गर्मियों में उत्तराखंड की इन झीलों में डुबकी लगाने से होती है आनंद की प्राप्ति

By: Priyanka Maheshwari Tue, 20 Aug 2019 5:40:58

गर्मियों में उत्तराखंड की इन झीलों में डुबकी लगाने से होती है आनंद की प्राप्ति

उत्तर भारत का बेहद मनोरम राज्य उत्तराखंड उच्च पर्वत, मखमली घास, हरे-भरे हरे चरागाह, कुछ प्रमुख भौगोलिक गुण हैं जो हिमालयी राज्य उत्तराखंड को परिभाषित करते हैं। फुरसती, साहसिक और धार्मिक पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थव्यस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और बाघ संरक्षण-क्षेत्र और नैनीताल, अल्मोड़ा, कसौनी, भीमताल, रानीखेत और मसूरी जैसे निकट के पहाड़ी पर्यटन स्थल जो भारत के सर्वाधिक पधारे जाने वाले पर्यटन स्थलों में हैं। उत्तराखण्ड में, जिसे "देवभूमि" भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के कुछ सबसे पवित्र तीर्थस्थान है और हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से तीर्थयात्री मोक्ष और पाप शुद्धिकरण की खोज में यहाँ आ रहे हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री, को क्रमशः गंगा और यमुना नदियों के उदग्म स्थल हैं, केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित) और बद्रीनाथ (भगवान विष्णु को समर्पित) के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के छोटा चार धाम बनाते हैं, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम परिपथ में से एक है। हरिद्वार के निकट स्थित ऋषिकेश भारत में योग क एक प्रमुख स्थल है और जो हरिद्वार के साथ मिलकर एक पवित्र हिन्दू तीर्थ स्थल है। इस राज्य की खूबसूरत झीलें किसी ना किसी पौराणिक कहानी से जुडी हुई है, जहां प्रकृति सांस लेती हुई प्रतीत होती है। उत्तराखंड के बेहद चुनौतीपूर्ण ऊंचाइयों पर ये खूबसूरत झीलें पर्वतीय शिखरों के बीच में स्थित है।

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# रूपकुंड झील

गढ़वाल हिमालय के अन्तर्गत अनेक सुरम्य ऐतिहासिक स्थल हैं जिनकी जितनी खोज की जाय उतने ही रहस्य सामने आ जाते हैं। इन आकर्षक एवं मनमोहक स्थलों को देखने के लिये प्राचीन काल से वैज्ञानिक, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ताओं भूगर्भ विशेषज्ञों एवं जिज्ञासु पर्यटकों के क़दम इन स्थानों में पड़ते रहे हैं। यहां उच्च हिमालय क्षेत्र के अन्तर्गत अनेक ताल एवं झील हैं जिनमें उत्तरांचल के चमोली ज़िले के सीमान्त देवाल विकास खांड में समुद्र तल से 16200 फुट की ऊंचाई पर स्थित प्रसिद्ध नंदादेवी राजजात यात्रा मार्ग पर नंदाकोट, नंदाघाट और त्रिशूल जैसे विशाल हिम पर्वत शिखरों की छांव में चट्टानों तथा पत्थरों के विस्तार के बीच फैला हुआ प्रकृति का अनमोल उपहार एवं अद्वितीय सौन्दर्य स्थान रूपकुंड एक ऐसा मनोरम स्थल है जो अपनी स्वास्थ्यवर्धक जलवायु, दिव्य, अनूठे रहस्यमय स्वरूप और नयनाभिराम दृश्यों के लिए जाना जाता है। यह रूपकुंड झील त्रिशूली शिखर (24000 फीट) की गोद में ज्यूंरागली पहाड़ी के नीचे 150-200 फीट ब्यास (60 से 70 मीटर लम्बी), 500 फीट की परिधि तथा 40 से 50 मीटर गहरी हरे-नीले रंग की अंडाकार (आंख जैसी) आकृति में फैली स्वच्छ एवं शांत मनोहारी झील है। इससे रूपगंगा जलधारा निकलती है। अपनी मनोहारी छटा के लिये यह झील जिस कारण अत्यधिक चर्चित है वह है झील के चारों ओर पाये जाने वाले रहस्यमय प्राचीन नरकंकाल, अस्थियां, विभिन्न उपकरण, कपड़े, गहने, बर्तन, चप्पल एवं घोड़ों के अस्थि-पंजर आदि वस्तुऐं। रूपकुंड अपनी रहस्यमयी झील के लिए जाना जाता है, माना जाता है यहां की कई साल पुराने शव झील में तैरते दिखाई देते है। यह पूरा इलाका बर्फीला है तो ये कंकाल रूपी शव अच्छी अवस्था में ही मौजूद हैं। इस झील का रहस्य विज्ञान को भी चुनौती दे चुका है। रहस्य के अलावा यह पहाड़ी इलाका साहसिक ट्रेकिंग के लिए जाना जाता है। आपको ट्रेकिंग के दौरान खूबसूरत घाटियां, हिमालय वनस्पतियां और ग्लेशियर से ढके हम पर्वतों को देखने का मौका मिलेगा।

