नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भगवान शिव को लेकर बनाए गए विवादित कार्टून के मामले में इंदौर के कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई 15 अगस्त के बाद तय की है।
हाईकोर्ट से नहीं मिली थी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दिया सहाराइससे पहले मालवीय की अग्रिम जमानत याचिका मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मालवीय भविष्य में भी ऐसे कार्टून बना सकते हैं, और यह कृत्य जानबूझकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के इरादे से किया गया था।
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा कि आजकल लोग ऐसे शब्दों और विचारों का उपयोग करते हैं जिनका स्तर मर्यादित नहीं होता। जिसे जो मन में आता है, वह लिख देता है। कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं को रेखांकित करते हुए यह स्पष्ट किया कि व्यंग्य और अभद्रता के बीच अंतर समझना जरूरी है।
कार्टून को व्यंग्य बताया गया: वकील वृंदा ग्रोवरहेमंत मालवीय की ओर से वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यह कार्टून केवल एक व्यंग्यात्मक चित्रण था, जिसका उद्देश्य किसी धार्मिक भावना को आहत करना नहीं था। उन्होंने कहा कि कार्टून सामाजिक टिप्पणी का एक रूप है और इसे अपराध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
यह विवादित कार्टून कोविड महामारी के दौरान 2021 में बनाया गया था, जिसे लेकर इस वर्ष मई में आरएसएस के एक सदस्य की शिकायत पर मालवीय के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। इसके बाद गिरफ्तारी की आशंका के चलते मालवीय ने अग्रिम जमानत मांगी थी।
हाईकोर्ट ने जताई थी हिरासत में पूछताछ की जरूरतहाईकोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई करते हुए कहा था कि मालवीय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया और प्रधानमंत्री, आरएसएस और भगवान शिव की अपमानजनक तस्वीरें बनाकर सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने का प्रयास किया है। न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने उनकी अग्रिम जमानत यह कहते हुए खारिज की थी कि उनकी हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत मालवीय को गिरफ्तारी से राहत देकर यह संकेत दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मर्यादा का पालन करते हुए व्यंग्य को अपराध की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। हालांकि, यह अंतरिम राहत है और अगली सुनवाई के बाद मामले की दिशा स्पष्ट होगी। इस फैसले से एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि व्यंग्य और धार्मिक भावना के बीच सीमाएं कैसे तय की जाएं, और क्या कलात्मक स्वतंत्रता पर कानूनी अंकुश आवश्यक है या नहीं।