इस आजाद भारत का इतिहास भी अनोखा रहा हैं जहाँ कई ऐसे हादसे हुए हैं जो भुलाए नहीं भूलते हैं। ऐसी ही एक दिल को दहला देने वाल घटना असम में साल 1983 में हुई थी जिसे नेली नरसंहार के रूप में जाना जाता हैं। हांलाकि इसके बारे में अभी भी बहुत कम लोग जानते हैं। इस नरसंहार में महज सात घंटे में 2000 से ज्यादा लोग मार दिए गए थे। हालांकि गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यह संख्या तीन हजार से भी अधिक है।
यह भीषण नरसंहार 18 फरवरी, 1983 को असम में हुआ था। अब ये क्यों हुआ था, इसके पीछे एक लंबा इतिहास है। दरअसल, असम पहले एक खुशहाल राज्य हुआ करता था। 1826 से पहले यहां अहोम वंश का शासन था, लेकिन अंग्रेजों ने बाद में इसे अपने अधिकार में ले लिया। 19वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेज यहां बंगाल और बिहार से मजदूरों को चाय के बागान में काम करने के लिए लाने लगे, जो बाद में असम में ही बस गए। अब चूंकि असम बांग्लादेश की सीमा से लगा हुआ है, इसलिए वहां से भी बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठ के जरिए लोग असम आते रहे हैं। बाद में उन्हें वोट का अधिकार भी मिल गया था। इसी के खिलाफ 1980 के दशक में राज्य में एक आंदोलन चला था, जो बाद में नरसंहार की वजह बना।
18 फरवरी, 1983 की सुबह थी। असम के हजारों आदिवासियों ने नेली क्षेत्र के 14 गांवों में रह रहे बांग्लादेशी लोगों को घेर लिया। महज सात घंटे के अंदर दो हजार से भी अधिक लोगों को मार दिया गया। उस समय राज्य की पुलिस पर भी इस भीषण नरसंहार में शामिल होने का आरोप लगा था।
कहते हैं कि इस नरसंहार में मरने वालों में अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे, जो जान बचाकर भाग नहीं पाए। नरसंहार का बाद का नजारा बेहद ही डरावना था। नेली क्षेत्र में हर तरफ सिर्फ लाशें ही लाशें बिछी पड़ी थीं। कई जगहों पर तो एक साथ 200-300 लाशें पड़ी थीं। यह वाकई में बेहद ही दर्दनाक और दिल को दहला देने वाली घटना थी।
कहा जाता है कि शुरुआत में नेली नरसंहार को लेकर सैकड़ों रिपोर्ट दर्ज हुईं और कुछ को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन इस भीषण नरसंहार के अपराधियों को सजा तो दूर, उनके खिलाफ मुकदमा तक नहीं चला। हां इतना जरूर हुआ कि इस नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों को सरकारी तौर पर मुआवजे के रूप में पांच-पांच हजार रुपये दिए गए।