कोटा से भी बुरा हाल है गुजरात के राजकोट में, दिसंबर के महीने में 134 बच्चों की हुई मौत

By: Pinki Sun, 05 Jan 2020 12:18:05

कोटा से भी बुरा हाल है गुजरात के राजकोट में, दिसंबर के महीने में 134 बच्चों की हुई मौत

राजस्थान में कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला अभी थमा भी नहीं था कि गुजरात के राजकोट के एक सरकारी अस्पताल से भी मासूमों की मौत की घटना सामने आ गई है। बताया जा रहा है कि राजकोट में दिसंबर के महीने में 134 बच्चों की मौत हुई है। हालांकि बच्चों की मौत की वजह कुपोषण, जन्म से ही बीमारी, वक्त से पहले जन्म, मां का खुद कुपोषित होना बताया जा रहा है। दरअसल, अस्पताल के एनआईसीयू में ढाई किलो से कम वजन वाले बच्चों को बचाने की व्यवस्थाएं और क्षमता ही नहीं है और राजकोट में सिविल अस्पताल में मरने वाले सभी बच्चे नवजात थे।

कोटा और जोधपुर में बच्चों पर कहर

बहरहाल बता दें कि राजस्थान में कोटा के जेके लोन अस्पताल में बच्चों के मरने का सिलसिला थम नहीं रहा है। रविवार को यह कड़ा बढ़कर 110 पहुंच गया है। इसके साथ ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर जोधपुर में तो इससे भी बुरे हालात है। यहां दिसंबर के महीने में 146 बच्चों की मौत हो चुकी है। जोधपुर के डॉक्टर एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में हर दिन औसतन करीब 5 बच्चों की मौतें रिकॉर्ड की जा रही है। दिसंबर 2019 के आंकड़ों के मुताबिक यहां 146 बच्चों ने दम तोड़ा है। इनमें 98 नवजात है। मेडिकल कॉलेज जोधपुर के प्रिंसिपल डॉ एसएस राठौड़ का कहना है कि साल 2019 में NICU PICU में कुल 754 बच्चों की मौत हुई, यानी हर माह 62 की मौत हुई लेकिन दिसंबर में अचानक यह आंकड़ा 146 तक जा पहुंचा। सभी मौतें एसएन मेडिकल कॉलेज से जुड़े बच्चों के अस्पताल उम्मेद अस्पताल में हुई है। एसएन मेडिकल कॉलेज से प्राप्त आकड़ों के मुताबिक, इन दोनों ही अस्पतालों में दिसंबर महीने में 4,689 बच्चों को भर्ती कराया गया था। इनमें से 3,002 नवजात थे। इलाज के दौरान कुल 146 बच्चों, जिनमें से 102 नवजात थे, की मौत हो गई।

कोटा के जेके लोन अस्पताल में हुई बच्चो की मौत के बाद राज्य सरकार ने जांच पैनल नियुक्त किया था। विशेषज्ञों की टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि हाइपोथर्मिया (शरीर का तापमान असंतुलित हो जाना) के कारण बच्चों की मौत हुई है। अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की कमी भी इसकी वजह हो सकती है।

हाइपोथर्मिया एक ऐसी आपात स्थिति होती है, जब शरीर का तापमान 95 एफ (35 डिग्री सेल्सियस) से कम हो जाता है। वैसे शरीर का सामान्य तापमान 98।6 एफ (37 डिग्री सेल्सियस) होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल में बच्चे सर्दी के कारण मरते रहे और यहां पर जीवन रक्षक उपकरण भी पर्याप्त मात्रा में नहीं थे। नवजात शिशुओं के शरीर का तापमान 36।5 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, इसलिए उन्हें वार्मरों पर रखा गया, जहां उनका तापमान सामान्य रहता है। हालांकि अस्पताल में काम कर रहे वार्मर की कमी होती गई और बच्चों के शरीर के तापमान में भी गिरावट जारी रही।

वही राज्य के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने स्वीकार किया है कि कोई ना कोई खामी रही होगी। साथ ही यह भी कहा कि जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पुरानी सरकार की तुलना में कम बच्चों की मौत के तर्क को अस्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि हमें सरकार में आए 13 महीने हो चुके हैं। पुरानी सरकारों को दोष देने से काम नहीं चलेगा। सरकार का रुख संतोषजनक नहीं है।

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