सत्तर के दशक का वो संगीत, जिसे सुनकर झूमने लगता है मन - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल

By: Pinki Wed, 17 Jan 2018 5:53:51

सत्तर के दशक का वो संगीत, जिसे सुनकर झूमने लगता है मन - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल

अपनी पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ से फिल्मों में पाश्र्व संगीत की अपनी एक पहचान रही है। तब फिल्मों में गीत नहीं होते थे लेकिन दृश्यों के पाश्र्व में संगीत जरूर होता था। धीरे-धीरे फिल्मों में ‘गीत’ बनने लगे जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते थे। हिन्दी सिनेमा में समय-समय पर कई ऐसे संगीतकार आए जिन्होंने अपनी शैली के संगीत से श्रोताओं और दर्शकों को खासा प्रभावित किया। संगीत की दृष्टि से हिन्दी फिल्मों के लिए 70 से 90 के दशक को सुनहरा काल (गोल्डन एरा) कहा जाता है। इन तीन दशकों में अनगिनत फिल्मों का निर्माण हुआ, लेकिन संगीतकार के तौर कुछ ही ऐसे संगीतकार थे, जिनका जादू दर्शकों के सिर चढक़र बोलता था। इन्हीं में थे संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, जिन्हें फिल्म उद्योग में ‘लक्ष्मी प्यारे’ के नाम से जाना जाता है।

लक्ष्मीकांत प्यारेलाल लोकप्रिय भारतीय संगीतकार की जोड़ी है। लक्ष्मीकांत का पूरा नाम लक्ष्मीकांत शांताराम कुदलकर और प्यारेलाल का पूरा ना प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा है। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से उम्र में तीन वर्ष बड़े थे। सन् 1937 में पैदा हुए लक्ष्मीकांत ने प्यारेलाल के साथ मिलकर 1963 से लेकर 1998 तक 635 हिन्दी फिल्मों में संगीत दिया। अपने सुनहरे दौर में उन्होंने हिन्दी सिनेमा के दिग्गज सिनेमाकारों के साथ काम किया। इन में शामिल थे बी.आर. चोपड़ा, यश चोपड़ा, रामानन्द सागर, शक्ति सामंत, देव आनन्द, मनोज कुमार, राजकपूर, मुशीर रियाज, सुभाष घई, मनमोहन देसाई, मोहन कुमार, बोनी कपूर आदि। दो अलग-अलग शख्सियतों का बचपन मुफलिसी में बीता। प्यारेलाल बचपन में फिल्म स्टूडियोज में वायलिन बजाया करते थे और लक्ष्मीकांत सारंगी बजाने का काम करते थे। कहा जाता है एक बार लक्ष्मीकांत लता मंगेशकर के रेडियो कंसर्ट में सारंगी बजा रहे थे। लता उनके सारंगी वादन से खासी प्रभावित हुई और उन्होंने कई संगीतकारों को उन्हें काम देने के लिए कहा। अपने शुरूआती दौर में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल हुस्नलाल भगतलाल के सहायक हुआ करते थे। कुछ समय उन्होंने शंकर जयकिशन के साथ भी काम किया।

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साठ का दशक इस जोड़ी के लिए भाग्यशाली साबित हुआ। वर्ष 1963 में इनके संगीत से सजी पहली फिल्म ‘पारसमणि’ का प्रदर्शन हुआ। हालांकि इससे पहले वे 1962 में एक फिल्म में संगीत दे चुके थे लेकिन वह कभी प्रदर्शित नहीं हुई। ‘पारसमणि’ प्रदर्शित हुई और देखते-देखते यह फिल्म सुपर हिट हो गई। इस फिल्म की सफलता में सिर्फ और सिर्फ लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत का हाथ था। वैसे इस फिल्म के सभी गीत लोकप्रिय हुए, लेकिन ‘हंसता हुआ नूरानी चेहरा, काली जुल्फें रंग सुनहरा. . .’, (लता मंगेशकर) ‘वो जब याद आए बहुत याद आए’, (मोहम्मद रफी) ‘उई माँ उई माँ से क्या हो गया. . .’ को आज भी जब कभी श्रोता सुनते हैं तो झूमने लगते हैं। यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि अपनी पहली फिल्म से ही इस जोड़ी ने ‘ए’ के गायकों से गीत गंवाने में सफलता प्राप्त की। कितने आश्चर्य की बात है कि लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और आशा भौंसले ने अपने करियर के सर्वाधिक गीत इस जोड़ी के संगीत निर्देशन में गाये हैं। मोहम्मद रफी ने अपने करियर में जहाँ 365 गीत गाये वहीं किशोर कुमार ने इनके निर्देशन में 402 गीतों को अपनी आवाज दी।

