क्या हुआ ‘मेगा बजट’ इन फिल्मों का, लागत 2000 करोड़, क्या सिर्फ घोषणा होकर रह गई

By: Geeta Sat, 24 Mar 2018 3:44:02

क्या हुआ ‘मेगा बजट’ इन फिल्मों का, लागत 2000 करोड़, क्या सिर्फ घोषणा होकर रह गई

लेखक निर्देशक के.वी.विजयेन्द्र प्रसाद और राजामौली की टीम ने भारतीय सिने इतिहास को एक ऐसी फिल्म दी है जो दोबारा कभी नहीं बनायी जा सकती। इस फिल्म की सफलता अप्रीतम है जिसे फिर नहीं दोहराया जा सकता। ‘बाहुबली’ सीरीज ने सिने इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में स्वयं को दर्ज करवा लिया है। यह सिने इतिहास की यादगार फिल्मों—मुगल-ए-आजम, आन, मदर इंडिया, शोले जैसी असंख्य फिल्मों में शामिल हो चुकी है। इस फिल्म की सफलता ने निर्माताओं को अपना खजाना लुटाने को विवश कर दिया है। अब बडे बजट की भव्य फिल्मों को फिल्माने की तैयारी की जा रही है।

इस सिलसिले में जो समाचार प्राप्त हो रहे हैं उनके मुताबिक तीन ऐसी फिल्मों की घोषणा हो चुकी है जिनका कुल बजट 2000 करोड़ रुपये है। इनमें सबसे महंगी फिल्म मलयालम फिल्मों के सुपर सितारे मोहनलाल बनाने जा रहे हैं। ‘रंदमूझम’ नाम से बनने वाली यह फिल्म ‘महाभारत’ पर आधारित बतायी जा रही है। इस फिल्म में एक एनआरआई व्यापारिक घराना 1000 करोड की लागत लगाने को तैयार है। हालांकि पहले इस फिल्म के लिए 750 करोड का बजट निर्धारित किया गया था, जब बाहुबली-2 ने प्रदर्शन के बाद बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड कारोबार किया तो इसका बजट बढाकर 1000 करोड कर दिया गया। इसके अतिरिक्त दो और ऐसी फिल्मों की घोषणा हुई है जिनका कुल बजट 1000 करोड है। यह फिल्में हैं रामायण और शिवाजी।

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पहली फिल्म का निर्माण निर्माता अल्लू अरविंद, मधु मंटेना और नमित मल्होत्रा करने जा रहे हैं। यह तीनों पौराणिक महाकाव्य ‘रामायण’ को परदे पर जीवंत करना चाहते हैं। इसके निर्माताओं में शामिल मल्होत्रा की कंपनी हॉलीवुड फिल्मों के स्पेशल इफेक्ट का संचालन करती है। अल्लू और मधु मंटेना बडे निर्माताओं में शुमार होते हैं जो फिल्म के कथानक के अनुरूप पैसा लगाने को हमेशा तैयार रहते हैं।

इस फिल्म के अतिरिक्त अभिनेता रितेश देशमुख द्वारा मराठा सरदार शिवाजी पर फिल्म बनाने की बात सामने आई है। इस फिल्म की घोषणा स्वयं रितेश देशमुख ने नहीं की है बल्कि निर्माता निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने इसकी जानकारी ट्विटर पर दी थी। उन्होंने लिखा रितेश देशमुख शिवाजी महाराज पर 225 करोड़ रुपये की लागत से एक भव्य फिल्म बनाने जा रहे हैं। अब इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा।

‘बाहुबली’ की सफलता से प्रेरित होकर घोषित हुई इन मेगा बजट फिल्मों के लिए एक विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या यह फिल्में उसी तरह से बनायी जा सकेंगी जिस तरह से एस.एस. राजामौली ने अपनी ‘बाहुबली सीरीज’ को बनाया। एक निर्देशक ने अपनी सोच को 5 साल की कडी मेहनत के बाद परदे पर जिस अंदाज में पेश किया उसकी तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं। क्या इन तीनों फिल्मों के निर्माताओं के पास ऐसा कोई निर्देशक है जो एस.एस. राजामौली की तरह समर्पित होकर वर्षों तक सिर्फ एक ही फिल्म को बनाने के लिए वक्त दे सके। और सबसे बडी बात क्या उन निर्देशकों के पास ऐसा नजरिया है जिसके जरिए वे इन फिल्मों के कथानक के साथ न्याय कर सकें। इन फिल्मों को बनाने से पहले इन पर गहन शोध की आवश्यकता है। छोटे से छोटे किरदार को परदे पर मजबूती से पेश करने के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

