केतु गृह के प्रकोप से बचने के उपाय

By: Ankur Thu, 09 Nov 2017 12:54:46

केतु गृह के प्रकोप से बचने के उपाय

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु एक छाया ग्रह है जो स्वभाव से पाप ग्रह भी है। केतु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में कई बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है। हालांकि यही केतु जब शुभ होता है तो व्यक्ति को ऊंचाईयों पर भी ले जाता है। केतु यदि अनुकूल हो जाए तो व्यक्ति आध्यात्म के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है।

आमतौर पर माना जाता है कि हमारी जन्मकुंडली हमारे पिछले जन्म के कर्मों तथा इस जन्म के भाग्य को बताती है। फिर भी ज्योतिषीय विश्लेषण कर हम अशुभ ग्रहों से होने वाले प्रभाव तथा उनके कारणों को जानकर उनका सहज ही निवारण कर सकते हैं। जब भी व्यक्ति पर केतु का अशुभ प्रभाव शुरू होने वाला होता है तो उसके अंदर कामवासना एकदम से बढ़ जाती है। मुकदमेबाजी, अनावश्यक झगड़ा, वैवाहिक जीवन में अशांति, भूत-प्रेत बाधाओं द्वारा परेशान होना भी केतु के ही कारण होता है। शारीरिक प्रभावों में व्यक्ति को पथरी, गुप्त व असाध्य रोग, खांसी तथा वात एवं पित्त विकार संबंधी रोग हो जाते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ उपाय जिन्हें अपनाकर आप केतु के प्रभावों को कम कर सकते हैं।

* दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिति को केतु के निमित्त व्रत रखें। भैरवजी की उपासना करें। केले के पत्ते पर चावल का भोग लगाएं। गाय के घी का दीपक प्रतिदिन शाम को जलाएं।

* केतु उचित फल देने वाला ना हो तो बंदरों को गुड़ खिलाएँ, माथे पर केसरिया तिलक लगाएँ व संतान की समस्याओं को दूर करने के लिए मंदिर में कंबल दान करना चाहिए।

* गणेश और देवी मंदिर में नित्य अर्चना करें और दीन-मलीन भिखारियों को यथाशक्ति दान तथा मछलियों एवं चीटियों को चीनी मिश्रित आटा खियाएं।

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* केतु पीड़ा की विशेष शांति हेतु बला, कूठ, लाजा, मुस्लि, नागरमोथा सरसों,देवदार, हल्दी, लोध एवं सरपंख मिलाकर आठ मंगलवार तक स्नान करें।

* केतु के अशुभ प्रभाव के शमन में गणपति उपासना सर्वोपरि मानी जाती है। उनके अथर्वशीर्ष मंत्र के अनुष्ठान से भी लाभ प्राप्त करें।

* कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन शाम को एक दोने में पके हुए चावल लेकर उस पर मीठा दही डाल लें और काले तिल के कुछ दानों को रख दान करें। यह दोना पीपल के नीचे रखकर केतु दोष शांति के लिए प्रार्थना करें। पीपल के वृक्ष के नीचे प्रतिदिन कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं।

* हाथीदांत से बनी वस्तुओं का व्यवहार या स्नान के जल में उसे डालकर स्नान करने से भी अरिष्ट निवारक होता है।

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