चीन की दिवार दुनिया के अजूबों में शामिल हैं जो कि अपनी अलग ही पहचान रखती हैं लेकिन चीन में ही एक अनोखी दिवार और भी हैं जो कि 600 साल पुराना इतिहास लिए हुए हैं और उसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। हम बात कर रहे हैं चीन की एक और मशहूर एतिहासिक नानजिंग दीवार के बारे में जो कि 35 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी है और चीन के नानजिंग शहर में है। जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने चीन पर हमला किया था, तो जापानी इस दीवार को तबाह नहीं कर सके थे। लेकिन, चीन की ची झिरू कहती हैं कि हमने ही इस दीवार को तबाह कर दिया।
नानजिंग की इस दीवार को बनाने में 35 करोड़ से भी ज्यादा ईंटों का इस्तेमाल हुआ है। मजे की बात ये है कि बहुत सी ईंटों में उन्हें बनाने वाले का नाम लिखा है। 90 साल की ची झिरू नानजिंग की रहने वाली हैं। उन्होंने इस दीवार को बचाने की कोशिश में बहुत योगदान दिया है। नानजिंग, बाकी चीन की तरह तेजी से तरक्की कर रहा है। इसलिए इस दीवार के इर्द-गिर्द बहुत काम हो रहा है। ऐसे में ची झिरू का कहना है कि हमें इस दीवार को ही नहीं, अपनी पूरी विरासत को बचाना है। 1950 और 60 के दशक में दीवार की पूरी तरह से अनदेखी कर दी गई। इसके कई हिस्से ढह गए। दीवार की ईंटों को निकालकर दूसरी इमारतें बनाने में इस्तेमाल करने दिया गया।
नानजिंग की इस एतिहासिक दीवार के कुछ हिस्सों को सड़कें बनाने के लिए तोड़ा गया। कुल मिलाकर, शहर की आर्थिक तरक्की के लिए दीवार को कई जगह ढहा दिया गया। ची झिरू बताती हैं कि उन्होंने भी इस दीवार से दो ईंटें चुराई थीं। वो बताती हैं कि, 'एक बार मैंने दीवार में एक छेद देखा। आस-पास बहुत मलबा फैला हुआ था। किसान अपनी सब्जियां वहां बेचने आते थे। वो इस दीवार की ईटों पर अपने सामान को सजा कर रखते थे। कुछ लोग ईंटों को बैठने के लिए इस्तेमाल करते थे। मुझे यकीन नहीं हुआ कि लोग इन एतिहासिक ईंटों को टेबल बना रहे हैं। तो मैंने दो ईंटें चुरा ली और झोले में डाल कर उन्हें ले आई। लेकिन मुझे अपनी इस चोरी पर इतनी शर्म आई कि मैं बस में बैठने के बजाय साइकिल से दस किलोमीटर का सफर तय कर के घर आई।'
2016 में नानजिंग की स्थानीय सरकार ने एक अभियान शुरू किया। लोगों से अपील की गई कि वो इस एतिहासिक दीवार की ईंटें वापस कर दें, तो उन पर कोई जुर्माना नहीं लगेगा। लोगों ने 80 हजार ईंटें स्थानीय प्रशासन को लौटा दीं। ची झिरू ने भी चुराई हुई दो ईंटें सरकार को वापस कर दीं। इन सब को दीवार के नीचे ही बने गोदाम में रखा गया है। अब इन ईंटों की मदद से दीवार की मरम्मत की जा रही है। दीवार के कई हिस्सों को स्थानीय लोगों के घूमने-फिरने के ठिकानों के तौर पर भी विकसित किया गया है।
ची झिरू कहती हैं कि उन्हें ये जान कर बहुत खुशी हुई कि उनकी चुराई हुई ईंटों को सही ठिकाना मिल गया। वो कहती हैं कि उन्हें ऐसा लगा कि उनका मिशन पूरा हो गया। इससे उनकी उम्र लंबी हो गई। ची झिरू कहती हैं, 'मकान नए बनाए जा सकते हैं। मगर ये एतिहासिक दीवार फिर से नहीं खड़ी की जा सकती। ये चीन की शानदार एतिहासिक विरासत का हिस्सा है। इसलिए इसे इसके गौरव के साथ बचाए रखना जरूरी है।'