नवरात्रि स्पेशल : माँ चंद्रघंटा को समर्पित है आज का दिन, जानें इसकी व्रत कथा

By: Ankur Fri, 12 Oct 2018 12:03:59

नवरात्रि स्पेशल : माँ चंद्रघंटा को समर्पित है आज का दिन, जानें इसकी व्रत कथा

नवरात्रि का तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित होता हैं और इस दिन इनके प्रति आस्था रखते हुए कई लोग व्रत रखते हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि व्रत का उचित फल तभी प्राप्त होता हा जब माँ चंद्रघंटा व्रत कथा पढ़ी जाए। इसी के साथ इस व्रत कथा को पढने से मन को संतोष की प्राप्ति होती हैं और जातक निर्भय बन जाता है। माना जाता है कि माँ चंद्रघंटा की पूजा करने और व्रत कथा सुनने मात्र से जातक के पापों का नाश हो जाता हैं। अगर आप भी व्रत कर रहे हैं तो माँ चंद्रघंटा की यह व्रत कथा जरूर सुनें।

देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला। असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवाताओं के इंद्र। महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए।

देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं स्वर्गलोक का राजा बन गया है। देवाताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए स्थान नहीं है।

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यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया। क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र शस्त्र सजा दिए।

इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया। देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है। महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा। अन्य देत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े।

देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया। इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया। हे माता जिस तरह देवताओं को अभयदान देकर निर्भीक किया, उसी तरह हम पर भी कृपा बनाए रखें।

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