
जयपुर। देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान एसडीएम को थप्पड़ मारने के मामले में जेल में बंद निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा को राजस्थान हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। जस्टिस अनिल उपमन की पीठ ने उन्हें इस केस में जमानत दे दी है। हालांकि, समरावता हिंसा मामले में दूसरी याचिका पर फैसला अभी सुरक्षित है, जिससे उनकी रिहाई फिलहाल संभव नहीं है।
उपचुनाव में बवाल और थप्पड़ की गूंजनवंबर 2024 में हुए देवली-उनियारा उपचुनाव के दौरान, टोंक जिले के समरावता गांव में मतदाताओं ने वोटिंग का बहिष्कार किया था। निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा गांववालों के साथ धरने पर बैठे थे और प्रशासन पर जबरन वोटिंग कराने का आरोप लगा रहे थे। इसी दौरान नरेश मीणा मतदान केंद्र पहुंचे और एसडीएम अमित चौधरी को थप्पड़ मार दिया।
इस घटना ने माहौल को और उग्र बना दिया। पुलिस ने मीणा को हिरासत में लिया, लेकिन समर्थकों ने उन्हें छुड़वा लिया। इसके बाद पथराव, लाठीचार्ज और आगजनी की घटनाएं हुईं। पुलिस ने चार एफआईआर दर्ज कीं, जिनमें से दो में नरेश मीणा गिरफ्तार हुए।
कोर्ट में जमानत की दलीलेंमीणा के वकीलों डॉ. महेश शर्मा और फतेहराम मीणा ने कोर्ट में कहा कि घटना अचानक घटी और इसे जानलेवा हमला बताना तथ्यात्मक रूप से गलत है। वकीलों ने कहा कि मीणा पर 26 केस दर्ज थे, जिनमें से 5 में वे बरी हो चुके हैं और कुछ राज्य सरकार ने वापस ले लिए हैं। वर्तमान में केवल 12 मामले लंबित हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि एफआईआर में देरी, एसडीएम की संदिग्ध भूमिका और बलपूर्वक वोटिंग के आरोप इस केस में प्रशासन की भूमिका को संदेह के घेरे में लाते हैं।
समरावता हिंसा पर फैसला लंबितजहाँ एक ओर थप्पड़कांड में जमानत मिल गई, वहीं हिंसा मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है। जस्टिस प्रवीर भटनागर की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा है। यही अदालत पहली जमानत याचिका खारिज कर चुकी है, जिसमें तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि राजनीतिक व्यक्ति अगर अपराध करे तो उसका सभ्य समाज में स्थान नहीं होना चाहिए।
आयोग बनाम पुलिस: भूमिका पर उठे सवालराष्ट्रीय एससी-एसटी आयोग ने समरावता हिंसा में पुलिस पर अत्यधिक बल प्रयोग का आरोप लगाया है। आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हिंसा के समय मीणा हिरासत में थे। आयोग की सिफारिश पर सरकार ने पीड़ितों को मुआवजा भी दिया।
मीणा की ओर से यह भी बताया गया कि इस केस में 63 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और ज्यादातर को जमानत मिल चुकी है। केवल नरेश मीणा अब भी जेल में हैं।
हिंसा मामले में फैसला लंबितजहां थप्पड़कांड में उन्हें राहत मिल गई है, वहीं समरावता हिंसा मामले की जमानत याचिका पर जस्टिस प्रवीर भटनागर की अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा है। इसी अदालत ने फरवरी में मीणा की पिछली याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी कि राजनीतिक व्यक्ति अगर अपराध करता है, तो उसका सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
पुलिस बनाम आयोग – विवाद की नई परतराष्ट्रीय एससी-एसटी आयोग ने रिपोर्ट में आरोप लगाया कि पुलिस ने अत्यधिक बल प्रयोग किया। आयोग के मुताबिक हिंसा के वक्त मीणा पहले से ही पुलिस कस्टडी में थे। आयोग की सिफारिश पर राज्य सरकार ने पीड़ित ग्रामीणों को मुआवजा भी दिया।
गांव में हिंसा का दृश्यमीणा की गिरफ्तारी के बाद सैकड़ों समर्थकों ने पुलिस पर पथराव किया, वाहनों को जलाया, और उग्र प्रदर्शन किया। पुलिस को स्थिति नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा। समरावता गांव में कर्फ्यू जैसे हालात बन गए थे।
राजनीति बनाम प्रशासन – सत्ता का संघर्षयह मामला केवल एक थप्पड़ या हिंसा नहीं, बल्कि यह स्थानीय राजनीति, प्रशासनिक रवैये और जनाक्रोश के त्रिकोण को उजागर करता है। नरेश मीणा जहां एक ओर ग्रामीण असंतोष के प्रतीक के रूप में उभरे, वहीं प्रशासन ने कानून व्यवस्था बनाए रखने की सख्त कोशिश की।
अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर हैं, जो तय करेगा कि नरेश मीणा जल्द जेल से बाहर आएंगे या नहीं। यह मामला यह भी तय करेगा कि राजनीति में विरोध का तरीका क्या हो, और व्यवस्था के सामने खड़े होने की सीमा क्या है।