आज रखा जाएगा कजरी तीज का व्रत, जानें पूजाविधि और अन्य नियम
By: Ankur Mundra Thu, 06 Aug 2020 09:47:07
आज 6 अगस्त, गुरुवार को भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि हैं जिसे कजरी तीज या बूढ़ी तीज या सातूड़ी तीज के नाम से जाना जाता हैं। यह तीज सुहागन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं जो अपने सुहाग की रक्षा और लंबी उम्र के लिए इस दिन का व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं सज-संवरकर सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और पार्वती की संयुक्त रूप से पूजा की जाती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको इस व्रत की पूर्ण पूजाविधि और नियमों से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं ताकि आपको इसका पूर्ण फल मिल सकें। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
पूजन सामग्री
इस दिन सुहागिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं और सुहाग का सामान माता पार्वती को भी अर्पित करती हैं। इसमें मेंहदी, अगरबत्ती, हल्दी और कुमकुम, सत्तू, फल, मिठाई और वस्त्रों को दान करने के लिए रखा जाता है।
इन नियमों को अपनाएं
कुछ स्थानों पर कजली तीज का व्रत निर्जला रखा जाता है तो कुछ स्थानों पर महिलाएं पानी पीकर और फलाहार करके यह व्रत करती हैं। विशेष तौर पर गर्भवती महिलाओं को यह व्रत फल खाकर करने की इजाजत होती है। वे महिलाएं जो अक्सर बीमार रहती हैं, वे एक बार उद्यापन करके यह व्रत कर फिर फलाहार करके रह सकती हैं।
व्रत की पूजाविधि
सबसे पहले घर में पूजा के लिए सही दिशा का चुनाव करके दीवार के सहारे मिट्टी और गोबर से एक तालाब जैसा छोटा सा घेरा बना लें। इसके बाद उस तालाब में कच्चा दूध और जल भर दें। फिर किनारे पर एक दीपक जलाकर रख दें। उसके बाद एक थाली में केला, सेब सत्तू, रोली, मौली-अक्षत आदि रख लें। तालाब के किनारे नीम की एक डाल तोड़कर रोप दें। इस नीम की डाल पर चुनरी ओढ़ाकर नीमड़ी माताजी की पूजा करें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें। इस व्रत में नीमड़ी माता को अपने हाथ से बने मालपुए का भोग लगाया जाता है।
व्रत के लाभ
व्रत करने वाले को रात्रि में देवी पार्वती की तस्वीर अथवा मूर्ति के सामने की शयन करना चाहिए। अगले दिन अपनी इच्छा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा देना चाहिए। इस तरह कज्जली तीज करने से सदावर्त एवं बाजपेयी यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इस पुण्य से वर्षों तक स्वर्ग में आनंद पूर्वक रहने का अवसर प्राप्त होता है। अगले जन्म में व्रत से प्रभाव से संपन्न परिवार में जन्म मिलता है और जीवनसाथी का वियोग नहीं मिलता है।
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