शुक्र ग्रह पर पहुंचते ही गल जाती है इंसान की हड्डियां, जानें हैरान करने वाले रहस्य

सौरमंडल में स्थित ग्रहों की सबकी अपनी कहानी हैं और अपने अनोखे रहस्य हैं। इन रहस्यों की जानकारी बेहद हैरान करने वाली हैं। ऐसा ही एक ग्रह हैं शुक्र जिसे 'पृथ्वी की बहन' भी कहा जाता है। चंद्रमा के बाद रात के समय आकाश में सबसे अधिक चमकने वाला ग्रह यही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शुक्र पर जाते ही इंसान की हड्डियां तक गल सकती हैं। जी हां, इसके रहस्य बेहद ही रोचक हैं। तो आइये जानते हैं उनके बारे में। वैज्ञानिकों के मुताबिक, शुक्र एक केंद्रीय लौह कोर, चट्टानी मैंटल और सिलिकेट क्रस्ट से बना ग्रह है। इसकी सतह पर सल्फ्यूरिक एसिड का भंडार है। इसकी सतह ने सल्फ्यूरिक एसिड को बादल की तरह बिछाया हुआ है।

शुक्र ग्रह का तापमान आमतौर पर 425 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। दरअसल, शुक्र तीन डिग्री के अपने सीमित अक्षीय झुकाव के कारण किसी भी मौसम का अनुभव नहीं करता, इसीलिए इस ग्रह पर हमेशा अत्यधिक गर्मी ही रहती है। जहां पृथ्वी पर 45-50 डिग्री सेल्सियस तापमान जाते-जाते इंसान की त्वचा जलने लगती है, ऐसे में 425 डिग्री सेल्सियस तापमान में इंसान का क्या हाल होगा, ये आप सोच सकते हैं। शुक्र पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना में 92 गुना अधिक है। यहां का तीव्र दबाव किसी भी आने वाले अंतरिक्ष यान को अपनी सतह पर लंबे समय तक रहने की अनुमति नहीं देता है। अंतरिक्ष यान इस ग्रह की सतह पर अधिकतम दो घंटे ही रुक सकते हैं।

शुक्र ग्रह का वायुमंडल सदैव गैसों के बने घने बादलों से घिरा रहता है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई इंसान इस ग्रह पर चला जाए तो वह इस ग्रह की सतह से सूर्य या पृथ्वी को कभी नहीं देख पाएगा। हालांकि इस ग्रह पर इंसानों का पहुंचना ही आज के समय में सबसे मुश्किल काम है। शुक्र ग्रह की सतह पर कोई भी छोटा गड्ढा नहीं है। इसकी वजह है कि इसके वायुमंडल में प्रवेश करने वाले क्षुद्रग्रह या अन्य वस्तुओं को इसकी सतह पर टकराने से पहले ही इसका वायुमंडल का दाब उन्हें नष्ट कर देता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि अरबों साल पहले शुक्र की जलवायु पृथ्वी के समान रही होगी। इस ग्रह पर बड़ी मात्रा में पानी या महासागर रहे होंगे, लेकिन अत्यधिक तापमान और ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण सतह का पानी उबल गया होगा और धीरे-धीरे उसका अस्तित्व ही खत्म हो गया होगा। नासा के मुताबिक, इस ग्रह की सतह पर 20 किलोमीटर से बड़े 1,000 से ज्यादा ज्वालामुखी केंद्र हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश निष्क्रिय हैं। यहां कुछ ही सक्रिय ज्वालामुखी हैं।