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# देवरिया ताल

देवरिया ताल हरे भरे जंगलों से घिरी हुई यह एक अद्भुत झील है। इस झील के जल में गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और नीलकंठ की चोटियों के साथ चौखम्बा की श्रेणियों की स्पष्ट छवि प्रतिबिंबित होती है। समुद्र तल से 2438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झील चोपटा - उखीमठ रोड से 2 किमी की दूरी पर स्थित है। यह झील यहाँ आने वाले यात्रियों को नौका विहार, कांटेबाजी और विभिन्न पक्षियों को देखने के अवसर प्रदान करती है। किंवदंतियों के अनुसार देवता इस झील में स्नान करते थे अतः पुराणों में इसे ‘इंद्र सरोवर' के नाम से उल्लेखित किया गया है। ऋषि-मुनियों का मानना है ‘यक्ष' जिसने पांडवों से उनके वनवासकाल के दौरान सवाल किए थे और जो पृथ्वी में छुपे हुए प्राकृतिक खजानों और वृक्षों की जड़ों का रखवाला है, इसी झील में रहता था।

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# हेमकुंट झील

हेमकुंट साहिब चमोली जिला, उत्तराखंड, भारत में स्थित सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह हिमालय में 4632 मीटर (15,200 फुट) की ऊँचाई पर एक बर्फ़ीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है। इन सात पहाड़ों पर निशान साहिब झूलते हैं। इस तक ऋषिकेश-बद्रीनाथ साँस-रास्ता पर पड़ते गोबिन्दघाट से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। यहाँ गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब सुशोभित है। इस स्थान का उल्लेख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में आता है। इस कारण यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो दसम ग्रंथ में विश्वास रखते हैं। हेमकुंट साहिब के पास स्थित हेमकुंट झील एक पवित्र झील है, जिसका पानी आठ महीने तक जमा रहता है। लोककथाओं के अनुसार, सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने इस झील के किनारे तप किया था। उसके अलावा, यह भी माना जाता है कि इस पवित्र जगह में मेधासा के साथ अन्य प्रचारकों की ने भी तप किया है। हेमकुंट जाने वाले भक्त पहले इस झील में स्नान करते हैं, फिर अंदर मत्था टेकते हैं।

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# सतोपंथ झील

उत्तराखंड में स्थित सतोपंथ झील, यहाँ के प्राकृतिक झीलों में से एक है। यह झील न सिर्फ धार्मिक लिहाज़ से बल्कि अपने अद्वितीय प्राकृतिक सौन्दर्य की वजह से भी विश्व के पर्यटन मानचित्र में दर्ज है। सतोपंथ झील उत्तरखंड में हिमालय पर्वत पर बसा एक हिमरूप झील है। चौखंबा शिखर की तलहटी पर बसा, यह उत्तराखंड के सुरम्य झीलों में से एक है।इस पवित्र धार्मिक झील से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से दो कथाएं सबसे ज़्यादा लोगों के बीच प्रसिद्द हैं। झील के नाम सतोपंथ का अर्थ है, 'सतो' मतलब 'सत्य' और 'पंथ' मतलब 'रास्ता', यानि 'सत्य का रास्ता'। सतोपंथ झील सिर्फ एक धार्मिक स्थल ही नहीं, उत्तराखंड का ट्रेकिंग क्षेत्र भी है। सतोपंथ ग्लेशियर में ट्रेकिंग के कई मुश्किल पड़ावों से गुज़ारना पड़ता है क्यूंकि ट्रेकिंग के दौरान आपको हिमालय क्षेत्र के कई ढलान, बीहड़ और ऊँचे-नीचे क्षेत्रों से गुज़रना होता है।

