14 Points में समझे भारत के लिए 'मिशन शक्ति' की सफलता के क्या हैं मायने

भारत ने अंतरिक्ष में ये उपलब्धि हासिल की है, अमेरिका, चीन और रूस के बाद ऐसा करने वाला भारत चौथा बड़ा देश बना है। भारत ने आज अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में दर्ज करा दिया है और खास बात यह रही कि भारत ने किसी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन भी नहीं किया है। भारत ने अंतरिक्ष में एक सैटेलाइट को मार गिराया है। पीएम बोले कि भारत ने इस मिशन को 'मिशन शक्ति' का नाम दिया है। आज भारत अंतरिक्ष में महाशक्ति बन गया है। पीएम ने बताया कि LEO सैटेलाइट को मार गिराना एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था, इस मिशन को सिर्फ 3 मिनट में पूरा किया गया है। पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने आज एक अभूतपूर्व सिद्धि हासिल की है। भारत में आज अपना नाम ‘स्पेस पावर' के रूप में दर्ज करा दिया है। अब तक रूस, अमेरिका और चीन को ये दर्जा प्राप्त था, अब भारत को भी यह उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने कहा कि यह देश के लिए गर्व की बात है। भारत ने अंतरिक्ष के लोअर आर्बिट में करीब 300 किमी की ऊंचाई पर स्थित सैटेलाइट को एक एंटी सैटेलाइट मिसाइल से अटैक कर उसे नष्ट किया है। आइये जानते है भारत के लिए मिशन शक्ति की सफलता के क्या मायने हैं।

- एंटी सैटेलाइट विपन्स (ASAT) को उपग्रहों को नष्ट करने या निष्क्रिय करने के लिए बनाए जाते हैं। ऐसे कई देश हैं जिनके पास यह क्षमता है, लेकिन भारत सहित केवल चार देशों ने अपनी ASAT क्षमताओं का साबित किया है।

- इस उपलब्धि के साथ ही भारत अंतरिक्ष जगत का एक अलीट पावर बन चुका है। एंटी सैटेलाइट हथियार के द्वारा भारत ने लो ऑर्बिट में अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट को नष्ट कर दिया है।

- अमेरिका ने पहली बार साल 1958, रूस (Union of Soviet Socialist Republics- USSR) ने 1964 और चीन ने 2007 में ASAT का परीक्षण किया था। साल 2015 में, रूस ने अपनी PL-19 Nudol मिसाइल का परीक्षण किया और अन्य परीक्षणों के साथ इसका पालन किया। डीआरडीओ ने फरवरी 2010 में घोषणा की थी कि भारत अंतरिक्ष में दुश्मन के उपग्रहों को नष्ट करने के लिए एक हथियार बनाने के लिए आवश्यक तकनीक विकसित कर रहा है।

- अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ही इस उपलब्‍ध‍ि को हासिल कर पाए थे। लेकिन अब भारत ने सफलतापूर्वक एंटी सैटेलाइट मिसाइल का इस्तेमाल किया है। इस तरह भारत भी अंतरिक्ष का सुपर पावर बन गया है।

- मिशन शक्ति नाम का यह अभियान काफी कठिन था। इसमें खास बात यह रही कि टारगेट को सिर्फ तीन मिनट के भीतर निशाना बनाने में सफलता मिली।

- भारत इस तरह की खास और आधुनिक क्षमता हासिल करने वाला चौथा देश बन गया है और सबसे खास बात यह रही कि इसमें पूरी तरह से स्वदेशी स्तर पर काम हुआ है।

- यह भारत की सुरक्षा, आर्थि‍क तरक्की और टेक्नोलॉजी में उन्नति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण कदम है।

- इससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की प्रतिष्ठा और बढ़ी है। पीएम मोदी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह भरोसा दिलाया है कि इस क्षमता का इस्तेमाल भारत सिर्फ रक्षात्मक जरूरतों के लिए करेगा और भारत अंतरिक्ष में जंग के खिलाफ है।

- मिशन शक्ति ऑपरेशन काफी जटिल था, यह काफी स्पीड में और जबरदस्त सटीकता के साथ किया गया। यह भारतीय वैज्ञानिकों के बेहतरीन प्रदर्शन और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता को दर्शाता है।

- चीन जैसा भारत का पड़ोसी देश पहले ही यह उपलब्ध‍ि हासिल कर चुका है, ऐसे में भारतीय अंतरिक्ष जगत में जोखिम बढ़ गया था। इस परीक्षण से भारत ने चीन को एक तरह से चेतावनी दी है कि अगर उसने सैटेलाइट से वार जैसी कोशिश की तो एंटी सैटेलाइट मिसाइल से उसके सैटेलाइट को कुछ ही मिनटों में अंतरिक्ष में ही तबाह कर दिया जाएग।

