बिहार SIR मामला: SC ने चुनाव आयोग से पूछा– आधार और राशन कार्ड क्यों नहीं मान्य? NRC जैसे कदम पर जताई चिंता

बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision–SIR) प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे। याचिकाकर्ताओं द्वारा इस प्रक्रिया को लेकर उठाए गए सवालों के बीच सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भले ही SIR प्रक्रिया में मौलिक रूप से कोई समस्या नहीं है, लेकिन इसे इतनी देरी से शुरू करना और नागरिकता जैसे विषयों में प्रवेश करना उचित नहीं कहा जा सकता।

'आधार-राशन कार्ड को क्यों नहीं मानते आप पहचान?'

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जयमॉल बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से पूछा कि वह आधार और राशन कार्ड को पहचान के तौर पर मान्यता क्यों नहीं दे रहा है? अदालत ने यह भी कहा कि आधार जब सरकारी योजनाओं के लिए पर्याप्त है, तो वोटर पहचान में इसे क्यों खारिज किया जा रहा है? कोर्ट ने पूछा कि जब आप मानते हैं कि केवल भारतीय नागरिक ही मतदान कर सकते हैं, तो नागरिकता की पुष्टि के नाम पर आधार को बाहर रखना विरोधाभासी नहीं है?

'इस प्रक्रिया की टाइमिंग ही संदिग्ध'


कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि अगर यह प्रक्रिया आवश्यक थी, तो इसे बहुत पहले क्यों नहीं शुरू किया गया? जब बिहार विधानसभा चुनाव अब नजदीक हैं, ऐसे समय में SIR प्रक्रिया को तेज़ी से लागू करना करोड़ों मतदाताओं की पात्रता को प्रभावित कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के उस दावे पर भी सवाल उठाया, जिसमें कहा गया था कि 30 दिनों में पूरी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। अदालत ने इसे अव्यवहारिक और जमीनी हकीकत से दूर बताया।

चुनाव आयोग की दलील: वोट देने का हक सिर्फ भारतीय नागरिकों को

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि SIR प्रक्रिया जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के तहत की जा रही है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि वोट देने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है, और आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस पर जस्टिस धूलिया ने जवाब देते हुए कहा कि यदि ऐसा है तो यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो जानी चाहिए थी।

राजनीतिक दलों और NGO ने जताई आशंका: 'छुपा हुआ NRC लागू'


इस मामले में याचिका दाखिल करने वालों में कांग्रेस, डीएमके, भाकपा, झामुमो, सपा, शिवसेना (UBT) जैसे विपक्षी दल और एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) जैसे गैर सरकारी संगठन शामिल हैं। इनका आरोप है कि चुनाव आयोग एक तरह से NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) जैसी प्रक्रिया को गुप्त रूप से लागू कर रहा है, जिससे लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया जा सकता है।

वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, वृंदा ग्रोवर और अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में जोर देते हुए कहा कि आयोग नागरिकता के निर्धारण की प्रक्रिया में खुद को शामिल नहीं कर सकता, क्योंकि यह उसका कार्यक्षेत्र नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि गरीबों के पास अक्सर राशन कार्ड ही एकमात्र वैध दस्तावेज़ होता है, और उसे नजरअंदाज करना असंवेदनशील और भेदभावपूर्ण है।

SC का स्पष्ट संकेत: जल्दबाजी में मतदाता हटाने की छूट नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन उसकी ओर से चुनाव आयोग को स्पष्ट संदेश दिया गया है कि नागरिकों की संवैधानिक पहचान और मताधिकार के साथ कोई छेड़छाड़ न हो। अदालत ने दो टूक कहा कि मतदाता सूची की सफाई जरूरी है, लेकिन इसके लिए संतुलन, समयबद्धता और पारदर्शिता भी जरूरी है।

28 जुलाई को होगी अगली सुनवाई

अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जिसमें कोर्ट यह देखेगा कि चुनाव आयोग ने अपनी प्रक्रिया में कौन-कौन से दस्तावेजों को स्वीकार किया और क्या मतदाताओं को पर्याप्त समय और साधन मिले। यह सुनवाई न केवल बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और वैधता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले उठे इस विवाद ने देश भर में एक बार फिर नागरिकता, पहचान और मतदाता अधिकारों को लेकर बहस छेड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और विपक्ष की आशंकाएं एक ओर जहां प्रशासन को अधिक जिम्मेदार बनने की ओर धकेल रही हैं, वहीं यह भी सुनिश्चित कर रही हैं कि लोकतंत्र की सबसे बुनियादी इकाई — मतदाता — के अधिकार सुरक्षित रहें।