नरोदा पाटिया नरसंहार केस : माया कोडनानी बरी, बाबू बजरंगी की उम्र कैद की सजा बरकरार

By: Priyanka Maheshwari Fri, 20 Apr 2018 12:26:03

नरोदा पाटिया नरसंहार केस : माया कोडनानी बरी, बाबू बजरंगी की उम्र कैद की सजा बरकरार

गुजरात में 2002 के नरौदा पाटिया दंगा (नरोदा पाटिया दंगा) मामले में दायर अपीलों पर शुक्रवार को गुजरात हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इस केस में दोषी बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजंरगी की उम्र कैद की सजा बरकार रखी गई है। बजरंगी को पूरी उम्र जेल में रहना होगा। न्यायमूर्ति हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया की पीठ ने मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद पिछले साल अगस्त में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। अगस्त 2012 में एसआईटी मामलों के लिये विशेष अदालत ने राज्य की पूर्व मंत्री और भाजपा नेता माया कोडनानी समेत 32 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी उनमें से सिर्फ माया कोडनानी को ही राहत मिली है। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि माया कोडनानी की वारदात वाली जगह पर मौजूदगी साबित नहीं हुई है। 16 साल पहुले हुए इस नरसंहार के मामले में 97 लोगों की मौत हुई थी।

कोडनानी को 28 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। एक अन्य बहुचर्चित आरोपी बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु पर्यंत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सात अन्य को 21 साल के आजीवन कारावास और शेष अन्य को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था। जहां दोषियों ने निचली अदालत के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, वहीं विशेष जांच दल ने 29 लोगों को बरी किये जाने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में एक बड़ा नरसंहार हुआ था। 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियां जलाने की घटना के बाद अगले दिन जब गुजरात में दंगे भड़के तो नरोदा पाटिया सबसे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। यहां हुए दंगे में 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 33 लोग जख्मी भी हुए थे।

वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात दंगों से संबंधित इस मामले तथा ऐसे ही कई अन्य मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था। इन दंगों में 1,000 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश एक जाति विशेष के लोग थे। इस मामले के प्रारंभिक गवाह 60 वर्षीय दिलवर सैयद ने कहा, "उस खौफनाक मंजर के बारे में सोचते हुए मैंने 10 साल गुजार दिए। पाटिया में मैंने जो कुछ देखा उसे कभी भुला नहीं सकता। इस फैसले से मुझे पूरा तो नहीं, थोड़ा सुकून जरूर मिला है। उसने रुंधे हुए गले से कहा, "कम से कम 100 परिवार बर्बाद हो गए।"

इस मामले में 64 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है। बाकी बचे 61 लोगों पर हत्या, आगजनी और दंगा भड़काने के आरोप थे। इनमें से अधिकांश को जमानत मिल गई थी। इस मामले में अदालत में कुल 327 गवाह और 2,500 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए थे।

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