साल 1947 जब भारत को आजादी मिली और इसी के साथ ही जिन्ना की अगुवाई में एक देश और बना पाकिस्तान। उस दौरान यह तय होना था कि कौनसी रियासतें भारत में शामिल होती हैं और कौनसी पाकिस्तान में। हांलाकि कई राजा दोनों में शामिल ना होकर खुद का स्वामित्व चाहते थे। मुगल और अंग्रेजों के शासन के बाद भारत का आज का स्वरुप बन पाया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजस्थान का एक क्षेत्र ऐसा हैं जहां के हिन्दू राजा जिन्ना से मिलकर पाकिस्तान में मिलना चाहते थे। अगर यह हो जाता तो आज राजस्थान का भौगोलिक स्वरुप कुछ अलग होता। हम बात कर रहे हैं जोधपुर रियासत की, जिसके शासक अपने रियासत को पाकिस्तान में विलय करना चाहते थे। कॉलिंस और डोमिनिक लेपियर की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।
मोहम्मद अली जिन्ना भी जोधपुर (मारवाड़) को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। वहीं जोधपुर के शासक हनवंत सिंह कांग्रेस के विरोध और अपनी सत्ता स्वतंत्र अस्तित्व की महत्वाकांक्षा में पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे। अगस्त 1947 में हनवंत सिंह धौलपुर के महाराजा तथा भोपाल के नवाब की मदद से जिन्ना से मिले। हनवंत सिंह की जिन्ना से बंदरगाह की सुविधा, रेलवे का अधिकार, अनाज तथा शस्रों के आयात आदि के विषय में बातचीत हुई। जिन्ना ने उन्हे हर तरह की शर्तों को पूरा करने का आश्वासन दिया।
भोपाल के नवाब के प्रभाव में आकर हनवंत सिंह ने उदयपुर के महाराणा से भी पाकिस्तान में सम्मिलित होने का आग्रह किया। लेकिन उदयपुर ने हनवंत सिंह के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि एक हिंदू शासक हिंदू रियासत के साथ मुसलमानों के देश में शामिल नहीं होगा।
हनवंत सिंह को भी इस बात ने प्रभावित किया और पाकिस्तान में मिलने के सवाल पर फिर से सोचने को मजबूर कर दिया। पाकिस्तान में मिलने के मुद्दे पर जोधपुर का माहौल तनावपूर्ण हो चुका था। जोधपुर के ज्यादातर जागीरदार और जनता पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे। माउंटबेटन ने भी हनवंत सिंह को समझाया कि धर्म के आधार पर बंटे देश में मुस्लिम रियासत न होते हुए भी पाकिस्तान में मिलने के उनके फैसले से सांप्रदायिक भावनाएं भड़क सकती हैं। वहीं सरदार पटेल किसी भी कीमत पर जोधपुर को पाकिस्तान में मिलते हुए नहीं देखना चाहते थे।
इसके लिए सरदार पटेल ने जोधपुर के महाराज को आश्वासन दिया कि भारत में उन्हें वे सभी सुविधाएं दी जाएंगी, जिनकी मांग पाकिस्तान से की गई थी। जिसमें शस्रों का, अकालग्रस्त इलाकों में खाद्यानों की आपूर्ति, जोधपुर रेलवे लाइन का कच्छ तक विस्तार आदि शामिल था। हालांकि, मारवाड़ के कुछ जागीरदार भारत में भी विलय के विरोधी थे। वे मारवाड़ को एक स्वतंत्र राज्य के रुप में देखना चाहते थे, लेकिन महाराजा हनवंत सिंह ने समय को पहचानते हुए भारत-संघ के विलय पत्र पर 1 अगस्त 1949 को हस्ताक्षर कर अपने रियासत को भारत में विलय कर दिया।