1984 सिख विरोधी दंगे: 34 साल बाद फैसला, सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा, 31 दिसंबर तक करना है सरेंडर
By: Priyanka Maheshwari Mon, 17 Dec 2018 11:45:53
तकरीबन 34 साल के बाद 1984 सिख विरोधी दंगा मामले में दिल्ली हाई कोर्ट की डबल बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया है और उम्रकैद की सजा सुनाई है। 31 दिसंबर तक सज्जन कुमार को सरेंडर करना होगा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलटते हुए सज्जन कुमार को दिल्ली कैंट इलाके में 5 लोगों की हत्या के मामले में आपराधिक साजिश और भीड़ को उकसाने का दोषी पाया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'साल 1947 के विभाजन के दौरान सैंकड़ो लोगों का नरसंहार हुआ था, 37 साल बाद दिल्ली में वैसा ही मंजर दिखा। आरोपी राजनीतिक संरक्षण के चलते ट्रायल से बचते रहे।'
सज्जन कुमार के अलावा नेवी के रिटायर्ड अधिकरी कैप्टन भागमल, पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोकर और गिरधारी लाल को भी दोषी करार दिया है। इन तीनों को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इनके अलावा पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोकर को भी दोषी करार पाया गया, जिन्हें निचली अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई थी। अब हाईकोर्ट ने सज्जन कुमार के अलावा कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल तथा पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर को भी उम्रकैद की सजा सुनाई है। किशन खोखर तथा पूर्व विधायक महेंद्र यादव को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई गई है।
सिख दंगे पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक सरेंडर करना होगा। बाकी अन्य 6 केसों पर हाई कोर्ट अपना फैसला सुना रहा है। यह पहली बार है जब 34 साल साल पुराने इस मामले में सज्जन को दोषी ठहराया गया है। यह मामला एक हत्याकांड से जुड़ा है जिसमें नवंबर 1984 को दिल्ली छावनी के राजनगर क्षेत्र में एक ही परिवार के पांच सदस्यों को मार दिया गया था। इस हत्याकांड में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार भी आरोपी हैं।
इसी मामले पर हाई कोर्ट की डबल बेंच के जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की बेंच ने बीते 29 अक्टूबर को सीबीआई, पीड़ितों और दोषियों की ओर से दायर अपीलों पर दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली हाई कोर्ट में कुल 7 अपील हैं जिन पर सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट को अपना फैसला सुनाना है।
इससे पहले 1984 सिख दंगा मामले में 2013 में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को निचली अदालत ने बरी कर दिया था, जबकि सज्जन कुमार के अलावा बाकी और आरोपियों को कोर्ट ने दोषी करार दिया था। इसमें पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और दो अन्य लोग शामिल थे।
फैसले का बेसब्री से इंतज़ार
बता दे, पीड़ित पक्ष के अलावा सिख समुदाय के लाखों लोगों को इस फैसले का बेसब्री से इंतज़ार था। बीते कई सालों से 1984 के सिख दंगों से जुड़़ी फाइलों और दस्तावेजों के बीच उलझे आत्मा सिंह लुबाना के लिये सोमवार का दिन बेहद अहम हैं। लुबाना 1984 दंगों के मामलों में लंबे समय से पैरवी कर रहे हैं और हर रोज कोर्ट जाते हैं। दंगे का ये मामला 5 लोगों की मौत से जुड़ा है। जब दिल्ली कैंट इलाके के राजपुर में 1 नवंबर 1984 को हज़ारों लोगों की भीड़ ने दिल्ली केंट इलाके में सिख समुदाय के लोगों पर हमला कर दिया था। इस हमले में एक परिवार के तीन भाइयों नरेंद्र पाल सिंह ,कुलदीप और राघवेंद्र सिंह की हत्या कर दी गयी। वहीं एक दूसरे परिवार के गुरप्रीत और उनके बेटे केहर सिंह की मौत हो गयी थी।
दिल्ली पुलिस ने 1994 में ये केस बंद कर दिया था, लेकिन नानावटी कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 2005 में इस मामले में केस दर्ज किया गया। मई 2013 में निचली अदालत ने इस मामलें में पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर,रिटायर्ड नौसेना के अधिकारी कैप्टन भागमल,गिरधारी लाल और अन्य 2 लोगों को दोषी करार दिया, लेकिन कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। इसके बाद पीड़ित पक्ष और दोषी हाइकोर्ट गए।
क्यों हुए थे दंगे? :
1984 में इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी। जिसके बाद देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। कहा जाता रहा है कि कांग्रेस पार्टी के कुछ कार्यकर्ता इसमें सक्रिय रूप से शामिल थे। इंदिरा गांधी की हत्या सिखों के एक अलगाववादी गुट ने उनके द्वारा अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में करवाई गई सैनिक कार्रवाई के विरोध में कर दी थी।
भारत सरकार की ऑफिशियल रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में इन दंगों में कुल 2800 लोगों की मौत हुई थी। जिनमें से 2100 मौतें केवल दिल्ली में हुई थीं। CBI जांच के दौरान सरकार के कुछ कर्मचारियों का हाथ भी 1984 में भड़के इन दंगों में सामने आया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे।