इस भीषण नरसंहार में मारे गए थे आठ लाख लोग, जानकर ही कांप उठेगी रूंह

नरसंहार नाम सुनने से ही पता चलता हैं कि मौत का सिलसिला। इतिहास में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां कई लोगों की मौत गई हैं। आज इस कड़ी में भी हम एक ऐसी ही घटना के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जो भीषण नरसंहार के रूप में जानी जाती हैं क्योंकि इस भीषण नरसंहार में मात्र 100 दिनों में आठ लाख लोगों की जान गई थी। हम बात कर रहे हैं 25 साल पहले अफ्रीकी देश रवांडा में हुए नरसंहार के बारे में जिसकी कहानी रूह कंपा देने वाली हैं। तो आइये जानते हैं इस भीषण नरसंहार के बारे में।

इसकी शुरुआत साल 1994 में रवांडा के राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति सिप्रेन की हत्या से हुई थी। उनके हवाई जहाज को ही उड़ा दिया गया था। इस जहाज को किसने मार गिराया था, यह अब तक साबित नहीं हो सका है, लेकिन कुछ लोग इसके लिए रवांडा के हूतू चरमपंथियों को जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि कुछ का मानना है कि रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) ने ये काम किया था। चूंकि दोनों ही राष्ट्रपति हूतू समुदाय से संबंध रखते थे, इसलिए हूतू चरमपंथियों ने इस हत्या के लिए रवांडा पैट्रिएक फ्रंट को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि आरपीएफ का आरोप था कि जहाज को हूतू चरमपंथियों ने ही उड़ाया था, ताकि उन्हें नरसंहार का एक बहाना मिल सके।

असल में यह नरसंहार तुत्सी और हुतू समुदाय के लोगों के बीच हुआ एक जातीय संघर्ष था। कहते हैं कि सात अप्रैल 1994 से लेकर अगले 100 दिनों तक चलने वाले इस संघर्ष में हूतू समुदाय के लोगों ने तुत्सी समुदाय से आने वाले अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और यहां तक कि अपनी पत्नियों को ही मारना शुरू कर दिया। कहते हैं कि हूतू समुदाय के जिन लोगों ने तुत्सी समुदाय से संबंध रखने वाली अपनी पत्नियों को मार डाला, उन्होंने सिर्फ इसलिए उनकी हत्या की, क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करते तो उन्हें ही मार दिया जाता। सिर्फ यही नहीं, तुत्सी समुदाय के लोगों को मारा तो गया ही, साथ ही इस समुदाय से संबंध रखने वाली महिलाओं को सेक्स स्लेव (यौनक्रिया के लिए गुलाम) बनाकर भी रखा गया।

हालांकि ऐसा नहीं है कि इस नरसंहार में सिर्फ तुत्सी समुदाय के ही लोगों की हत्या हुई। हूतू समुदाय के भी हजारों लोग इसमें मारे गए। कुछ मानवाधिकार संस्थाओं के मुताबिक, रवांडा की सत्ता हथियाने के बाद रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) के लड़ाकों ने हूतू समुदाय के हजारों लोगों की हत्या की। हालांकि इस नरसंहार से बचने के लिए रवांडा के लाखों लोगों ने भागकर दूसरे देशों में शरण ले ली थी।

रवांडा नरसंहार के लगभग सात साल बाद यानी 2002 में एक अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत का गठन हुआ था, ताकि हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दी सके। हालांकि वहां हत्यारों को सजा नहीं मिल सकी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तंजानिया में एक इंटरनेशनल क्रिमिलन ट्रिब्यूनल बनाया, जहां कई लोगों को नरसंहार के लिए दोषी ठहराया गया और उन्हें सजा सुनाई गई। इसके अलावा रवांडा में भी सामाजिक अदालतें बनाई गई थीं, ताकि नरसंहार के लिए जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा चलाया जा सके। कहते हैं कि मुकदमा चलाने से पहले ही करीब 10 हजार लोगों की मौत जेलों में ही हो गई थी।

माना जाता है कि जातीय संघर्ष में हुए नरसंहार की वजह से ही रवांडा में आज के समय में जनजातीयता के बारे में बोलना गैरकानूनी बना दिया गया है। सरकार की मानें तो ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि लोगों के बीच नफरत न फैले और रवांडा को एक और जनसंहार का सामना न करना पड़े।