बनती जा रही है। लंदन में रहने वाली 33 साल की ब्लाइथे पेपीनो संगीतकार हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चे पैदा नहीं करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, 'मैं बच्चा चाहती हूं। मैं अपने पार्टनर के साथ एक परिवार चाहती हूं। लेकिन, यह दुनिया बच्चों के रहने लायक नहीं है।' उन्हें दुनिया में सूखे, अकाल, बाढ़ और ग्लोबल वार्मिंग का डर है। आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन की गुणवता बेहतर करने के लिए उन्होंने यह फैसला लिया है। एक अन्य सदस्य लोरी डे ने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन होता है तो कई चीजें बदलती हैं। इससे खाद्य उत्पादन, संसाधन प्रभावित होंगे और युद्ध की स्थिति बनेगी।
पोपीनो ने 2018 के अंत में ‘बर्थस्ट्राइक’ ग्रुप का गठन किया था। अब तक इस संगठन से 330 लोग जुड़ चुके हैं। इसमें 80% महिलाएं हैं। पेपीनो का कहना है कि उन्होंने यह फैसला यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की चेतावनी के बाद लिया। इसमें कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए 11 साल बचे हैं। हाल ही में ग्रुप से जुड़े 29 साल के कोड़ी हैरिसन ने कहा कि आप किसी और के जीवन के साथ खिलावाड़ नहीं कर सकते। अगर चीजें ठीक नहीं होती हैं, तो मनुष्य अच्छा जीवन नहीं बिता सकता है।
विश्व बैंक के मुताबिक, वर्तमान में एक व्यक्ति साल में औसत पांच टन कार्बन-डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। वहीं, एक अमेरिकन साल में औसत 15.6 मिट्रिक टन कार्बन का उत्सर्जन करता है। जबकि श्रीलंका और घाना एक टन से भी कम उत्सर्जन करते हैं। कॉन्सिवेबल फ्यूचर के सहसंस्थापक मेगान कालमन का कहना है कि यदि हर कोई अमेरिकी की तरह कार्बन का उत्सर्जन करने लगे, तो रहने के लिए चार से छह पृथ्वी की जरूरत पड़ेगी। वही जनसंख्या पर नजर रखने वाली यूके के चैरिटी का तर्क है कि आबादी बढ़ने के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा और उष्णकटिबंधीय जंगलों में कमी आएगी। यूएन के मुताबिक, 2030 तक पृथ्वी पर 8.5 बिलियन लोग होंगे और 2100 तक यह आंकड़ा 11 बिलियन तक होने की उम्मीद है।