TIME मैगजीन के कवर पेज पर मिली किसान आंदोलन को जगह, छापी आंदोलनकारी महिलाओं की तस्वीर; टैग लाइन है- 'मुझे डराया और खरीदा नहीं...

By: Pinki Fri, 05 Mar 2021 1:45:57

TIME मैगजीन के कवर पेज पर मिली किसान आंदोलन को जगह,  छापी आंदोलनकारी महिलाओं की तस्वीर;  टैग लाइन है- 'मुझे डराया और खरीदा नहीं...

अमेरिका की प्रतिष्ठित प्रत्रिका टाइम मैगजीन ने अपने ताजा अंक के कवर पेज पर किसान आंदोलन को जगह दी है। मैगजीन ने आंदोलन में शामिल महिलाओं की तस्वीर लगाई है। इसके साथ ही मैगजीन ने लिखा, 'भारत के किसान विरोध के मोर्चे पर'। मैगजीन ने दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर 20 महिओं के एक समुह की तस्वीर छापी है जो किसान आंदोलन में शामिल होने पहुंचे थे। टाइम मैजनीन ने बताया है कि कैसे महीनों से महिलाएं भी विरोध के मोर्चे पर डटी हैं। आर्टिकल का शीर्षक है- ‘I Cannot Be Intimidated। I Cannot Be Bought।’ यानी- हमें धमाकाया नहीं जा सकता, हमें खरीदा नहीं जा सकता। टाइम मैगजीन ने कवर में जिन महिलाओं को जगह दी है, उसमें 41 वर्षीय अमनदीप कौर, गुरमर कौर, सुरजीत कौर, जसवंत कौर, सरजीत कौर, दिलबीर कौर,बिन्दु अम्मां, उर्मिला देवी, साहुमति पाधा, हीराथ झाड़े, सुदेश गोयत शामिल हैं। इन महिलाओं में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की ज्यादा महिलाएं हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रामपुर की 74 वर्षीय किसान जसबीर कौर ने टाइम मैगजीन को बताया, 'हमें वापस क्यों जाना चाहिए? ये केवल पुरुषों का विरोध नहीं है। हम कौन हैं - अगर किसान नहीं? ऑक्सफैम इंडिया के अनुसार, 85% ग्रामीण महिलाएं कृषि कार्य करती हैं, लेकिन केवल 13% ही किसी भी भूमि का मालिक है।

बता दें कि पिछले महीने भारत के किसान आंदोलन को इंटरनेशनल लेवर पर कई सेलेब्रिटियों का साथ मिल था। अमेरिकन पॉप स्टार रिहाना के बाद कई सेलेब्रिटियों ने भारत के किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के किसान आंदोलन समर्थित ट्वीट ने भी सुर्खियां बटोरी थीं। भारत के कलाकार भी किसान आंदोलन को लेकर दो समूहों पर बंटे दिखाए दिएं। हालांकि ज्याजातर लोगों ने विदेशी सितारों का किसान आंदोलन पर टिप्पणी करने को सही नहीं ठहराया था।

पिछले साल 2020 के नवंबर से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसान केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की मांग है कि सरकार तीन नए कृषि कानून को रद्द कर दे। किसान और सरकारों के बीच इसको लेकर कई दौरे की वार्ता भी हो चुकी है लेकिन इसका हल अभीतक कुछ नहीं निकल पाया है।

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