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निसंदेह राजामौली ने अपनी फिल्म के पात्रों को बडी बारीकी के साथ परदे पर पेश किया। उन्होंने अपने किरदारों की गहराई में जाकर उन्हें दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। इसके बावजूद उनसे कुछ कमियां रह गईं लेकिन वे ऐसी नहीं हैं जिसके लिए उनकी आलोचना की जाए। बडे-बडे कामों को क्रियान्वित करने में ऐसी मामूली गलतियां होना मामूली बात है। कहा जा रहा है कि अल्लू अरविंद मधु मंटेना की ‘रामायण’ पर निर्देशक राम माधवानी पिछले डेढ वर्ष से शोध करने के साथ-साथ इसकी पटकथा लिखने में व्यस्त हैं। राम माधवानी ने उत्कृष्ट फिल्म ‘नीरजा’ दी है। इस फिल्म में उनकी मेहनत और लगन साफ झलकती है। लेकिन यह एक छोटे से परिवार की कहानी थी, ‘रामायण’ एक वृहद् दस्तावेज है उसे प्रस्तुत करने के लिए ऐसी पारखी नजर की जरूरत है, जिसमें छोटे से छोटा किरदार अपना महत्त्व दर्शाने में सफल हो। ‘रामायण’ में धोबी का एक ऐसा किरदार है जिसका एक संवाद ‘राम’ की जिन्दगी और ‘रामायण’ को मोड देने में सफल होता है। यह पात्र उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना की रामायण में रावण का होना।

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इन फिल्मों के लिए एक और अहम् सवाल है और वह है बॉक्स ऑफिस पर इनकी सफलता। पहले भी कहा हर फिल्म बाहुबली नहीं हो सकती। हर फिल्म को बाहुबली की तरह सफलता नहीं मिल सकती। दर्शक इस तरह की फिल्मों को सिर्फ एक बार ही देखना पसन्द करता है, वह लगातार ऐसी फिल्मों को पसंद नहीं करेगा जिसमें भव्य सैट और भव्य दृश्य हों। हालांकि हिन्दुस्तानी दर्शक कल्पना में उडना पसन्द करता है, लेकिन वह कल्पना के साथ वर्तमान को भी देखना पसन्द करता है। ऐसे में इन फिल्मों की सफलता के प्रति आशान्वित होकर इतना भारी भरकम खर्च करना भी अपने आप में एक प्रश्न चिह्न है। हॉलीवुड अपनी फिल्मों पर बहुत पैसा लगाता है लेकिन वहां भी ‘द लाड्र्स ऑफ रिंग्स’ और ‘300’ एक बार ही बनी हैं। दोबारा उस तरह की फिल्म बनाने की कोशिश हॉलीवुड ने भी नहीं की है। शायद उन्हें भी पता है कि इस तरह की फिल्मों को लगातार सफलता मिलना मुश्किल है।

इन तीनों फिल्मों की घोषणा हुई एक वर्ष बीत चुका है लेकिन कोई सुगबुगाहट नहीं हुई। लेकिन जैसे ही आमिर खान की ‘महाभारत’ का समाचार आने लगा वैसे ही मोहनलाल द्वारा निर्मित अभिनीत ‘रंदामूझम’ (महाभारत) की चर्चा होने लगी है। कहा जा रहा है यह फिल्म इस वर्ष के मध्य में फ्लोर पर जाएगी और आगामी वर्ष इसका प्रदर्शन होगा। दो भागों में बनने वाली इस फिल्म का दूसरा भाग पहले भाग के 90 दिन बाद प्रदर्शित किया जाएगा।

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