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# केदारताल

केदारताल हिमालय के सुंदरतम स्थलों में से एक है। यह मध्य हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है इसमें जोगिन शिखर पर्वत श्रृंखला के ग्लेशियरों का पवित्र जल है यह समुद्र तल से 15000 फुट से कुछ अधिक ऊंचाई पर स्थित है। इसके पास ही मृगुपंथ और थलयसागर पर्वत हैं। केदारताल से केदारगंगा निकलती है जो भागीरथी की एक सहायक नदी है। कहीं शांत और कहीं कलकल करती यह नदी विशाल पत्थरों और चट्टानों के बीच से अपना रास्ता बनाती है। कहा जाता है कि, देवतायों और असुरों के बीच होने वाले समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान शिव ने मंथन से निकले विष को पिया था, तो उन्होंने अपने कंठ की ज्वाला को शांत करने के लिए केदार ताल का जल पीकर ही शांत किया था। गढ़वाली में इसे ‘अछराओं का ताल' कहा जाता है।

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# बूल्ला तालाब

लैंसडाउन के प्रमुख आकर्षक स्थलों में से एक बूल्ला तालाब के अप्राकृतिक झील के निर्माण में गढवाल राइफल्स के जवानों ने बहुत मद्द की थी, जिसके कारण यह झील उन्हें समर्पित है। इस झील का नाम गढवाली शब्द "बूल्ला" पर रखा गया है, जिसका अर्थ है "छोटा भाई"। सैलानी इस झील में नौका विहार और पैडलिंग का आनंद ले सकते हैं। इस में बच्चों के खेलने के लिए पार्क, खूबसूरत फव्वारे और बांस के मचान लगाए गए हैं।

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# भीमताल झील

भीमताल झील उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित सबसे बड़ी झील है। यह झील समुद्र तल से 1332 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसकी लम्बाई 1674 मीटर, चौड़ाई 427 मीटर और गहराई 30 मीटर है। यह ताल नैनीताल से बड़ा है। खुले आसमान और विस्तृत धरती का सही आनन्द लेने वाले पर्यटक अधिकतर भीमताल में ही रहना पसन्द करते हैं। नैनीताल की तरह इसके भी दो कोने हैं- तल्ली ताल एवं मल्ली ताल। इसके यह दोनों कोने सड़कों से जुडे हुए है। यहाँ पर नौका विहार का भरपूर आनन्द लिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के मत्स्य विभाग की ओर से मछली के शिकार की भी यहाँ अच्छी सुविधा है।

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# नैनी झील

नैनीताल का मुख्य आकर्षण् यहाँ की नैनी झील है। स्‍कंद पुराण में इसे त्रिऋषि सरोवर भी कहा गया है। कहा जाता है कि जब अत्री, पुलस्त्य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिला तो उन्होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर उसमें भरा। इस झील में बारे में कहा जाता है यहाँ डुबकी लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना मानसरोवर नदी में नहाने से मिलता है। यह झील ६४ शक्ति पीठों में से एक है।

इस सुंदर झील में नौकायन का आनंद लेने के लिए लाखों देशी-विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं। झील के पानी में आसपास के पहाड़ों का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। रात के समय जब चारों ओर बल्बों की रोशनी होती है तब तो इसकी सुंदरता और भी बढ़ जाती है। झील के उत्‍तरी किनारे को मल्‍लीताल और दक्षिणी किनारे को तल्‍लीताल करते हैं। यहाँ एक पुल है जहाँ गांधीजी की प्रतिमा और पोस्‍ट ऑफिस है। यह विश्‍व का एकमात्र पुल है जहाँ पोस्‍ट ऑफिस है। इसी पुल पर बस स्टेशन, टैक्सी स्टैंड और रेलवे आरक्षण काउंटर भी है। झील के दोनों किनारों पर बहुत सी दुकानें और विक्रय केन्द्र हैं जहाँ बहुत भीड़भाड़ रहती है। नदी के उत्तरी छोर पर नैना देवी मंदिर है।

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