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अभी ‘पारसमणि’ का खुमार दर्शकों के मन से उतरा भी नहीं था कि वर्ष 1964 में लक्ष्मी-प्यारे के संगीत से सजी एक और फिल्म ‘दोस्ती’ का प्रदर्शन हुआ। राजश्री प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के संगीत ने सफलता की उन ऊचाईयों को छुआ जिसे इससे पहले किसी फिल्म ने नहीं छुआ था। नए सितारों के साथ बनी इस फिल्म की सफलता सिर्फ और सिर्फ संगीत के बूते पर थी। फिल्म में कुल मिलाकर 11 गीत थे और सब एक से बढक़र एक हिट हुए। विशेष रूप से ‘चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे’, ‘राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है’, ‘मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राह में है’। ‘दोस्ती’ ऐसी फिल्म रही जिसने राष्ट्रपति पुरस्कार सहित फिल्मफेयर के नौ पुरस्कार अपनी झोली में डाले। इस फिल्म के लिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने पहला फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। अपने आप में यह किसी आठवें आश्चर्य से कम नहीं था, क्योंकि उस वर्ष उनके सामने ‘संगम’ (शंकर जयकिशन) और ‘वो कौन थी’ (मदन मोहन) थे। बॉलीवुड में चर्चा थी कि इस बार का फिल्मफेयर शंकर जयकिशन को ‘संगम’ के लिए मिलेगा लेकिन पुरस्कार समारोह में लक्ष्मी प्यारे के नाम से जो तहलका मचाया वह तीन दशक तक लगातार सुनाई दिया।

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इसके बाद आई ‘लुटेरा’, एक सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म जिसमें कोई बड़ा सितारा नहीं था। इस फिल्म को सिर्फ लता मंगेशकर के लिए याद किया जाता है जिन्होंने लक्ष्मी प्यारे के संगीत में गीत गाए थे।

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तीन साल तक लगातार छोटे बजट और गैर नामी सितारों वाली फिल्मों में कामयाब संगीत देने वाली इस जोड़ी के लिए 1966 ऐसा वर्ष रहा जब उन्होंने पहली बड़े सितारों वाली फिल्म ‘आये दिन बहार के’ (धर्मेन्द्र आशा पारिख) और ‘प्यार किये जा’ (शशि कपूर, मुमताज़,राजश्री) में संगीत दिया। हालांकि इसी के साथ उन्होंने ‘सती सावित्री’ (तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं तुम्हारी रात हूं), ‘संत ज्ञानेश्वर’ (जोत से जोत जगाते चलो), ‘हम सब उस्ताद हैं’ (अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो, प्यार बांटते चलो), ‘मिस्टर एक्स इन बॉम्बे’ (मेरे महबूब कयामत होगी, आज रूसवाँ तेरी गलियों में मोहब्बत होगी) जैसी नॉन स्टार कास्ट और छोटे बजट की फिल्मों में कर्णप्रिय संगीत दिया। किशोर कुमार अभिनीत मिस्टर एक्स इन बॉम्बे हिन्दी सिनेमा की पहली साइंटिफिक फिल्म थी। कहा जाता है इसी फिल्म पर बोनी कपूर ने शेखर कपूर के निर्देशन में ‘मिस्टर इंडिया’ बनाई थी, जिसे जावेद अख्तर ने लिखा था और संगीत दिया था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। इस फिल्म का एक गीत (काटे नहीं कटते ये दिन ये रात कहनी थी तुम से जो दिल की बात—श्रीदेवी) ‘मिस्टर एक्स इन बॉम्बे’ के गीत (मेरे महबूब कयामत होगी, आज रूसवाँ तेरी गलियों में मोहब्बत होगी) की तरह फिल्माया गया था। दोनों गीतों में नायक छुपा हुआ रहता है और साड़ी में लिपटी हुई नायिका अपने प्रेम को दर्शाती हुई नजर आती है।

1966 की खुमारी अभी गई भी नहीं थी कि 1967 में एक बार फिर से लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपने संगीत से स्वयं को बॉलीवुड में सिरमौर साबित किया। यह वो वर्ष था जब उनकी सबसे ज्यादा फिल्मों का प्रदर्शन हुआ और उन फिल्मों के गीतों की लोकप्रियता ने शिखर स्थान प्रदान किया।

जारी. . . . . . (शेष अगली कड़ी में)

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