होली मनाने का देश के कई शहरों में अपना अलग-अलग तरीका है। होली में लोग रंगों का इस्तेमाल करते है लेकिन इटावा में एक ऐसा गांव हैं जहां रंगों की जगह बिच्छुओं से होली खेली जाती है। यहां फाग की थाप पर सैकड़ों की संख्या में बिच्छू अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं और फिर गांव में बड़े हों या बच्चे सभी बच्छुओं से होली खेलते हैं। बिच्छुआें को हाथों में उठाकर एक दूसरे पर फेंकते भी हैं। बच्चे इन बिच्छुओं को पकड़कर खूब खेलते हैं और एक दूसरे पर फेंकते भी हैं लेकिन मजाल है जो ये जहरीले बिच्छू किसी को डंक मार दें। सुनने में यह कुछ अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन सौंथना गांव की यह प्रथा सैकड़ों वर्षों से ऐसे ही चली आ रही है।
सौंथना गांव के बाहर भैंसान नाम का प्राचीन टीला है। कहा जाता है किसी समय इस टीले पर भैंसों की बलि दी जाती थी। गांव के लोग इस टीले को भैसान बाबा के रूप में पूजते हैं। गांव में जब किसी की शादी होती है तो तेल चढ़ाने की पंरपरा इसी टीले पर निभाई जाती है। लोग यहां आकर मन्नत भी मानते हैं और पूरी होने पर पूजा करते हैं। इस टीले पर हजारों की संख्या में ईंट और पत्थरों के टुकड़े पड़े हुए हैं, जिन्हें आमतौर पर लोग हटाते हैं तो नीचे कुछ नहीं दिखता है। लेकिन, जब होली पूर्णिमा के दूसरे दिन परेवा की शाम को बड़े, बुजुर्ग और बच्चे टीले पर एकत्र होते हैं और फाग गायन की शुुरुआत करते हैं तो ईंट-पत्थरों के बीच ना जाने कहां से हजारों की संख्या में जहरीले बिच्छूओं का निकलना शुरू हो जाता है। बड़े और बच्चे सभी इन बिच्छुओं को उठाकर अपनी हथेली पर रख लेते हैं और वे उनके शरीर पर रेंगते रहते हैं। ऐसा लगता है मानों बिच्छू गले मिलकर होली की बधाई दे रहे हों। बच्चे एक दूसरे पर बिच्छुओं को फेंककर खेलते हैं लेकिन वे उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। टीले से जाने से पहले गांव के बच्चे बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं और फिर बिच्छुओं को वहीं पर छोड़ देते हैं। अगले दिन टीले पर एक भी बिच्छू भी नहीं दिखाई देता है।
सौंथना गांव के रहने वाले लोगों का कहना है कि होली के दिन ये जहरीले बिच्छू किसी को डंक नहीं मारते हैं। होली के बाद घरों में जब यही बिच्छू निकलते हैं तो डंक भी मारते हैं और जहर भी चढ़ जाता है। इसके साथ ही लोगों का कहना है कि इस टीले पर हजारों की संख्या में पड़े ईंट-पत्थर का कोई टुकड़ा यदि ले जाकर रख लें तो घर में बिच्छू निकलना शुरू हो जाते हैं।