जानिए कैसे चुना इंद्रा गाँधी ने पंजे को कांग्रेस का चिह्न

By: Kratika Sat, 18 Nov 2017 2:13:07

जानिए कैसे चुना इंद्रा गाँधी ने पंजे को कांग्रेस का चिह्न

आजादी के बाद से अब तक कांग्रेस के तीन इलेक्शन सिम्बल रह चुके हैं। 1952 से लेकर 1971 तक कांग्रेस के आप जितने पोस्टर्स देखेंगे एक ही सिम्बल पाएंगे वो है बैलों का जोड़ा। पंडित नेहरू के बाद शास्त्रीजी और इंदिरा गांधी ने भी इसी सिम्बल को बरकरार रखा और इंदिरा गांधी ने 1967 का चुनाव भी इसी सिम्बल पर जीता।

लेकिन 1969 में कांग्रेस के दो धड़े हो गए, कामराज का कांग्रेस और इंदिरा का कांग्रेस। कामराज गुट को चरखा इलेक्शन सिम्बल के तौर पर मिला और इंदिरा ने कांग्रेस के लिए चुना अपने पहले सिम्बल से मिलता जुलता सिम्बल गाय और बछड़ा।

1977 के चुनावों में जब इंदिरा की बुरी हार हुई तो फिर कांग्रेस में दो फाड़ हो गए, तमाम नेताओं ने एक नई पार्टी बना ली और इलेक्शन कमीशन ने इंदिरा को कहा कि वो अपनी नई पार्टी के लिए एक नया सिम्बल चुने।

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इंदिरा आंध्र में नरसिंहराव के पास थीं, उसी दौरे में वो कांची पीठ के शंकराचार्य से मिलने गई थीं। शंकराचार्य उस दिन मौन व्रत पर थे, इंदिरा ने सारी बातें बताकर पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए, संन्यास ले लूं या फाइट करूं तब भी शंकराचार्य मौन रहे,लेकिन एक घंटे इंतजार के बाद जब वो हाथ जोड़कर उठने लगीं तो शंकराचार्य ने बस इतना कहा कि अपने धर्म का पालन करो और इंदिरा की तरफ आर्शीवाद मुद्रा में अपने दायां हाथ उठा दिया।

बूटा सिंह के साथ कुछ नेता जब दिल्ली में इलेक्शन कमीशन के दफ्तर गए तो कमीशन ने उन्हें तीन सिम्बल दिए साइकिल, हाथी और पंजा। उन्हें अगले दिन सुबह 10 बजे तक एक सिम्बल फायनल करके देन था। ऐसे में बूटा सिंह ने बाहर निकलकर फोन किया और इंदिरा को साऱी बात बताई। घंटों तक चर्चा चली और इंदिरा ने उन्हें हाथ का सिम्बल चुनने को कहा।

ऐसा क्यों हुआ, कहते है की इंदिरा ने शंकराचार्य का आशीर्वाद वाला हाथ देखकर ही पंजा चुनाव चिह्न चुना था। सच कुछ भी हो लेकिन ये तय है कि अगर इंदिरा साइकिल या हाथी में से कोई एक चुन लेतीं तो यूपी की राजनीति में कहानी कुछ और ही होती।

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