इस मुल्क में क्यों रातोंरात हटा दी गई गांधीजी की मूर्तियां!
By: Priyanka Maheshwari Sat, 15 Dec 2018 08:32:18
अफ्रीकी देश घाना की नामी-गिरामी यूनिवर्सिटी से महात्मा गांधी की मूर्ति रातोंरात हटा दी गई, क्योंकि अफ्रीकी मूल के लोगों का मानना है कि गांधीजी नस्लभेदी थे। राजधानी अकरा की यूनिवर्सिटी ऑफ घाना में ये मूर्ति दो साल पहले ही भारत-घाना की मैत्री के प्रतीक के तौर पर लगाई गई थी। यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने आरोप लगाया था कि गांधी ने अफ्रीकी ब्लैक के खिलाफ नस्लीय टिप्पणी की थी। यूनिवर्सिटी परिसर में लगी मूर्ति को हटाने के लिए एक प्रोफेसर ने ऑनलाइन प्रोस्टेस्ट कैंपेन शरू किया था। प्रदर्शनकारियों ने 'Gandhi Must Fall' के नाम से प्रोटेस्ट शुरू किया था, जिसके बाद यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने को गांधी की मूर्ति को हटाना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने गांधी पर नस्लीय टिप्पणी करने का आरोप लगाया है। याचिका में गांधी के उद्धरण का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि ब्लैक अफ्रीकन से इंडियन इतने सर्वश्रेष्ठ हैं कि उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। गांधी के खिलाफ लंबे समय तक चल विरोध के बाद यूनिवर्सिटी कैंपस से उनकी मूर्ति को लेगन कैंपस से हटा दिया गया है।
यूनिवर्सिटी ने कहा कि यह ब्लैक अफ्रीकन के आत्म सम्मान का मामला है। उन्होंने कहा कि यह यूनिवर्सिटी द्वारा लिया गया आंतरिक फैसला है। आपको बता दें कि इससे पहले घाना की पूर्व सरकार ने कहा था कि विवाद को टालने के लिए प्रतिमा को किसी दूसरी जगह पर स्थापित किया जाएगा। जिन गांधीजी को पूरी दुनिया में अहिंसा और प्रेम का प्रतीक माना जाता है आखिर क्यों अफ्रीका में उनके खिलाफ इतना गुस्सा है!
भारतीयों से कमतर मानते थे
गांधीजी की खिलाफ गुस्से की वजह अफ्रीका प्रवास के दौरान लिखा उनका एक पत्र है। बता दें कि साल 1893 से 1915 के दौरान महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में एक वकील की हैसियत से काम किया था। इसी दौरान अपने एक पत्र में उन्होंने किसी से जिक्र किया कि भारतीयों और अफ्रीकन लोगों को एक ही दरवाजे से प्रवेश करने की इजाजत है। खत का मजमून शिकायत से भरा था।
साल 1904 में लिखे इस पत्र में लिखा था- भारतीयों के साथ उनका मेलजोल...मैं मानता हूं कि इससे मुझे गुस्सा आ जाता है। 2015 में अफ्रीकी मूल के दो लेखकों ने भी इस बात का उल्लेख किया था कि गांधीजी को अपने और अफ्रीकन लोगों के लिए समान व्यवहार से काफी शिकायत थी। उन्हें डर था कि इससे उनकी आदतें भी खराब हो सकती हैं।
अफ्रीकी मूल के शोधार्थियों अश्विन देसाई और गूलम वाहिद ने सात सालों तक गांधीजी पर शोध किया। उन्होंने उन सारे सालों के बारे में खंगाला, जिस दौरान वे अफ्रीका में रहे। इसके बाद सामने आई किताब द साउथ अफ्रीकन गांधी... ने विवादों के नए झरोखे खोल दिए। लेखकों ने अपनी किताब में लिखा कि गांधीजी आजादी के लिए भारतीयों के संघर्ष को अफ्रीकी लोगों के संघर्ष से बड़ा मानते थे। किताब में इसका भी जिक्र मिलता है कि गांधीजी अफ्रीकी मूल के लोगों को अफ्रीकन काफिर कहा करते थे।
किताब के मुताबिक, 'वर्ष 1904 में जोहेंसबर्ग के एक हेल्थ ऑफिसर को लिखे पत्र में उन्होंने कुली लोकेशन नामक एक स्लम का जिक्र किया। पत्र में उन्होंने साफ लिखा कि कॉन्सिल को काफिरों को भारतीयों के साथ एक ही बस्ती में रहने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए।'
इसमें लिखा गया है कि अगले ही साल जब डर्बन में प्लेग के प्रकोप से सैकड़ों जानें जा रही थीं, गांधीजी ने लिखा कि जब तक भारतीयों और ब्लैक काफिरों को बिना भेदभाव एक साथ इलाज मिलता रहेगा, तब तक बीमारी बनी रहेगी।
गांधीजी के विचारों और उनके कामों को अफ्रीका में दो अलग-अलग तरह से देखा जाने लगा है। उनके आंदोलन ने भारत को आजादी दिलाई तो अफ्रीका और पूरी दुनिया में भी गांधीजी के समर्थकों ने नस्लभेद खत्म करने के लिए काफी काम किया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर इनमें मुख्य नाम हैं, जो महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित थे और पूरी जिंदगी नस्लभेद और रंगभेद को खत्म करने के लिए काम करते रहे।
गांधीजी को अफ्रीका से लौटे 100 साल से ज्यादा बीत चुके हैं। अब सदी बाद आई एक किताब और इसे पढ़ने वाली युवा जमात ने गांधीजी को रेसिस्ट बता एक नए विवाद को जन्म दे दिया है।
Ghandi has fallen!
— Kuukuwa Manful (@Kuukuwa_) December 12, 2018
After the #GhandiMustFall campaign, the University of Ghana has pulled down a statue of Mahatma Gandhi
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