
देश में सस्ती दवाओं की उपलब्धता पर संकट गहराने लगा है। सरकार द्वारा लागू किए गए नए गुणवत्ता मानकों को पूरा न कर पाने के कारण हजारों छोटी दवा कंपनियों पर ताला लगने की नौबत आ गई है। इससे न केवल दवा उत्पादन पर असर पड़ेगा, बल्कि कई आवश्यक दवाओं की किल्लत और महंगाई की भी आशंका है।
4300 फार्मा कंपनियां बंद होने की कगार परभारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री, जो दुनिया की सबसे बड़ी जेनरिक दवा उत्पादक मानी जाती है, इस वक्त एक बड़े संकट का सामना कर रही है। सरकार द्वारा मई 2025 तक 'गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज' (GMP) के तहत अपग्रेडेशन प्लान जमा करने की डेडलाइन तय की गई थी। लेकिन अनुमानित 6,000 MSME फार्मा यूनिट्स में से केवल 1,700 ने ही समय पर योजना जमा की। ऐसे में 4300 यूनिट्स पर 'स्टॉप प्रोडक्शन नोटिस' जारी हो सकता है। इसका सीधा असर आम जनता को मिलने वाली सस्ती दवाओं की उपलब्धता पर पड़ सकता है।
‘शेड्यूल एम’ की सख्ती और उद्योग की आपत्तिस्वास्थ्य मंत्रालय ने 'शेड्यूल एम' के तहत फार्मा कंपनियों को उत्पादन प्रक्रिया में गुणवत्ता सुधार लाने के सख्त निर्देश दिए हैं। इसके अंतर्गत स्वच्छता, रिकॉर्ड-रखाव, आधुनिक मशीनरी और स्टैंडर्डाइज्ड प्रोडक्शन की अनिवार्यता है। हालांकि, फार्मा क्षेत्र के कई छोटे व्यवसायी इन सुधारों को लागू करने में असमर्थ हैं। वे सरकार से तकनीकी और आर्थिक सहायता की मांग कर रहे हैं।
उद्योग से जुड़े संगठनों का कहना है कि सरकार ने बदलाव की समयसीमा तो तय कर दी, लेकिन उन्हें उस स्तर की सहायता नहीं मिली जिससे वे इन मानकों को पूरा कर पाते। कई कंपनियों को तीन महीने की अतिरिक्त मोहलत जरूर दी गई, लेकिन वह भी अपर्याप्त साबित हुई।
बेरोजगारी और दवा आपूर्ति पर असरयदि इन 4300 यूनिट्स पर ताला लगता है तो हजारों कर्मचारियों की नौकरी पर खतरा मंडराएगा। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह संकट सिर्फ रोजगार तक सीमित नहीं रहेगा। कई महत्वपूर्ण दवाएं जैसे कैंसर, टीबी और डायबिटीज की जेनरिक दवाओं का निर्माण भी प्रभावित हो सकता है, क्योंकि ये अक्सर कम बजट वाली छोटी कंपनियों द्वारा उत्पादित की जाती हैं।
दवाओं की कीमतों में उछाल तय?इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कई फार्मा व्यवसायियों का मानना है कि अगर उत्पादन बंद होता है, तो दवाओं की सप्लाई कम हो जाएगी और इससे दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी। आम जनता के लिए यह एक बड़ा झटका होगा, जो पहले से ही महंगाई की मार झेल रही है।
सरकार से ‘हैंड होल्डिंग सपोर्ट’ की मांगछोटी फार्मा यूनिट्स सरकार से अपील कर रही हैं कि उन्हें इस संक्रमण काल में ‘हैंड होल्डिंग सपोर्ट’ प्रदान किया जाए। इसमें तकनीकी ट्रेनिंग, कम ब्याज पर ऋण और सलाहकार सहायता शामिल होनी चाहिए ताकि वे समय रहते अपने प्लांट्स को अपग्रेड कर सकें और बाजार में टिके रह सकें।
भारत के फार्मा क्षेत्र में यह संकट केवल कारोबारी पहलू नहीं है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मसला बन चुका है। अगर सरकार ने संतुलित कदम नहीं उठाए, तो न केवल हजारों लोगों की आजीविका छिन सकती है, बल्कि दवाओं की कीमतें भी आसमान छू सकती हैं। इससे उन करोड़ों भारतीयों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा, जो अब तक सस्ती जेनरिक दवाओं के सहारे अपना इलाज करवा पाते थे।