जाने कौन सा ग्रह किस रोग को देता है आंमत्रण
By: Ankur Tue, 12 Dec 2017 1:51:17
ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के शरीर का संचालन भी ग्रहों के अनुसार होता है। मनुष्य के मन, मस्तिष्क और शरीर पर मौसम, ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव लगातार रहता है। कुछ लोग इन प्रभाव से बच जाते हैं तो कुछ इनकी चपेट में आ जाते हैं। बचने वाले लोगों की सुदृढ़ मानसिक स्थिति और प्रतिरोधक क्षमता का योगदान रहता है। लाल किताब अनुसार हम जानते हैं कि किस ग्रह से कौन-सा रोग उत्पन्न होता है। हम ये सरलता से ज्योतिष के माध्यम से जान सकते हैं, कि हमें कौन सा रोग हुआ है तो वो किस ग्रह के वजह से हुआ है । फिर हम उस ग्रह से सम्बन्धित मन्त्र जप, ग्रह शान्ति अथवा रत्न धारण के माध्यम से उसका सहज इलाज भी कर सकते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस गृह की वजह से कौन से रोग उत्पन्न होते हैं
* सूर्य :
इस ग्रह के प्रभाव से पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से संबंधी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से संबंधी रोग आदि समस्त रोग होते है।
* चंद्रमा :
चन्द्रमा ह्रदय एवं फेफड़े से सम्बन्धित रोग देता है, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिस, कफ रोग, मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि देता है।
* मंगल :
यह गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि जैसा रोग देता है।
* बुध :
भ्रान्ति, खराब वचन, अत्यधिक पसीना आना, नसों का दर्द, संवेदनशीलता, बहरापन, नपुंसकता, जीभ, मुंह, गले व नाक से उत्पन्न रोग, चर्मरोग, मस्तिष्क व तंत्रिकाओं संबंधी विकार, दमा, श्वास- नली में अवरोध, नर्वस ब्रेकडाउन, बिमारीयां पीड़ित बुध के कारण होने की कारण होती है।
* गुरु :
यह जातक को लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार आदि प्रकार का रोग देता है।
* शुक्र :
इस ग्रह के प्रभावी होने पर मधुमेह, पित्ताशय या गुर्दे में पथरी, मूत्रकृच्छ, प्रमेह, अन्य गुह्यस्थान के रोग, मोतियाबिन्द आदि रोगों को झेलना पड़ता है।
* शनि :
शनिदेव शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार इत्यादि प्रकार का रोग जातक को देते हैं।
* राहू :
हृदय में ताप, अशांति, कृत्रिम जहर का भय, पैर की पीड़ा, अशुभ बुद्धि, कुष्ट रोग, पिशाच और सर्प दंश का भय, इत्यादि रोगों से जूझना पड़ता है।
* केतु :
वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि कष्टों को देनेवाला केतु ही है।