नवरात्रि में चाहते है मां की कृपा, तो वास्तु के अनुसार करे पूजा, 10 खास बातें

By: Priyanka Maheshwari Sun, 29 Sept 2019 08:19:02

नवरात्रि में चाहते है मां की कृपा, तो वास्तु के अनुसार करे पूजा, 10 खास बातें

रविवार यानी 29 सितंबर से नवरात्र शुरू हो रहे हैं। भारतीय शास्त्रों व परंपराओं के अनुसार नवरात्र साल में दो बार आते हैं। चैत्र महीने में आने वाले नवरात्र वासंतिक नवरात्र कहलाते हैं। जबकि आश्विन मास शुक्ल प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र शुरू होते हैं। नौ दिनों तक चलने वाले शारदीय नवरात्र में शक्ति या माता रानी की उपासना की जाती है। दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। आज हम आपको नवरात्रि पूजन से जुड़ी वास्तुसम्मत कुछ बातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे मातारानी प्रसन होती हैं। तो आइये जानते हैं वास्तु से जुडी इन बातों के बारे में...

- नवरात्रि के 9 दिनों तक चूने और हल्दी से घर के बाहर द्वार के दोनों ओर स्वस्तिक चिह्न बनाना चाहिए। इससे माता प्रसन्न हो साधक को सुख और शांति देती है, वहीं अक्सर घरों में शुभ कार्यों में हल्दी और चूने का टीका भी लगाया जाता है जिससे वास्तु दोषों का नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति पर नहीं होता है।

- पूजा स्थल को साथ-सुथरा रखना चाहिए। यदि आप ऐसी जगह पर हैं, जहां आपके ऊपर बीम है तो उसे ढंकने के लिए चांदनी का प्रयोग किया जाना चाहिए, जैसे हवन के समय यह बीचोबीच में लगाई जाती है।

- वास्तु में ईशान कोण को देवताओं का स्थल बताया गया है इसलिए नवरात्रि काल में माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में की जानी चाहिए। इस दिशा में शुभता का वैज्ञानिक कारण यह है कि पृथ्वी की उत्तर दिशा में चुंबकीय ऊर्जा का प्रवाह निरंतर होता रहता है जिससे उस स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ता रहता है।

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- दूसरा कारण पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 अंश पूर्व की ओर झुकी हुई है। इस कारण पृथ्वी पूर्व की तरफ हटकर 66.5 पूर्वी देशांतर से यह दैवीय ऊर्जा पृथ्वी में प्रविष्ट होती है, जो ईशान कोण क्षेत्र में पड़ता है।

- दूसरी बात जो गौर करने लायक है कि अखंड ज्योति को पूजन स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए, क्योंकि आग्नेय कोण अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यदि नवरात्रि पर्व के दौरान इस कोण में अखंड ज्योति रखी जाती है तो घर के अंदर सुख-समृद्धि का निवास होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

- वैसे भी वास्तु में बताया गया है कि शाम के समय पूजन स्थान पर ईष्टदेव के सामने प्रकाश का उचित प्रबंध होना चाहिए। इसके लिए घी का दीया जलाना अत्यंत उत्तम होता है। इससे घर के लोगों की सर्वत्र ख्याति होती है।

- नवरात्रि काल में यदि माता की स्थापना चंदन की चौकी या पट पर की जाए तो यह अत्यंत शुभ रहता है, क्योंकि वास्तुशास्त्र में चंदन को अत्यंत शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना गया है जिससे वास्तुदोषों का शमन होता है।

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- इस दौरान साधना किस दिशा में जा रही है, यह बात भी अहम है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। नवरात्रि काल में पूजन के समय आराधक का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए, क्योंकि पूर्व दिशा शक्ति और शौर्य का प्रतीक है। साथ ही इस दिशा के स्वामी सूर्य देवता हैं, जो प्रकाश के केंद्रबिंदु हैं इसलिए साधक को अपना मुख पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए जिससे साधक की ख्याति चारों ओर प्रकाश की तरह फैलती है।

- नवदुर्गा यानी नवरात्रि की 9 देवियां हमारे संस्कार एवं आध्यात्मिक संस्कृति के साथ जुड़ी हुई हैं। इन सभी देवियों को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिंदूर, लाल वस्त्र साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वही अर्पित किए जाते हैं।

- नवरात्रि पूजन में प्रयोग में लाए जाने वाले रोली या कुमकुम से पूजन स्थल के दरवाजे के दोनों ओर स्वस्तिक बनाया जाना शुभ रहता है। इससे माता की कृपा साधक के सारे दुखों को हर सुखों के दरवाजे खोल देती है। साथ ही यह रोली, कुमकुम सभी लाल रंग से प्रभावित होते हैं और लाल रंग को वास्तु में शक्ति और सत्ता का प्रतीक माना गया है।

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