रंग-गुलाल से नहीं यहाँ चिता की राख से खेली जाती है होली

होली का त्योंहार को निकले हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं। होली का त्योंहार पूरे देश में बड़े धूमधाम से विभिन्न तरीकों से मनाया गया। ऐसे में ही होली मनाने का एक तरीका ऐसा भी था जिसे सुन शायद विश्वास करना मुश्किल हों। जिसमें रंग के बजाया चिता के भस्म हवा में उड़ते हैं और लोग उस भस्म में सराबोर होकर डूबते हैं। यहां पर रंग, अबीर और गुलाल के बजाय चिता के भस्म से होली खेली जाती है। हम बात कर रहे हैं बाबा काशी विश्वनाथ की।

बाबा काशी विश्वनाथ में ये परंपरा बहुत ही पुरानी है। इस दिन लोग मणिकर्णिका घाट पर चिताओं के भस्म से होली खेलते है। भेदभाव, छुआ-छूत, पवित्र-अपवित्र से परे होकर लोग एक दूसरे पर भस्म को बड़े ही प्रेम से फेकते हैं और हवा में सिर्फ भस्म ही उड़ता है। ये एक ऐसा नजारा होता है जिसे देखकर शायद कोई भी वास्तविक जीवन से दूर होकर महादेव के इस मणिकर्णिका घाट पर खो जाये।

ऐसी मान्यता है कि, बाबा काशी विश्वनाथ ने अपना गौना कराने के बाद दूसरे दिन यहां के महाश्मशान में अपने गणों के साथ होली खेली थी। इसी मान्यता के अनुसार काशी में हर साल महाश्मशान में होली खेलने की परंपरा निभाई जाती है। आपको बता दें कि, मणिकर्णिका घाट को महाश्मशान कहा जाता है। पूरी दुनिया में यही एक ऐसा श्मशान घाट है जहां पर अनादि काल से चिताएं जल रही है और आज तक ये घाट कभी भी बिना चिता के नहीं रहा है।

मणिकर्णिका घाट पर जब आप पहुंचते हैं तो जीवन के सबसे बड़े सच से रूबरू होते हैं। मेरी नजर में ये दुनिया का इकलौता ऐसा श्मशान घाट होगा जहां पर लोगों की आखों में आंसू नहीं बल्कि एक संतोष दिखता है। न जाने क्या माया है महादेव की, जो यहां पर आने वाला हर व्यक्ति जीवन के बाद मृत्यु के भय से सदैव के लिए मुक्त हो जाता है। जब यहां पर चिता के भस्म से होली खेली जाती है तो वो नजारा देखने वाला होता है। एक तरफ चिता की लपटें उठती है दूसरी ओर ‘हर हर महादेव’ के उदघोष के साथ चिता के भस्म को हवा में उड़ाया जाता है। मृत्यु, जीवन, शोक, वेदना और हर्षोउल्लास का ऐसा संगम शायद दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलेगा।