अगर ऐसी ही गलतियां होती रहीं तो साथ रहने का कोई मतलब नहीं, MVA पर उद्धव ठाकरे का बड़ा बयान

महाराष्ट्र की राजनीति में गूंजते हालातों के बीच, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक गंभीर और भावनात्मक बयान देकर महा विकास आघाडी (MVA) के भविष्य पर सवाल उठा दिए हैं। उन्होंने खुलकर कहा है कि अगर 2024 के विधानसभा चुनावों जैसी सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन में देरी जैसी गलतियां दोहराई जाती रहीं, तो फिर इस गठबंधन में साथ रहने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

ठाकरे ने ये बयान उस समय दिया जब वे साफ शब्दों में यह जताना चाह रहे थे कि एमवीए में अब सिर्फ एकजुटता की बात नहीं, बल्कि व्यावहारिक और समय पर फैसलों की ज़रूरत है। उनका यह बयान न केवल रणनीतिक है, बल्कि इस गठबंधन को लेकर उनकी गहरी पीड़ा और चिंता को भी दर्शाता है।

लोकसभा की जीत से विधानसभा की हार तक – कहां चूक गई MVA?

ठाकरे ने बताया कि 2024 के लोकसभा चुनावों में एमवीए ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 48 में से 30 सीटें जीतीं थीं। परंतु पांच महीने बाद हुए विधानसभा चुनावों में वही उत्साह व्यक्तिगत अहंकार और मैं ही जीतूं जैसी मानसिकता में बदल गया। नतीजा यह हुआ कि भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति ने भारी बहुमत से बाज़ी मार ली।

पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी खुलासा किया कि कई सीटों पर उम्मीदवार तय ही नहीं किए गए, जिससे ज़मीनी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बनी रही। उन्होंने सच्चाई को स्वीकारते हुए कहा – यह एक गलती थी जिसे सुधारना होगा। अगर भविष्य में ऐसी गलतियां होती रहीं तो साथ रहने का कोई मतलब नहीं है।

'सामना' में की दिल से बात, साझा की नाराज़गी और उम्मीद

'सामना' को दिए इंटरव्यू में ठाकरे ने निराशा और आत्मनिरीक्षण के बीच संतुलन रखते हुए कई अहम बातें साझा कीं। उन्होंने दुख के साथ बताया कि लोकसभा चुनावों में अपनी परंपरागत जीत वाली सीटें भी उन्हें गठबंधन सहयोगियों को देनी पड़ीं। सीट बंटवारे की बातचीत आखिरी क्षण तक चलती रही, जिससे जनता में गठबंधन को लेकर ग़लत संदेश गया।

उनके अनुसार, चुनावों के दौरान MVA में रियायतों की घोषणाओं की होड़ ने उनकी स्थिति को और जटिल कर दिया। उन्होंने लाडकी बहन योजना जैसी स्कीम्स को भ्रामक बताते हुए कहा कि इससे वोटरों की सोच प्रभावित हुई। साथ ही उन्होंने EVM में गड़बड़ी और मतदाता सूची में हेरफेर जैसे मुद्दों पर भी चिंता जताई।

एमवीए को संभलने की सख्त ज़रूरत

ठाकरे ने इस बात पर ज़ोर दिया कि गलतियों से आंखें चुराने के बजाय उन्हें स्वीकार करना और सुधारना ज़रूरी है। लोकसभा चुनावों में जो उम्मीद जगी थी, वह विधानसभा में संगठनात्मक ढील और तालमेल की कमी के कारण धूमिल हो गई। 2024 की विधानसभा में भाजपा ने जहां 132 सीटें जीतीं, वहीं शिंदे गुट ने 57, और अजित पवार की राकांपा ने 41 सीटों पर जीत दर्ज की। दूसरी ओर, MVA की पूरी ताकत मिलाकर भी सिर्फ 46 सीटें ही मिल सकीं। ठाकरे की बातों से साफ है कि अब वक्त है आत्ममंथन का, न कि आरोप-प्रत्यारोप का। अगर MVA फिर से ताकत बनना चाहती है, तो उसे वक्त रहते निर्णय लेना और आपसी भरोसे को मज़बूत करना होगा – वरना जैसा उद्धव ठाकरे ने कहा, साथ रहने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।