साल 2007 में चीन द्वारा परीक्षण करने के बाद कई देशों ने इस कदम की आलोचना की थी और अंतरिक्ष में सैन्यीकरण में संलग्न होने के गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। चीन ने यह कहते हुए आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की थी कि वह बाहरी अंतरिक्ष में किसी भी तरह की हथियारों की दौड़ में भाग नहीं लेगा। एसैट (ASAT) मिसाइल ने भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम में नई उपलब्धि हासिल की है।

- भारत ने अभी तक संचार, कृषि, आपदा प्रबंधन, मौसम, नेविगेशन जैसे क्षेत्रों में देश-विदेश के सैकड़ों सैटेलाइट लॉन्च किए हैं, लेकिन एंटी सैटेलाइट मिसाइल के इस्तेमाल की टेक्नोलॉजी में पहली बार सफलता मिली है।

- लो ऑर्बिट पृथ्वी से 160 किमी से लेकर 2 हजार किलोमीटर के बीच की ऊंचाई पर मौजूद एक कक्षा होती है। भारत ने इस ऑर्बिट में घूमती हुई एक सैटेलाइट को मार गिराया है। भारत ने मिसाइल से करीब 300 किलोमीटर दूरी पर मौजूद सैटेलाइट को निशाना बनया है।

- अंतरिक्ष में सैटेलाइट वॉर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 1985 से 2002 के बीच अमेरिका ने एक स्पेस कमांड बनाया जिसे बाद में स्ट्रेटजिक कमांड में मिला दिया गया। रूस भी 1992 में रशियन स्पेस फोर्स का गठन कर चुका है। इसे 2015 में रूसी एयरस्पेस फोर्सेज का हिस्सा बना लिया गया है। चीन ने साल 2007 में ही एंटी सैटेलाइट का परीक्षण किया था, जिसने लोवर आर्बिट में 865 किमी की ऊंचाई पर एक सैटेलाइट को बर्बाद कर दिया था। इस तरह भारत का एक प्रमुख पड़ोसी देश चीन भी सैटेलाइट वॉर के लिए अपने को तैयार कर चुका है।

आइए, जानते हैं कैसी होती है यह ऐंटी-सैटलाइट मिसाइल...

अंतरिक्ष विज्ञानी अजय लेले के मुताबिक ऐंटी सैटलाइट मिसाइल के अंदर बारूद नहीं होता। इसे काइनैटिक किल वेपन भी बोलते हैं। सामान्य मिसाइल के टिप पर वॉरहेड लगाते हैं। लक्ष्य पर टकराने के बाद ब्लास्ट होता है। जबकि ऐंटी सैटलाइट मिसाइल काइनैटिक किल मैकेनिज्म पर काम करती है। इसके वॉरहेड पर एक मेटल स्ट्रिप होता है। सैटलाइट के ऊपर मेटल का गोला गिर जाता है और वह उसे गिरा देता है। यह मिसाइल किसी भी देश को अंतरिक्ष में सैन्य ताकत देने का काम करता है। अब तक यह शक्ति अमेरिका, रूस और चीन के पास ही थी, अब अंतरिक्ष में महाशक्ति कहलाने वाले देशों में भारत भी शामिल हो गया है। हालांकि अब तक किसी भी देश ने युद्ध में ऐसे ऐंटी-सैटलाइट मिसाइल को इस्तेमाल नहीं किया है।

क्या या है Low Earth Orbit

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भारत के वैज्ञानिकों की ओर से जिस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया है, वह पृथ्वी की निचली कक्षा यानी लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) में किया गया है। ऐसे में आपको बताते हैं कि आखिर यह लो अर्थ ऑर्बिट क्या है? भारत ने अंतरिक्ष में 300 किमी दूर LEO (Low Earth Orbit) में एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया है। ये लाइव सैटेसाइट जो कि एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था, उसे एंटी सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) द्वारा मार गिराया गया है। बता दें कि लो अर्थ ऑर्बिट यानी पृथ्वी की निचली कक्षा पृथ्वी के सबसे नजदीक ऑर्बिट (कक्षा) है। यह पृथ्वी की सतह से 160 किलोमीटर (99 मील) और 2,000 किलोमीटर (1,200 मील) के बीच ऊंचाई पर स्थित है। यह पृथ्वी की सतह से सबसे नजदीक है। लो अर्थ ऑर्बिट के बाद मिडियन अर्थ ऑर्बिट, Geosynchronous ऑर्बिट और उसके बाद हाई अर्थ ऑर्बिट है। हाई अर्थ ऑर्बिट पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर पर स्थित है। बता दें कि साल 2022 में जो भारत की ओर से जो तीन भारतीय अंतरिक्ष भेजे जाएंगे, वो भी इस लो अर्थ ऑर्बिट में रहेंगे। इस प्रोजेक्ट को लेकर इसरो ने कहा था कि सिर्फ 16 मिनट में तीन भारतीयों को श्रीहरिकोटा से स्पेस में पहुंचा दिया जाएगा और तीनों भारतीय स्पेस के 'लो अर्थ ऑर्बिट' में 6 से 7 दिन बिताएंगे।