ऐसे होगा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत में स्वागत, करी गई है विशेष तैयारियां

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) अपने दो दिन के भारत दौरे पर आज शुक्रवार दोपहर चेन्नई पहुंचेंगे। भारत-चीन के बीच इस बार इन्फॉर्मल समिट तमिलनाडु के महाबलीपुरम (माम्मलापुरम) में हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यह दूसरी अनौपचारिक बैठक है। पहली बार यह मुलाकात चीन के वुहान में बीते साल अप्रैल में हुई थी। उस दौरान पीएम मोदी ने चीनी राष्ट्रपति को भारत आने का न्यौता दिया था। तमिलनाडु के महाबलीपुरम में शुक्रवार और शनिवार को दोनों नेता मुलाकात करेंगे। जिनपिंग के साथ चीन के विदेश मंत्री और पोलित ब्यूरो के सदस्य भी भारत आएंगे। इस बैठक के लिए कोई एजेंडा तय नहीं है, लेकिन भारत-प्रशांत क्षेत्र, सीमा विवाद, आतंकवाद, कारोबारी असंतुलन, टेरर फंडिंग के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है। इस दौरान कोई समझौता और एमओयू पर हस्ताक्षर नहीं होंगे, लेकिन मोदी-जिनपिंग की ओर से साझा बयान जारी हो सकता है।

चेन्नई एयरपोर्ट पर विशेष सजावट की गई, बच्चे अनोखा स्वागत करेंगे

जिनपिंग के स्वागत की विशेष तैयारियां की गई हैं। चेन्नई एयरपोर्ट को पारंपरिक रूप से केले के पत्तों, फल-फूल मालाओं के साथ सजाया गया है। वहां अनोखा स्वागत करने के लिए 2000 स्कूली छात्र जिनपिंग का मुखौटा पहनकर अंग्रेजी के शब्द वेलकम की मुद्रा में होंगे। जहां से भी जिनपिंग गुजरेंगे, वहां भारत और चीन के झंडे लगे होंगे। शहर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं, चेन्नई से महाबलीपुरम तक 10 हजार जवान तैनात हैं। रास्तों और कार्यक्रम स्थल पर 800 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल ने समुद्र तट से कुछ दूरी पर युद्धपोत तैनात किए हैं।

एयरपोर्ट से जिनपिंग के साथ प्रधानमंत्री मोदी होटल जाएंगे। वहां खाना खाने के बाद शाम करीब 5 बजे जिनिपंग 60 किमी दूर महाबलीपुरम पहुंचेंगे। वहां वह विश्व विरासत स्थल में शामिल शोर मंदिर, 7वीं सदी का अर्जुन का तपस्या स्मारक, पल्लव वंश द्वारा बनाए गए पंच रथ मंदिर देखेंगे। वहां से दोनों नेता डिनर के लिए जाएंगे। शनिवार सुबह प्रतिनिधि स्तर की वार्ता के बाद मोदी और जिनपिंग भोजन करेंगे। दोपहर में जिनपिंग चीन लौट जाएंगे।

चीन का महाबलीपुरम से है पुराना रिश्ता

बता दे, कभी महाबलीपुरम के शासकों ने चीन के साथ तिब्बत की सीमा की सुरक्षा के लिए समझौता किया था। समुद्र किनारे बसे इस शहर को पल्लव वंश के राजा नरसिंह देव बर्मन ने बसाया था। इस शहर से कभी चीनी सिक्के मिले थे, जिससे ये बात सामने आई थी कि यहां और चीन के बीच व्यापारिक संबंध थे, जो बंदरगाह के जरिए होते थे। यही कारण रहा है कि चीन और पल्लव वंश लगातार करीब आते चले गए, इसी के बाद सातवीं सदी में चीन ने महाबलीपुरम के राजाओं से समझौता किया। नरसिंह ने मामल्ल की उपाधि धारण की थी, इसलिए इसे मामल्लपुरम के नाम से भी जाना जाता है।

दोनों के बीच हुआ ये समझौता सुरक्षा को लेकर था, जो कि तिब्बत सीमा के लिए हुआ था। चीन ने ये समझौता पल्लव वंश के तीसरे राजकुमार बोधिधर्म के साथ किया था, जिन्होंने बाद में बौद्ध धर्म अपनाया और बौद्ध भिक्षु बन गए थे। यही समझौता और चीन को की गई मदद एक कारण भी बनी कि चीन में बोधिधर्म को सम्मानित दर्जा प्राप्त है।

प्राचीन बंदरगाह वाले महाबलीपुरम का करीब 2000 साल पहले चीन के साथ खास संबंध था। पुरातत्वविद राजावेलू बताते हैं कि कि यहां बरामद हुए पहली और दूसरी सदी के मिट्टी के बर्तन हमें चीन के समुद्री व्यापार की जानकारी देते हैं। पल्लव शासन के दौरान चीनी यात्री ह्वेनसांग कांचीपुरम आए थे। पल्लव शासकों ने चीन में अपने दूत भेजे थे।