कंप्यूटर निगरानी विवाद: केंद्र सरकार के फैसले पर भड़के राहुल गांधी, कहा - पुलिस राज बनाने से समस्याएं हल नहीं होंगी, मोदी 'असुरक्षित तानाशाह'
By: Pinki Sat, 22 Dec 2018 08:16:43
मोदी सरकार ने एक ऐसा आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब किसी भी कंप्यूटर का डेटा सरकार खंगाल सकती है। गृह मंत्रालय ने कंप्यूटर के डेटा की जांच के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो से लेकर NIA तक दस केंद्रीय एजेंसियां को ऐसे अधिकार दिए गए हैं जिससे वह अब किसी भी कंप्यूटर में मौजूद, रिसीव और स्टोर्ड डेटा समेत किसी भी जानकारी की निगरानी, इंटरसेप्ट और डिक्रिप्ट कर सकती हैं।
राहुल गांधी का केंद्र सरकार पर हमला
इस आदेश के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि देश को 'पुलिस राज' में तब्दील करने से मोदी की समस्याएं हल नहीं होंगी। उन्होंने आरोप लगाया कि इससे सिर्फ यही साबित होने वाला है कि मोदी एक 'असुरक्षित तानाशाह' हैं। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, 'मोदी जी, भारत को पुलिस राज में बदलने से आपकी समस्याएं हल नहीं होने वाली है। 'इससे एक अरब से अधिक भारतीय नागरिकों के समक्ष सिर्फ यही साबित होने वाला है कि आप किस तरह के असुरक्षित तानाशाह हैं'।
केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा ने गुरुवार को इस बारे में आदेश जारी किए। इन 10 एजेंसियों में खुफिया ब्यूरो (आईबी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), सिग्नल खुफिया निदेशालय (जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम में सक्रिय) और दिल्ली पुलिस शामिल हैं। इस आदेश के अनुसार सभी सब्सक्राइबर या सर्विस प्रोवाइडर और कंप्यूटर के मालिक को जांच एजेंसियों को तकनीकी सहयोग देना होगा। अगर वे ऐसा नहीं करते, तो उन्हें 7 साल की सज़ा देने के साथ जुर्माना लगाया लगाया जा सकता है। इसके बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला और इसे निजता के अधिकार पर हमला बताया। गृह मंत्रालय ने आईटी एक्ट, 2000 के 69 (1) के तहत यह आदेश दिया है जिसमें कहा गया है कि भारत की एकता और अखंडता के अलावा देश की रक्षा और शासन व्यवस्था बनाए रखने के लिहाज से जरूरी लगे तो केंद्र सरकार किसी एजेंसी को जांच के लिए आपके कंप्यूटर को एक्सेस करने की इजाजत दे सकती है।
Converting India into a police state isn’t going to solve your problems, Modi Ji.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 21, 2018
It’s only going to prove to over 1 billion Indians, what an insecure dictator you really are. https://t.co/KJhvQqwIV7
क्या कहता है आदेश
आदेश में कहा गया, ‘उक्त अधिनियम (सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69) के तहत सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी कंप्यूटर सिस्टम में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना के अंतरावरोधन (इंटरसेप्शन), निगरानी (मॉनिटरिंग) और विरूपण (डीक्रिप्शन) के लिए प्राधिकृत करता है।’ सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 69 किसी कंप्यूटर संसाधन के जरिए किसी सूचना पर नजर रखने या उन्हें देखने के लिए निर्देश जारी करने की शक्तियों से जुड़ी है।
पहले के एक आदेश के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के तहत फोन कॉलों की टैपिंग और उनके विश्लेषण के लिए खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को अधिकृत करने या मंजूरी देने का भी अधिकार है।
आदेश पर कांग्रेस का जोरदार हमला
- हालांकि, सरकार के इस आदेश पर कांग्रेस ने जोरदार हमला किया। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार का यह आदेश मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। इस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार भी यह निजता आपका मौलिक अधिकार है। निजता के अधिकार पर यह आदेश चोट पहुंचाता है। इस आदेश से सरकार देश के हर नागरिक की पूरी जानकारी को देखने की अनुमति दे रही है। इससे प्रजातंत्र को भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है। हमने ये कहा है कि सरकार की तरफ से एक भारी संख्या में जो सम्मानित लोग हैं, सांसद हैं या बड़े अधिकारी या सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के जज के टेलीफोन भी चेक हो रहे हैं। हम इसका विरोध करेंगे। यह किसी भी प्रजातंत्र के लिए स्वीकार्य नहीं है।
- कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इसे निजता पर सरकार का हमला करार दिया और ट्वीट कर कहा कि ' अबकी बार, निजता पर वार। मोदी सरकार खुलेआम निजता के अधिकार का हनन कर रही और मज़ाक उड़ा रही है। पिछला चुनाव हारने के बाद मोदी सरकार अब आपके कंप्यूटर की जासूसी करना चाहती है। NDA के DNA में बिग ब्रदर सिंड्रोम सचमुच में समाहित है।'
गृह मंत्रालय की सफाई
बहरहाल, अपनी सफाई में गृह मंत्रालय ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून-2000 में पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं और टेलीग्राफ कानून में ‘‘समान सुरक्षा उपायों’’ के साथ ऐसे ही प्रावधान और प्रक्रियाएं पहले से मौजूद हैं। मंत्रालय ने कहा कि कंप्यूटर की किसी सामग्री को देखने या उसकी निगरानी करने के ‘‘हर मामले’’ में सक्षम अधिकारी, जो केंद्रीय गृह सचिव हैं, की मंजूरी लेनी होगी।
बयान के मुताबिक, ‘‘मौजूदा अधिसूचना टेलीग्राफ कानून के तहत जारी अधिकृति जैसी ही है। जैसा कि टेलीग्राफ कानून के मामले में होता है, समूची प्रक्रिया एक ठोस समीक्षा तंत्र पर निर्भर होगी। हर एक मामले में गृह मंत्रालय या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी जरूरी होगी। गृह मंत्रालय ने किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी या सुरक्षा एजेंसी को अपने अधिकार नहीं दिए हैं।’’ गृह मंत्रालय ने अपने पक्ष को विस्तार से बताने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2009 के नियम-4 का इस्तेमाल किया।