Review: हिंदू-मुस्लिम के बीच खड़े फर्क पर सवाल करती फिल्म 'मुल्क' ...
By: Priyanka Maheshwari Fri, 03 Aug 2018 1:32:43
तापसी पन्नू-ऋषि कपूर स्टारर फिल्म ‘मुल्क’ सिनेमाघरों तक पहुंच चुकी है और इस फिल्म की कड़ी टक्कर थियेटर्स में ‘फन्ने खां’ और ‘कारवां’ से होने वाली है। तीनों ही फिल्मों में दमदार एक्टर्स हैं और ये तीनों ही फिल्में दर्शकों को अपने ट्रेलर्स के जरिए इंप्रेस कर चुकी हैं। अब थियेटर्स पर इन तीनों का कड़ा इम्तिहान होना है।
वैसे, ट्रेड एक्सपर्ट्स की मानें तो ये फिल्म पहले दिन करीब 2 करोड़ रुपये की कमाई कर सकती है। इस फिल्म को इरफान खान की ‘कारवां’ से ज्यादा अनिल और ऐश की फिल्म ‘फन्ने खां’ से तगड़ा मुकाबला करना होगा। मुल्क के बारे में बात करे तो मुल्क लखनऊ में मार्च 2017 में हुए सैफुल्ला एनकाउंटर से प्रेरित होकर बढ़ती है। यह मूलतः कोर्ट रूम ड्रामा है।
कहानी की नींव में शाहिद (प्रतीक बब्बर) के द्वारा इस्लाम के नाम पर एकबस में रखे बम के फटने से हुई 16 मौतों का मामला है। पुलिस एनकाउंटर में शाहिद मारा जाता है और मोबाइल की दुकान चलाने वाले उसके पिता बिलाल (मनोज पाहवा) के विरुद्ध ऐसे तमाम साक्ष्य मिलते हैं कि वह और उनका परिवार इस आतंकी घटना में शामिल थे। ये सच है या संयोग? बिलाल के बड़े भाई मुराद अली (ऋषि कपूर) को भी आरोपी बनाया जाता और यहां से शुरू होती है बहस कि क्या हर मुस्लिम आतंकवाद को शह देता है? क्या उसकी धर्मिक आस्थाओं वाली पहचानें आतंक को चिह्नित करने का जरिया हैं? क्यों उससे बार-बार देशभक्त होने का सबूत मांगा जाता है? वगैरह-वगैरह।
सरकारी वकील के रूप में आशुतोष राणा के कई सवाल सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर चलने वाले बहस से सीधे प्रेरित हैं। जो चुभते भी हैं। वहीं यहां अपने ससुर के हक में केस लड़ती आरती (तापसी पन्नू) फिल्म के दूसरे हिस्से में फॉर्म में नजर आती हैं। मुराद की तरह आरती भी वकील है। मुराद अदालत में अपने आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ते हैं, जिसमें हिंदू बहू उनके पक्ष में खड़ी है। अनुभव सिन्हा ने तीखे सवालों और बहसों को उठा कर अंततः कहानी को राष्ट्रीय एकता के संदेश से जोड़ा है। उन्होंने वर्तमान राजनीति की जोरदार खबर ली है।
वह हिंदू-मुस्लिम की बात करते हुए दलित विमर्श को भी छूते हैं। कुल मिला कर मुल्क अपनी सामयिक बहस और ऋषि कपूर, तापसी पन्नू, मनोज पाहवा तथा आशुतोष राणा के परफॉरमेंस की वजह से देखने योग्य हैं। इनके बीच होने वाली बहस काफी दिलचस्प है। संवाद दमदार हैं। कभी कभी आप चौंकते भी हैं कि दबी आवाज में होने वाली बातें कैसे खुल कर कह दी गई हैं। इतना जरूर है कि फिल्म में नीना गुप्ता और कुमुद मिश्रा जैसे मंजे हुए ऐक्टरों के हिस्से कुछ खास नहीं आ पाया। इसका कारण यह है कि उनके किरदारों में ही ज्यादा गुंजायश नहीं थी।
ट्रेड एक्सपर्ट गिरिश के मुताबिक सभी कलाकार एक ही खास दर्शक वर्ग को हिट करते हैं ऐसे में कौनसी फिल्म बेहतरीन प्रदर्शन करेगी ये देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि दर्शक अपना पैसा बेस्ट फिल्म में ही लगाना चाहेंगे और फिल्म रिव्यूज ऐसे में उनकी खासी मदद करेंगे।