दुर्घटना या अन्य कारणों से जिनकी हड्डियां टूट जाती हैं और इलाज में रिंग फिक्सेटर या लिंब रिकन्सट्रक्शन डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है, उन्हें अब बार-बार एक्सरे कराने की आवश्यकता नहीं होगी। एक नया सेंसिंग डिवाइस हड्डी के जुड़ने की स्थिति को सटीक रूप से बताएगा।
मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNNIT), प्रयागराज और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU), लखनऊ के वैज्ञानिकों ने मिलकर इस अत्याधुनिक डिवाइस को विकसित किया है, जो न केवल एक्सरे के खर्च को कम करेगा, बल्कि रेडिएशन के दुष्प्रभावों से भी राहत देगा।
इस डिवाइस का परीक्षण प्रयोगशाला स्तर पर सफलतापूर्वक किया जा चुका है और अब इसे मरीजों पर आजमाने की योजना है। शोधकर्ताओं ने इसके पेटेंट के लिए आवेदन भी किया है।
यह सेंसर सर्जरी के दौरान हड्डी जोड़ने वाली रॉड या फिक्सेटर पर लगाया जाएगा, जो समय-समय पर हड्डी की स्थिति की जानकारी देगा। ऑप्टिकल फाइबर तकनीक पर आधारित यह सेंसर पूरी तरह से इलेक्ट्रिकल रूप से निष्क्रिय है और शरीर में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करता।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और रियल टाइम डेटा ट्रांसमिशन से सुसज्जित किया गया है, जिससे डॉक्टर को मरीज की हड्डी जुड़ने की जानकारी कहीं से भी, किसी भी समय मिल सकेगी। इससे मरीजों को बार-बार अस्पताल जाने की आवश्यकता नहीं होगी।
इस परियोजना पर काम 2023 में शुरू हुआ था, जब इसे साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड से स्वीकृति और आर्थिक सहायता मिली। एमएनएनआइटी के अप्लाइड मैकेनिक्स विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. अभिषेक तिवारी, ईसीई विभाग के प्रोफेसर योगेंद्र कुमार प्रजापति, केजीएमयू के अस्थि शल्य चिकित्सक डा. रविंद्र मोहन और शोध छात्रा अर्चना व ऋषभ सिंह इस परियोजना के मुख्य योगदानकर्ता हैं।
डॉ. अभिषेक तिवारी, मुख्य अनुसंधानकर्ता ने बताया कि लगभग दो वर्षों के प्रयास के बाद इस सेंसिंग डिवाइस को प्रयोगशाला स्तर पर विकसित कर उसका सफल परीक्षण किया जा चुका है। अब इसे केजीएमयू के सहयोग से क्लीनिकल ट्रायल के चरण में लाया जा रहा है, जहां यह वास्तविक मरीजों पर परीक्षण किया जाएगा। यह सेंसर डॉक्टर को यह बताने में मदद करेगा कि फिक्सेटर कब हटाना है और कब नहीं।