बिहार के दरभंगा में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में एक ऐसी किताब है जिसमें 1088 वर्षों तक सूर्य और चंद्र ग्रहणों की गणना की गई है। इस किताब में आने वाले करीब 700 वर्षों में लगने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहण की सटीक गणना की गई है। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्राध्यापक व कुलपति रामचंद्र झा के अनुसार 'ग्रहण माला' (Grahan Mala) नाम की ये किताब 400 साल पहले लिखी गई थी। इसमें लगभग 1100 वर्षों तक लगने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहण के बारे में सटीक जानकारी दी गई है। इसके रचयिता महामहोपाध्याय हेमांगद ठाकुर हैं। बता दें कि महामहोपाध्याय महेश ठाकुर के पौत्र और गोपाल ठाकुर के पुत्र हेमांगद ठाकुर का जीवन काल 1530 से 1590 के बीच है। इसी अवधि में ये पुस्तक लिखी गई है। ये दरभंगा राजपरिवार के सदस्य थे। उसी बीच में ग्रहण माला लिखी गई। बता दें कि कामेश्वरसिंह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय बिहार का एक विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 26 जनवरी 1961 को हुई।
भूतपूर्व कुलपति रामचंद्र झा ने बताया कि इस पुस्तक की गणना लगभग सही है। 'ग्रहण माला' पुस्तक में सूर्य और चंद्र ग्रहणों का जो वर्णन है वह 1542 शकाब्द (शक संवत) से 2630 शकाब्द के बीच का है।
अभी 2020 ईस्वी है और 1942 शकाब्द। मतलब दोनों की अवधि में 78 वर्ष का अंतर होता है। यानी इस पुस्तक में 1620 ईस्वी से 2708 ईस्वी तक के 1088 वर्ष तक लगने वाले ग्रहणों के बारे में बताया गया है।
कुलपति रामचंद्र झा ने बताया कि ये पुस्तक दरभंगा संस्कृत विवि के प्रकाशन विभाग से प्रकाशित भी है। इस पुस्तक में ग्रहणों की सूची है। हालांकि कहीं-कहीं अंकित गणना में थोड़ा अंतर है, लेकिन उसके कई कारण हो सकते हैं। एक तो बड़ा कारण ये है कि 400 वर्ष से अधिक पुरानी पुस्तक है। उस वक्त लिखने की विधि और किसने इसे लिपिबद्ध किया, इस पर भी निर्भर करता है।
बता दे, इस विश्वविद्यालय की स्थापना दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के योगदान के कारण दरभंगा में हुई। इसलिए इसके साथ कामेश्वर सिंह का नाम भी उनके सम्मान में जुड़ा हुआ है। यह विश्वविद्यालय भारतीय विश्वविद्यालय संघ का एक सदस्य और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त है। यह बिहार राज्य का प्रथम तथा भारत का दूसरा संस्कृत विश्वविद्यालय है।