क्या AAP का ‘बिहार में भी केजरीवाल’ अभियान दिल्ली के पूर्वांचली वोटरों से माफी की शुरुआत है?

‘जिन लोगों ने दिल्ली से बिहारियों को भगाया है, उस बीजेपी को बिहार से बिहारी लोग भगाएंगे’ – इस भावुक नारे के ज़रिए आम आदमी पार्टी ने बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की है। यह नारा न केवल बिहारियों की भावनाओं को टटोलने की कोशिश है, बल्कि दिल्ली में सत्ता गंवाने के बाद एक खोई हुई ज़मीन वापस पाने की रणनीति भी लगती है।

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की अनुपस्थिति में पार्टी की जिम्मेदारी सौरभ भारद्वाज संभाल रहे हैं। हाल ही में दिल्ली के मद्रासी कैंप झुग्गी क्षेत्र में सरकारी तोड़फोड़ की घटना के बाद भारद्वाज और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने प्रभावित इलाकों का दौरा किया और पटना में धरना देने की घोषणा की। ध्यान देने वाली बात यह है कि विस्थापितों में अधिकांश यूपी-बिहार के निवासी थे।

पार्टी अब इस मुद्दे को संसद और बिहार की सड़कों तक ले जाकर यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि दिल्ली में जो हुआ, उसकी गूंज बिहार तक सुनाई देनी चाहिए। एक ओर जहां केजरीवाल पंजाब के उपचुनाव में व्यस्त हैं, वहीं बिहार में ‘केजरीवाल’ के नाम पर प्रचार चलाने की जिम्मेदारी राकेश यादव के कंधों पर है। यह सात चरणों में चलने वाला अभियान है, जिसके पीछे की रणनीति स्पष्ट है – दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों को फिर से साधना।

दिल्ली में सत्ता में बने रहने के लिए आम आदमी पार्टी को बार-बार पूर्वांचली समुदाय का समर्थन मिला है। अब जबकि दिल्ली में पार्टी को झटका लगा है, वह फिर उसी समुदाय तक पहुंचने की कोशिश में है। बिहार में पार्टी लोगों से अपील कर रही है कि वे अपने घरवालों को समझाएं कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में उनके लिए क्या किया है – जो मौजूदा बीजेपी सरकार नहीं कर रही।

हालांकि, ये पूरी कवायद एक जोखिम भरा दांव भी साबित हो सकती है। अगर दिल्ली के वोटर अब भी अपनी पिछली राय पर कायम हैं, तो पार्टी को दोहरा झटका लग सकता है – बिहार में भी और दिल्ली में भी। दिलचस्प बात यह है कि केजरीवाल खुद इस अभियान का हिस्सा नहीं बनेंगे। पार्टी ने बिहार को उन राज्यों की सूची में रखा है जहां स्थानीय नेता ही चुनावी मोर्चा संभालेंगे।

विरोधाभास और रणनीतिक टकराव यहीं खत्म नहीं होते। जहां दिल्ली में आम आदमी पार्टी को इंडिया ब्लॉक के दलों का समर्थन मिला था, वहीं बिहार में पार्टी अकेले सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। न कांग्रेस का साथ, न राजद का – जबकि ये वही पार्टियां हैं जो विपक्षी गठबंधन की रीढ़ मानी जाती हैं।

इस अकेले चुनाव लड़ने की नीति पर सवाल उठना लाज़मी है। पार्टी का बिहार में कोई ठोस जातीय आधार नहीं है और न ही ऐसा कोई चेहरा है जो चुनाव में निर्णायक साबित हो सके। ऐसे में सवाल उठता है कि पार्टी आखिर क्या हासिल करना चाहती है – सिर्फ ध्यान आकर्षित करना या बिहार की राजनीति में कोई बड़ी सेंध लगाना?

बिहार में आप किसे टिकट देती है, यह भी एक महत्वपूर्ण संकेत होगा कि पार्टी जन सुराज पार्टी की तरह वोटकटवा की भूमिका में होगी या कुछ अलग रणनीति अपनाएगी। जन सुराज पार्टी ने पिछली बार चार उपचुनावों में 10 फीसदी वोट लिए थे, लेकिन उसका कोई बड़ा असर नहीं दिखा।

दिलचस्प यह भी है कि आम आदमी पार्टी बिहार में बीजेपी के खिलाफ प्रचार कर रही है, लेकिन उसका असली नुकसान तेजस्वी यादव की आरजेडी और कांग्रेस को ही होगा। ऐसे में यह स्पष्ट है कि केजरीवाल की रणनीति दोहरी है – विपक्ष को भी चोट और बीजेपी के खिलाफ भी मोर्चा।

अंत में बड़ा सवाल यही है – क्या ये 'बिहार में केजरीवाल' अभियान दरअसल 'दिल्ली के पूर्वांचली वोटरों' से माफी मांगने की चुपचाप शुरुआत है? क्या आप दिल्ली में अपने खोए हुए समर्थन को बिहार के रास्ते वापस लाना चाहती है? इन सवालों के जवाब चुनावी नतीजों में ही मिलेंगे, लेकिन राजनीति की चालें पहले से बहुत कुछ कह जाती हैं।