100 साल से कोई जानवर भी नहीं गया इस खतरनाक इलाके में, एक समय लगा था लाशों का ढेर

वर्तमान में कोरोना वायरस के कहर से सभी परेशान हैं जिसके चलते इटली जैसे उन्नत देश में भी हर दिन सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि ऐसा हादसा पहली बार हुआ हैं। इतिहास में भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जब एल्साथ लाशों के ढेर देखने को मिले थे। आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर पिछले 100 साल से कोई जानवर तक नहीं गया हैं। पहले वहां की आबादी खुशहाल थी, लेकिन उसके बाद यहां कुछ ऐसी घटना घटी कि अब वहां किसी के भी जाने पर पाबंदी है। यहां तक कि उस इलाके में जानवरों के भी जाने पर रोक लगी हुई है।

इस जगह का नाम है 'जोन रोग', जो फ्रांस के उत्तर-पूर्वी इलाके में स्थित है। पिछले 100 सालों से इस इलाके को फ्रांस के बाकी क्षेत्रों से काटकर रखा गया है, ताकि यहां कोई आ न सके। इतना ही नहीं, इस इलाके में जगह-जगह 'डेंजर जोन' (खतरनाक जगह) के बोर्ड भी लगे हुए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यहां आना मतलब अपनी जान को जोखिम में डालना है।

फ्रांस के इस इलाके को 'रेड जोन' के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम विश्व युद्ध से पहले यहां कुल नौ गांव थे, जहां लोग रहा करते थे और खेती करके अपना गुजारा करते थे। लेकिन विश्व युद्ध में यहां इतने गोला-बारूद और बम गिरे कि पूरा का पूरा इलाका ही बर्बाद हो गया। यहां लाशों के ढेर लग गए और भारी मात्रा में केमिकल युक्त युद्ध सामग्री पूरे इलाके में फैल गई। इस इलाके में सिर्फ जमीन ही जहरीली नहीं है बल्कि पानी में भी जानलेवा तत्व मिले हुए हैं। अब चूंकि इस पूरे इलाके की जमीन और यहां मौजूद पानी को साफ करना संभव नहीं था, इसलिए फ्रांस की सरकार ने इसे 'जोन रोग' या 'रेड जोन' घोषित कर दिया और इंसानों से लेकर जानवरों तक के यहां आने पर पाबंदी लगा दी।

साल 2004 में कुछ शोधकर्ताओं ने 'जोन रोग' की मिट्टी और पानी का परीक्षण किया था, जिसमें भारी मात्रा में आर्सेनिक पाया गया। दरअसल, आर्सेनिक एक जहरीला पदार्थ है, जिसकी एक छोटी सी मात्रा ही अगर गलती से भी इंसान के मुंह में चला जाए तो कुछ ही घंटों में उसकी मौत हो सकती है। कुछ लोग इस जगह को भुतहा भी मानते हैं। उनका मानना है कि पहले विश्व युद्ध के दौरान मारे गए लोगों के आत्माएं यहां भटकती रहती हैं। हालांकि उस समय के नौ गांव, जो युद्ध में बर्बाद हो गए, उनमें से दो गांवों का आंशिक रूप से पुनर्निमाण चल रहा है, जबकि बाकी के छह गांव अभी भी वीरान हैं, जहां दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ है। इस जगह को 'नो मैन्स लैंड' भी कहा जाता है।