समझिए नई जिंदगी मिली है... महाकुंभ भगदड़ से जिंदा बचीं महिलाओं की आपबीती

प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान 28 जनवरी की देर रात भगदड़ मचने से 30 श्रद्धालुओं की दर्दनाक मौत हो गई। मृतकों में कई राज्यों के लोग शामिल थे, जिनमें बिहार के 11 श्रद्धालु भी थे। इनमें 4 गोपालगंज, 2 औरंगाबाद के अलावा पटना, मुजफ्फरपुर, सुपौल, बांका और पश्चिमी चंपारण के लोग शामिल थे।

पटना के मनेर की रहने वाली सिया देवी की इस हादसे में मौत के बाद उनके गांव जीवतराखन टोले में मातम पसरा हुआ है। जो महिलाएं इस भगदड़ से बचकर वापस लौटी हैं, वे भी गहरे सदमे में हैं।

नई जिंदगी मिली है

महाकुंभ की भगदड़ से जिंदा लौटने वाली सविता देवी के बेटे का कहना है कि उनकी मां सुरक्षित वापस आ गईं, यह किसी पुनर्जन्म से कम नहीं है। अब वह अपनी मां को दोबारा किसी मेले में जाने नहीं देंगे। हादसे के बाद सिया देवी की बहू रिंकू भी गहरे सदमे में हैं। अन्य महिलाओं की तरह उनकी आंखों से आंसू भी नहीं निकल रहे, मानो उन्होंने मौत को बहुत करीब से देखा हो।

अब कभी नहीं...

रिंकू ने बताया कि वह अपनी सास के साथ संगम घाट की ओर जा रही थीं, तभी अचानक भीड़ का दबाव बढ़ गया और वे नीचे गिर गईं। किसी तरह उन्होंने खुद को संभाला और अपने समूह की महिलाओं को बचाने लगीं, लेकिन तब तक उनकी सास की जान जा चुकी थी। रिंकू ने कहा कि यह उनकी पहली कुंभ यात्रा थी, लेकिन अब वह दोबारा कभी कुंभ नहीं जाएंगी।

जरा सा हिलने पर भी दर्द से तड़प उठती हैं

सिया देवी के घर से कुछ ही दूरी पर 70 वर्षीय जानकी देवी का घर है। महाकुंभ की भगदड़ में किसी तरह उनकी जान बच गई, लेकिन अब भी वे सदमे में हैं। गांव की महिलाएं लगातार उनका हालचाल लेने आ रही हैं। जानकी देवी को कई इंजेक्शन दिए गए, तब जाकर होश आया, मगर अब भी उनका शरीर थरथरा जाता है। उनके शरीर पर गहरे जख्मों के निशान हैं, और जरा सा हिलने पर भी वे दर्द से कराह उठती हैं।

अब भी डर से सिहर उठती हैं

इसी गांव की सविता देवी, अनीता देवी और चंद्रा देवी भी महाकुंभ में स्नान के लिए गई थीं। अनीता देवी बताती हैं, लोग कह रहे थे कि महाकुंभ में स्नान करने से स्वर्ग मिलता है, इसलिए हम भी गए। लेकिन जैसे ही वे घाट पर पहुंचीं, वहां भगदड़ मच गई। घबराकर उन्होंने एक आदमी का कॉलर पकड़कर बाहर निकालने की विनती की, तब उसने हाथ पकड़कर किसी तरह उन्हें बाहर घसीट लिया।

सविता देवी के बेटे ने बताया कि उनकी मां बिना बताए महाकुंभ चली गई थीं। जब परिवार को भगदड़ की खबर मिली, तो पांचों भाई-बहन रोने लगे। सविता देवी ने बताया कि भगदड़ के दौरान उन्होंने एक पुलिसवाले से मदद मांगी, जिसने उन्हें भीड़ से बाहर निकाला। हालांकि, अब भी उनका शरीर दर्द से कराहता है। उनके बेटे का कहना है कि मानसिक रूप से उनकी मां अभी भी सदमे में हैं—वो बार-बार डर से सिहर उठती हैं और रोने लगती हैं।

महाकुंभ में भगदड़ से बचीं चंद्रा देवी ने अपने अनुभव को भयावह बताते हुए कहा, ऐसा लग रहा था मानो लाशों पर भागदौड़ मच गई हो। जो जितना ताकतवर था, वह कमजोरों को रौंदता चला जा रहा था। उन्होंने प्रशासन और सरकार की लापरवाही पर भी गुस्सा जाहिर किया।