आज दुनिया भर में भले ही अंग्रेजी भाषा का चलन हो, लेकिन हम भारतीयों के लिए हिंदी भाषा की जगह कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। इससे पहले ही भारत का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा बन चुकी थी। उस समय देश में कई भाषाएं थी। इस वजह से राजभाषा क्या बने, यह तय करना एक चुनौती थी। तब संविधान सभा ने लंबी बहस के बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का फैसला किया। तब से हर साल यह तारीख 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाई जाती है। बता दें, 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए पहल की थी। गांधीजी ने हिंदी को जनमानस की भाषा भी बताया था।
जब हिंदी भाषा देश राजभाषा चुनी गई थी, उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाए। भारत में पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था। तब से लेकर आजतक 14 सिंतबर को हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। हम सभी अंग्रेजी भाषा को सीखने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि कम ही लोग जानते हैं आखिर ये दिन क्यों मनाया जाता है और इस दिन का क्या महत्व है। इए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में इसका उल्लेख है। इसके अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है। इसी को याद करते हुए 1953 से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई। हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने को लेकर गैर-हिंदी भाषी लोगों का विरोध था। इस वजह से अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा बनाया गया। आज, हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हमारे देश में 77% लोग हिंदी बोलते, समझते और पढ़ते हैं।
हिंदी दिवस पर हर साल, भारत के राष्ट्रपति भाषा के प्रति योगदान के लिए लोगों को राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित करते हैं। भारत में हिंदी भाषा का इतिहास इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार के इंडो-आर्यन शाखा से है। जिसे देवनागरी लिपि में भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में लिखा गया है।
लॉर्ड विलियम बैंटिक को भारत में गवर्नर-जनरल रहते हुए किए गए आर्थिक और सामाजिक सुधारों के लिए जाना जाता है, लेकिन उनकी नीतियों से भारत को नुकसान भी उठाना पड़ा था। लॉर्ड बैंटिक का जन्म 14 सितंबर 1774 को हुआ। वे 1828 में बंगाल के गवर्नर बने और 1833 से 1835 तक भारत के गवर्नर जनरल रहे। इस दौरान उन्होंने भारतीय न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए बहुत कदम उठाए।
पहला बड़ा कदम था, न्याय व्यवस्था से पारसी को हटाकर उसकी जगह अंग्रेजी को लागू करना। साथ ही हायर एजुकेशन में अंग्रेजी उन्होंने ही दाखिल की, जिसने आगे चलकर कई भारतीयों के लिए विदेश में जाकर पढ़ने का रास्ता खोला। इसके अलावा, एक और कदम उन्होंने उठाया, वह था सती प्रथा का अंत। साथ ही उन्होंने मानव बलि, अनचाहे बच्चे की हत्या और ठगी खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए।
कई विद्वान यह भी कहते हैं कि लॉर्ड बैंटिक ने भारत में पश्चिमीकरण की शुरुआत की और कहीं न कहीं यही 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का कारण बना।
क्या गायब हो जाएगी हिंदी भाषा?
ये सच है कि आज अंग्रेजी भाषा का पलड़ा भारी है। आज भी देश में लोगों को लगता है जिसे ज्यादा अंग्रेजी आती है वह ज्ञानी है। लोग उन्हें हाई प्रोफाइल समझने लगते हैं, नौकरी के दौरान भी व्यक्ति के अनुभव से ज्यादा कई कंपनियां ये देखती है कि उम्मीदवार की पकड़ अंग्रेजी भाषा में कितनी है। यदि समय के साथ ऐसा ही चलता रहा तो हिंदी भाषा लोगों के बीच से कहीं न कहीं गायब होती चली जाएगी और अंग्रेजी भाषा का दायरा बढ़ता चला जाएगा। अगर आज भी हमने भाषा को लेकर सतर्कता नहीं बरती तो वो दिन दूर नहीं जब हिंदी भाषा हमारे बीच से बिल्कुल गायब हो जाएगी। यदि हमें हिंदी भाषा के महत्व को जिंदा रखना है तो इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाना होगा। साथ ही सरकारी और प्राइवेट ऑफिस के कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता देनी होगी। इसी के साथ सिर्फ अंग्रेजी भाषा के आधार पर किसी भी इंसान की काबिलियत को न आंका जाए। अंग्रेजी भाषा के फेक भ्रम को हमें और आपको जहन से निकालना हो, ताकि आने वाली पीढ़ी हिंदी भाषा को और मजबूत बना सके।