बेरोजगारी रिपोर्ट पर सरकार के बचाव में आए अधिकारी, कहा - अगर बेरोजगारी बढ़ी होती तो 7 फीसदी की आर्थिक विकास दर नहीं होती
By: Priyanka Maheshwari Fri, 01 Feb 2019 10:42:16
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की पीएलएफएस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा थी। अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस रिपोर्ट का खुलासा किया है। इस रिपोर्ट को दबाने के आरोपों के बाद सरकार ने गुरुवार को स्थिति को संभालने के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और सीईओ अमिताभ कांत को उतारा, जिन्होंने दावा किया है कि रिपोर्ट को अभी अंतिम रूप प्रदान नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट जारी की जाएगी। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ)की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017-18 में देश में बेरोजगारी दर 45 साल में सर्वाधिक थी, हालांकि यह रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हुई और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के कार्यवाहक अध्यक्ष समेत दो सदस्यों ने इसके विरोध में मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। सरकार के अंतरिम बजट से कुछ दिन पहले ही यह रिपोर्ट सामने आई है, ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले काफी विवाद हो सकता है। विपक्षी दल रोजगार के आंकड़ों को लेकर लगातार सरकार को निशाना बना रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2 फीसदी थी। नौजवान बेरोजगार सबसे ज्यादा थे, जिनकी संख्या 13 से 27 फीसदी थी। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारों की संख्या ज्यादा थी, जो कि 7.8 फीसदी थी और ग्रामीण क्षेत्र में 5.3 फीसदी थी। साथ ही, अधिक लोगों को कार्यबल से निकाला गया क्योंकि पिछले कुछ सालों की तुलना में श्रम शक्ति की भागीदारी निम्न स्तर पर थी।
राजीव कुमार ने कहा कि लीक हुए आंकड़े प्रक्रिया और डाटा संग्रह में बदलाव के कारण रोजगार को लेकर पूर्व के सर्वक्षण के तुल्य नहीं थे। वहीं कांत ने कहा कि इस बात के काफी साक्ष्य हैं जिससे साबित होता है कि इस दौरान नौकरियां पैदा हुई हैं।
सरकार ने रिपोर्ट जारी करने से रोक ली है, मगर दैनिक अखबार 'बिजनेस स्टैंडर्ड' को यह रिपोर्ट मिली है, जिसके अनुसार, 2017-18 में देश में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी थी, जो 1972-73 के बाद सर्वाधिक है।
रोजगार के आवधिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के नतीजे इसलिए महत्व रखती है, क्योंकि माना जाता है कि आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी के फैसले लिए जाने के बाद यह रोजगार को लेकर किया गया पहला व्यापक सर्वेक्षण है।
इस मसले पर सरकार का बचाव करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि अगर बेरोजगारी बढ़ी होती तो देश की 7 फीसदी की आर्थिक विकास दर नहीं होती।
उन्होंने कहा कि लीक हुई रिपोर्ट एक मसौदा है और उसको अभी अंतिम रूप दिया जाना है।
उन्होंने कहा कि अलग विधि से नया सर्वेक्षण तैया किया जा रहा है और यह तिमाही आधार पर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 2011-12 के आंकड़ों से तुलना करना सही नहीं होगा जबकि सर्वेक्षण पांच साल में एक बार होता है और प्रतिदर्श का आकार अधिक छोटा है।
नीति आयोग के सीईओ ने कहा कि अगर नौकरियां पैदा नहीं हुई होती तो भारत की आर्थिक विकास दर 7.2 फीसदी नहीं होती।
उन्होंने कहा, "मेरे विचार से गुणवत्तापूर्ण नौकरी का अभाव बड़ी समस्या है। "
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्षो की तुलना में 2017-18 में युवाओं की बेरोजगारी कुल आबादी के मुकाबले काफी ऊंचे स्तर पर थी।