स्वतंत्रता के 14 साल बाद मिली थी गोवा को आजादी, जानें रोचक जानकारी

भारत को पर्यटन के लिहाज से बहुत अच्छी जगह माना जाता हैं। इसमें सबसे ज्यादा गोवा को पसंद किया जाता हैं जहां देशी और विदेशी दोनों सैलानी जाना पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का यह हिस्सा 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिली स्वतंत्रता के समय भारत में नहीं था और इसे स्वतंत्रता के 14 साल बाद आजादी मिली थी। इसके पीछे का इतिहास बेहद ही रोचक है जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं।

वर्ष 1510 में पहली बार पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा किया और उसके बाद लगभग 450 साल तक उन्होंने यहां शासन किया। 19 दिसंबर 1961 को गोवा पुर्तगालियों से आजाद हुआ था, लेकिन वो इसे इतनी आसानी से छोड़ने को तैयार नहीं थे। इसके लिए भारत को सख्त रवैया अपनाना पड़ा था। भारत ने आजादी के बाद पुर्तगालियों से अनुरोध किया था कि वो गोवा को उसे सौंप दें, लेकिन उन्होंने इस अनुरोध को ठुकरा दिया। अब गोवा को आजाद कराने के लिए भारत के पास दो ही रास्ते थे, पहला युद्ध के जरिए गोवा पर कब्जा कर लिया जाए या फिर सत्याग्रह से इसकी आजादी की मांग की जाए। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और गांधी जी भी दूसरा वाला विकल्प ही बेहतर समझते थे।

गोवा को आजाद कराने में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का बहुत बड़ा योगदान था। 1946 में वह गोवा गए थे, जहां उन्होंने देखा कि पुर्तगाली तो अंग्रजों से भी बदतर थे। वो गोवा वासियों पर जुल्म पर जुल्म ढाए जा रहे थे। वहां नागरिकों को सभा संबोधन का भी अधिकार नहीं था। लोहिया से ये सब देखा नहीं गया और उन्होंने तुरंत 200 लोगों की एक सभा बुलाई। यह बात जब पुर्तगालियों को पता चली तो उन्होंने लोहिया को दो साल के लिए कैद कर लिया, लेकिन जनता के भारी आक्रोश के कारण बाद में उन्हें छोड़ना पड़ा। हालांकि पुर्तगालियों ने पांच साल के लिए लोहिया के गोवा आने पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन इसके बावजूद भी गोवा की आजादी की लड़ाई लगातार जारी रही।

साल 1961 में भारत सरकार ने तब पुर्तगालियों के चंगुल से गोवा को आजाद कराने की ठानी, जब नवंबर महीने में पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के मछुआरों पर गोलियां चलाई, जिसमें एक मछुआरे की मौत भी हो गई। इसके बाद तो सारा किस्सा ही बदल गया। भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री वी। के। कृष्ण मेनन और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने आपातकालीन बैठक की और आखिरकार 17 दिसंबर को यह फैसला लिया गया कि गोवा को आजाद कराने के लिए वहां 30 हजार भारतीय सैनिकों को 'ऑपरेशन विजय' के तहत भेजा जाएगा। इस ऑपरेशन में नौसेना से लेकर वायु सेना तक को भी शामिल किया गया था।

भारतीय सेना की मजबूती को देखते हुए पुर्तगाल ने 36 घंटे के भीतर ही घुटने टेक दिए और गोवा छोड़ने का फैसला कर लिया। 19 दिसंबर, 1961 को पुर्तगाली जनरल मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर दस्तखत कर दिए। इस तरह गोवा 450 साल बाद पुर्तगालियों से आजाद हो गया और भारत का एक अभिन्न अंग बन गया।