हमारे देश में ऐसी कई जगहें हैं जिनका संबंध रामायण आयर महाभारत से माना जाता हैं और उनकी ये विशेषता उन्हें अनोखा बनाती हैं। आज इस कड़ी में हम एक ऐसी गुफा के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसका संबंध महाभारत से जाना जाता हैं और कहा जाता हैं कि इससे जुड़ा रहस्य इंसान चाहकर भी नहीं जान सकता हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के माणा गांव में स्थित 'व्यास गुफा' के बारे में। वैसे तो यह एक छोटी सी गुफा है, लेकिन इसके बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले महर्षि वेद व्यास ने इसी गुफा में रहकर वेदों और पुराणों का संकलन किया था। मान्यता यह भी है कि इसी गुफा में वेद व्यास ने भगवान गणेश की सहायता से महाकाव्य महाभारत की रचना की थी।
वेद व्यास गुफा अपनी अनोखी छत को लेकर भी देशभर में चर्चित है। इस छत को देखने पर ऐसा लगता है, जैसे बहुत से पन्नों को एक के ऊपर एक रखा हुआ है। इसी छत को लेकर एक रहस्यमय धारणा है। कहा जाता है कि ये महाभारत की कहानी का वो हिस्सा है, जिसके बारे में महर्षि वेद व्यास और भगवान गणेश के अलावा और कोई नहीं जानता है।
मान्यता है कि महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश से महाभारत के वो पन्ने लिखवाए तो थे, लेकिन उसे उस महाकाव्य में शामिल नहीं किया और उन्होंने उन पन्नों को अपनी शक्ति से पत्थर में बदल दिया। आज दुनिया पत्थर के इन रहस्यमय पन्नों को 'व्यास पोथी' के नाम से जानती है।
अब सोचने वाली बात ये है कि आखिर वो कौन सा राज था, जिसे वेद व्यास दुनिया को बताना नहीं चाहते थे। खैर महाभारत का ये 'खोया अध्याय' सच है या कोई कहानी, इसके बारे में तो कोई नहीं जानता, लेकिन पहली नजर में तो व्यास गुफा की छत ऐसी ही लगती है, जैसे उसपर कोई विशालकाय पुस्तक रखी हुई है।