भारत-पकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर हमेशा तनातनी चलती रहती हैं। ऐसा ही कुछ हो सकता था केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप के साथ जहां कुछ मिनट की देरी होती तो यह हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में होता। यह घटना भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समय की हैं। 36 द्वीप से मिलकर बना है लक्षद्वीप जिसमें 10 द्वीपों पर ही लोग रहते हैं। भारतीय पयर्टकों को सिर्फ छह द्वीपों पर ही जाने की अनुमति है, जबकि विदेशी पयर्टक सिर्फ दो द्वीपों (अगाती व बंगाराम) पर ही जा सकते हैं।
1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था, उस समय लक्षद्वीप पर दोनों देशों में से किसी का भी अधिकार नहीं था। कहते हैं कि अगस्त 1947 के आखिर में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने सोचा कि लक्षद्वीप मुस्लिम बहुत इलाका है और अब तक भारत ने इसपर अपना दावा भी नहीं किया है तो क्यों न इसे अपने अधिकार में ले लिया जाए।
कहा जाता है कि ठीक उसी समय भारत के तत्कालीन गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल भी वहीं सोच रहे थे, जैसा लियाकत अली खान सोच रहे थे। हालांकि उस समय तक दोनों ही देश असमंजस की स्थिति में थे, क्योंकि दोनों में से किसी को भी यह नहीं पता था कि किसी ने उसपर कब्जा कर लिया है या नहीं। इसी असमंजस की स्थिति में पाकिस्तान ने अपना एक युद्धपोत लक्षद्वीप के लिए भेजा।
इधर, वल्लभभाई पटेल भी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि लक्षद्वीप को किसी भी हालत में पाकिस्तान के कब्जे में जाने नहीं देंगे। इसलिए उन्होंने त्रावणकोर में राजस्व कलेक्टर को निर्देश दिया कि वो तुरंत पुलिस टीम के साथ जाएं और लक्षद्वीप पर भारतीय तिरंगा लहराएं, ताकि पता चले कि वह इलाका भारत का है। राजस्व कलेक्टर भी इस बात को लेकर काफी गंभीर थे, इसलिए वो तुरंत लक्षद्वीप पहुंचे। वहां उन्होंने आव देखा न ताव तुरंत भारतीय झंडा जमीन में गाड़कर लहरा दिया। कहते हैं कि इसके कुछ ही देर बाद पाकिस्तानी युद्धपोत भी वहां पहुंचा, लेकिन भारतीय झंडा देख कर वो दबे पांव फिर वापस लौट गए। तब से लेकर आज तक यह द्वीप भारत का ही अभिन्न अंग है।
पहले लक्षद्वीप को लक्कादीव के नाम से जाना जाता था। 1956 में भारत सरकार ने यहां मौजूद सभी द्वीपों को मिलाकर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया। इसके बाद 1973 में लक्कादीव, मिनीकाय और अमीनदीवी द्वीपसमूहों का नाम लक्षद्वीप कर दिया गया। तब से लेकर आज तक इस द्वीपसमूह का यही नाम है।