मौत की घाटी का अनसुलझा रहस्य, रेगिस्तान में अपनेआप खिसकने लगते है पत्थर

आज का समय विज्ञान और तकनिकी का युग हैं जिसमें विज्ञान ने तरक्की करते हुए ब्रह्माण्ड के कई सवालों के जवाब ढूँढ निकाले हैं। लेकिन समय बीत जाने के बाद भी इस वैज्ञानिक युग में ऐसे कई सवाल हैं जो आज भी रहस्य बने हुए हैं और विज्ञान भी उनके जवाब देने में असमर्थ हुआ हैं। आज हम आपको एक ऐसा ही अनसुलझा और अनोखा रहस्य बताने जा रहे हैं जो आपको चौंका देगा। यह कैलिफोर्निया में स्थित एक रेगिस्तान, डेथ वैली (मौत की घाटी) से जुड़ा हुआ हैं। तो आइये जानते इसके बारे में।

कैलिफोर्निया के डेथ वैली की संरचना और तापमान भू-वैज्ञानिकों को हमेशा से चौंकाता रहा है, लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली जो चीज है, वो है यहां के अपने आप खिसकने वाले पत्थर, जिन्हें सेलिंग स्टोन्स के नाम से जाना जाता है। यहां के रेस ट्रैक क्षेत्र में मौजूद 320 किलोग्राम तक के पत्थर भी अपने आप खिसक कर एक जगह से दूसरी जगह चले जाते हैं।

डेथ वैली में पत्थरों का खुद-ब-खुद खिसकना वैज्ञानिकों के लिए भी एक पहेली बनी हुई है। रेस ट्रैक प्लाया 2.5 मील उत्तर से दक्षिण और 1.25 मील पूरब से पश्चिम तक बिल्कुल सपाट है, लेकिन यहां बिखरे पत्थर अपने आप खिसकते रहते हैं। यहां ऐसे 150 से भी अधिक पत्थर हैं। हालांकि किसी ने भी अपनी आंखों से पत्थरों को खिसकते हुए नहीं देखा है।

सर्दियों में ये पत्थर करीब 250 मीटर से ज्यादा दूर तक खिसके मिलते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1972 में इस रहस्य को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम बनाई गई थी। टीम ने पत्थरों के एक ग्रुप का नामकरण कर उस पर सात साल अध्ययन किया। केरीन नाम का लगभग 317 किलोग्राम का पत्थर अध्ययन के दौरान जरा भी नहीं हिला, लेकिन जब वैज्ञानिक कुछ साल बाद वहां वापस लौटे, तो उन्होंने उस पत्थर को एक किलोमीटर दूर पाया।

कुछ वैज्ञानिकों का यह मानना है कि तेज रफ्तार से चलने वाली हवाओं के कारण पत्थर एक जगह से दूसरी जगह चले जाते हैं। शोध बताते हैं कि रेगिस्तान में 90 मील प्रति घंटे की गति से चलने वाली हवाएं, रात को जमने वाली बर्फ और सतह के ऊपर गीली मिट्टी की पतली परत, ये सब मिलकर पत्थरों को गतिमान करते होंगे।

स्पेन की कम्प्लूटेंस यूनिवर्सिटी के भू-वैज्ञानिकों की एक टीम ने भी इसको लेकर एक शोध किया था और उन्होंने इसका कारण डेथ वैली की मिट्टी में मौजूद माइक्रोब्स की कॉलोनी को बताया था। ये माइक्रोब्स साइनोबैक्टीरिया व एककोशिकीय शैवाल हैं, जिनके कारण झील के तल में चिकना पदार्थ और गैस पैदा होती है। इससे पत्थर तल में पकड़ नहीं बना पाते। सर्द मौसम में तेज हवा के थपेड़ों से ये अपनी जगह से खिसक जाते हैं।

अलग-अलग जगहों के वैज्ञानिकों की टीम ने भले ही अलग-अलग तरीके से शोध किए हों, लेकिन अभी तक ये साफ तौर पर जाहिर नहीं हो पाया है कि आखिर इसका राज क्या है, क्यों पत्थर अपने आप अपनी जगह से खिसक कर दूसरी जगह चले जाते हैं।