रूप चौदस को नरक चतुर्दशी भी कहाँ जाता है, जाने क्यू?
By: Ankur Wed, 11 Oct 2017 5:47:04
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी एवं छोटी दीपावली क रूप में मनाई जाती है। इस दिन सौंदर्य रूप श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। ऐसा करने से भगवान सुंदरता देते हैं। इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। कुछ व्यक्ति इसे छोटी दीपावली कहते हैं। क्योंकि यह दीपावली से एक दिन पहले ही मनाया जाता हैं। कुछ लोग इसे नरक चौदस, रूप चौदस, रूप चतुर्दशी आदि नामों से जानते हैं। तो कुछ इसे नरक पूजा तथा नर्क चतुर्दशी के नाम से जानते हैं। आइये जानते हैं इसके पीछे की कहानी के बारे में।
नरक चतुर्दशी की प्रथम कथा :
पुराने समय की बात है रन्तिदेव नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेव अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं मतलब मैं नरक में जांऊगा।
राजा रन्तिदेव ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेगा। राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे। राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।
नरक चतुर्दशी की द्वितीय कथा :
प्राचीन काल में एक नरकासुर नाम का राजा था। जिसने देवताओं की माता अदिति के आभूषण छीन लिए थे। वरुण देवता को छत्र से वंचित कर दिया था, मंदराचल के मणिपर्वत शिखर पर अपना कब्ज़ा कर लिया था तथा देवताओं, सिद्ध पुरुषों और राजाओं की 16100 कन्याओं का अपहरण कर उन्हें बंदी बना लिया था। कहा जाता हैं कि दुष्ट नरकासुर के अत्याचारों व पापों का नाश करने के लिए श्री कृष्ण जी ने नरक चतुर्दशी के दिन ही नरकासुर का वध किया था और उसके बंदी ग्रह में से कन्याओं को छुड़ा लिया। कृष्ण जी ने कन्याओं को नरकासुर के बंधन से तो मुक्त कर दिया। लेकिन देवताओं का कहना था कि समाज इन्हें स्वीकार नहीं करेगा। इसलिए आप ही इस समस्या का हल बताये। यह सब सुनकर श्री कृष्ण जी ने कन्याओं को समाज में सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा की सहायता से सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।