
गुजरात में आम आदमी पार्टी को उपचुनाव में मिली बड़ी जीत का जश्न अभी थमा भी नहीं था कि पार्टी को एक बड़ा राजनीतिक झटका लग गया। राज्य के बोटाद से विधायक और पार्टी के वरिष्ठ नेता उमेश मकवाना ने गुरुवार को पार्टी के सभी पदों और जिम्मेदारियों से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह जानकारी स्वयं प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को पत्र भी भेजा।
समाज सेवा के बहाने इस्तीफा, नाराजगी की झलक साफहालांकि इस्तीफे में उमेश मकवाना ने समाज सेवा कम हो पाने को कारण बताया है, लेकिन पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने साफ कर दिया कि उनका यह फैसला महज औपचारिक नहीं है, बल्कि गहरी नाराजगी का नतीजा है। उन्होंने संकेत दिए कि वे आगे चलकर अपनी विधायक सदस्यता को लेकर भी निर्णय ले सकते हैं।
दलित उम्मीदवार की अनदेखी से गुस्से में मकवानामकवाना की नाराजगी की मुख्य वजह पार्टी नेतृत्व द्वारा कडी विधानसभा सीट के दलित उम्मीदवार की उपेक्षा है। उन्होंने कहा कि विसावदर में जहां से गोपाल इटालिया चुनाव लड़ रहे थे, वहां पार्टी का पूरा नेतृत्व और संसाधन झोंक दिए गए, लेकिन कडी में एक दलित उम्मीदवार को पार्टी ने अकेले छोड़ दिया। मकवाना ने बताया कि वह उम्मीदवार 10 लाख रुपये का लोन लेकर चुनाव लड़ा, लेकिन पार्टी से कोई मदद नहीं मिली। उन्होंने आरोप लगाया कि दलित नेताओं को केवल चुनावों के समय इस्तेमाल किया जाता है, उनके मुद्दों को असली प्राथमिकता नहीं दी जाती।
जातिगत संतुलन और सामाजिक न्याय पर सवालमकवाना ने यह भी आरोप लगाया कि पार्टी पिछड़े वर्गों, खासकर कोली और दलित समुदायों के मुद्दों को गंभीरता से नहीं ले रही। उन्होंने कहा कि जातिवादी मानसिकता वाले नेताओं को तरजीह दी जा रही है जबकि सामाजिक न्याय की बात केवल मंच तक सीमित है। उन्होंने चेताया कि अगर इस सोच में बदलाव नहीं आया तो यह पार्टी के लिए गुजरात जैसे राज्य में लंबी राजनीतिक यात्रा के रास्ते में बड़ा रोड़ा बन सकता है।
राजनीतिक भविष्य को लेकर संकेतउमेश मकवाना ने यह भी कहा कि वह आम आदमी पार्टी में केवल एक कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहेंगे, लेकिन विधायक पद को लेकर वे अपने समर्थकों और समाज से बात कर फैसला लेंगे। उन्होंने यह भी संकेत दिए कि आने वाले समय में वह स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ सकते हैं या अपनी नई पार्टी भी बना सकते हैं।
2020 में भाजपा छोड़ आप में शामिल हुए थे मकवानागौरतलब है कि उमेश मकवाना ने 2020 में भाजपा छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थामा था। उन्हें पार्टी में राज्य स्तरीय जिम्मेदारियां भी दी गईं, और गुजरात विधानसभा में आप के मुख्य सचेतक (दंडक) के रूप में काम कर रहे थे। लेकिन हाल के महीनों में वह पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बना चुके थे, जिससे अटकलें पहले ही शुरू हो गई थीं।
किसके लिए चिंता की बात है यह इस्तीफा?उपचुनाव में गोपाल इटालिया की जीत से उत्साहित आप नेतृत्व के लिए मकवाना का इस्तीफा एक बड़ा संकेत है कि पार्टी के भीतर अभी भी असंतोष की चिंगारियां मौजूद हैं। खासतौर पर दलित और पिछड़े समुदाय के नेताओं में उपेक्षा की भावना गहराने लगी है। अगर पार्टी इसे गंभीरता से नहीं लेती, तो 2027 की चुनावी रणनीति पर इसका असर पड़ सकता है।