अमृतसर ट्रेन हादसा : एक दिन बाद भी बेटे की लाश का बाकी हिस्सा तलाश रहा है यह परिवार, हादसे से जुड़ी कुछ तस्वीरें
By: Priyanka Maheshwari Sun, 21 Oct 2018 00:11:49
अमृतसर के जोड़ा फाटक के पास शुक्रवार की शाम दशहरा dussehra 2018 के मौके पर रावण दहन देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ी थी। लोग रेल की पटरियों पर खड़े होकर रावण दहन देख रहे थे, तभी अचानक तेज रफ्तार में ट्रेन आई और सैकड़ों लोगों को कुचलती हुई चली गई। ट्रेन जालंधर से अमृतसर आ रही थी तभी जोड़ा फाटक पर यह हादसा हुआ। बता दे, इस हादसे में 61 लोगों की मौत हो गई है और 72 घायलों को अमृतसर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हादसा इतना बड़ा था कि मरने वालों की तादाद और बढ़ सकती है। हादसे के बाद ट्रैक के दोनों ओर 150 मीटर तक शव बिखरे हुए नजर आ रहे थे। बता दें कि मौके पर कम से कम 300 लोग मौजूद थे जो पटरियों के निकट एक मैदान में रावण दहन देख रहे थे। चश्मदीदों का कहना है कि पटाखों के शोर में किसी को ट्रेन का हॉर्न सुनाई नहीं दिया और दो ट्रेनें पटरियों पर खड़े लोगों को रौंदते हुए गुजर गईं। मंजर ऐसा था कि किसी का पैर कहीं पड़ा था, तो किसी का सिर कहीं पड़ा था।
हादसे के बाद रेलवे ट्रैक पर पड़े एक सिर की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। ये कृष्ण नगर में रहने वाले मनीष की है। उनका पूरा परिवार शुक्रवार रात से ही बेटे की लाश का बाकी हिस्सा तलाश रहा है। उनकी मांग है कि उनके बेटे की लाश के बाकी अवशेष दिलाने में पुलिस मदद करे।
मुख्य अतिथि नवजोत कौर सिद्धू का देर से पहुंचना
दरअसल, ऐसा माना जा रहा है कि अगर रावण दहन कार्यक्रम में पंजाब कांग्रेस की नेता नवजोत कौर सिद्धू देर से पहुंची थी। अगर वह समय पर पहुंचतीं तो समय से रावण दहन हो जाता, और संभव है कि लोग वहां से हट भी गये होते। बताया जा रहा है कि पंजाब कांग्रेस की नेता नवजोत कौर सिद्धू को 4.30 में पहुंचना था, मगर वब 6 बजे के बाद पहुंचीं थीं। करीब 6.15 बजे। खबरों के मुताबिक नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू घटना के वक्त मंच पर मौजूद थी। हादसे के बाद वह वहां से चली गई।
आयोजकों का इंतजाम सही नहीं था
दरअसल, जिस जगह पर रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, उसके हिसाब से आयोजकों को काफी तैयारियां करने की जरूरत थी। आयोजकों ने भीड़ और मेले के मद्देनजर इंतजाम सही नहीं किया था। आयोजकों ने रावण दहन देखने के लिए एलईडी स्क्रीन का भी इस्तेमाल किया था, जिसका एक भाग पटरी की तरफ था। यही वजह है कि पटरियों पर लोग खड़े होकर रावण दहन देख रहे थे।
ज्यादातर बच्चों की मौत भगदड़ से हुई
ज्यादातर बच्चे ट्रेनों की चपेट में आने से नहीं, बल्कि हादसे के दौरान मची भगदड़ में मारे गए। जब ट्रेनों के आने से लोग भागने लगे तो बच्चों की अंगुलियां अपने माता-पिता से छूट गईं। वे रेलवे ट्रैक के आसपास पड़े पत्थरों पर गिर गए। भीड़ ने भी बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दिया। हालात ये थे कि बच्चों की छोटी-छोटी चप्पलें, खिलौने, चाॅकलेट, टाॅफियां रेलवे लाइनों पर बिखरी थीं। हादसे में कितने बच्चों की मौत हुई है, इसका सही अांकड़ा अब तक नहीं सामने नहीं आया है।
रेलवे को आयोजन का पता नहीं
वही खबरे यह भी आ रही है कि इस पूरे कार्यक्रम के बारे में रेलवे को सूचित नहीं किया गया था। यही वजह है कि रेलवे ने एयहतियातन कोई कदम नहीं उठाया। वहीं रेलवे का कहना है कि अंधेरे की वजह से भी ड्राइवर भीड़ का अनुमान लगाने में नाकामयाब रहा।